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CGHS: क्या समाप्त होने जा रही है 'सीजीएचएस', चिकित्सा बीमा योजना लाने के विचार से क्यों चिंतित हैं कर्मचारी?
सार
देश के 42 लाख से अधिक लाभार्थियों 'कर्मियों और पेंशनरों' को लगता है कि आने वाले समय में केंद्र सरकार, सीजीएचएस को समाप्त कर सकती है। इसकी जगह 'चिकित्सा बीमा योजना' लाने पर विचार किया जा रहा है।
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डॉक्टर।
- फोटो : adobe photo
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विस्तार
केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना यानी सीजीएचएस को लेकर कर्मचारी और पेंशनर चिंतित नजर आ रहे हैं। वजह, 42 लाख से अधिक लाभार्थियों 'कर्मियों और पेंशनरों' को लगता है कि आने वाले समय में केंद्र सरकार, सीजीएचएस को समाप्त कर सकती है। इसकी जगह 'चिकित्सा बीमा योजना' लाने पर विचार किया जा रहा है। वरिष्ठ ट्रेड यूनियन नेता, एआईडीईएफ के महासचिव और स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद 'जेसीएम' की स्थायी समिति के सदस्य सी. श्रीकुमार ने कहा है, अगर ये बात सही है तो वे सरकार के इस कदम का कड़ा विरोध करते हैं। कर्मियों/पेंशनरों के लिए कोई भी 'चिकित्सा बीमा योजना' सीजीएचएस लाभों के अतिरिक्त होनी चाहिए।
बतौर श्रीकुमार, सीजीएचएस को समाप्त करने के विचार से केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों में चिंता की लहर दौड़ गई है। सीजीएचएस एक समय-परीक्षित स्वास्थ्य सेवा योजना है। इसकी कुछ कमियों को दूर किया जाना चाहिए, लेकिन इसे पूरी तरह समाप्त करना, ये तो बिल्कुल गलत है। सीजीएचएस, एक समय-परीक्षित स्वास्थ्य सेवा मॉडल, को 1954 में शुरू किया गया था। यह एक अंशदायी योजना है, जिसका उद्देश्य केंद्र सरकार के कर्मचारियों, पेंशनभोगियों, सांसदों, पूर्व राष्ट्रपतियों, उपराष्ट्रपतियों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों और यहां तक कि स्वतंत्रता सेनानियों को व्यापक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
सीजीएचएस के पास कितने निजी अस्पताल सूचीबद्ध
वर्तमान में, सीजीएचएस के पास 2,500 से ज्यादा सूचीबद्ध निजी अस्पताल और डायग्नोस्टिक सेंटर व 5,500 से अधिक वेलनेस सेंटर हैं। सीजीएचएस की कुछ कमियों के बावजूद श्रीकुमार ने इस योजना का बचाव करते हुए कहा, कुछ गंभीर मुद्दे हैं, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे, सीजीएचएस सेंटरों पर डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी, कई आधुनिक उपचारों और नैदानिक प्रक्रियाओं का समावेश न होना, पुरानी उपचार दरें, अस्पतालों को इससे बाहर निकलने को मजबूर करना, सूचीबद्ध अस्पतालों और डायग्नोस्टिक सेंटरों को भुगतान में देरी, सीजीएचएस वेलनेस सेंटरों में दवाओं की कमी और जेनेरिक दवा नीति के तहत विशेष दवाओं से इनकार और सूचीबद्ध अस्पतालों द्वारा निर्धारित दरों से अधिक शुल्क लेना, आदि कमियां देखने को मिलती हैं।
इनके अलावा प्रत्येक जिले में सीजीएचएस केंद्र स्थापित करने की संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश का कार्यान्वयन न होना और आयुष-आधारित अस्पतालों का बहुत सीमित पैनलीकरण, ये बातें भी इस योजना की कमियों में शामिल हैं। बीमा सीजीएचएस का विकल्प नहीं बन सकता, श्रीकुमार ने केंद्र सरकार को, प्रस्तावित चिकित्सा बीमा योजना पर चेतावनी देते हुए कहा, इसमें बाह्य रोगी उपचार कवर नहीं किया गया है। उच्च प्रीमियम दरें, खासकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए, प्रतिबंधित कवरेज और सीमित नेटवर्क वाले अस्पताल, जटिल दावा प्रक्रियाएं और निजी बीमा कंपनियों पर बढ़ती निर्भरता।
ये भी पढ़ें- 'युद्ध सेकंड में तय होता, महीनों में नहीं', आईसीजी कॉन्फ्रेंस में बोले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
उन्होंने पूछा, केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को बीमा कंपनियों की दया पर क्यों छोड़ा जाए। जेसीएम के वरिष्ठ सदस्य ने सीजीएचएस को मजबूत करने का आह्वान किया है। सीजीएचएस को समाप्त करने के बजाय इसे प्रभावशाली बनाया जाए। इसका विस्तारित किया जाए। केंद्र सरकार, इस योजना पर संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों को लागू करे। यदि बीमा शुरू किया जाता है, तो यह सीजीएचएस के अतिरिक्त होना चाहिए, जिसका प्रीमियम सरकार वहन करे। उन्होंने दोहराया कि सीजीएचएस को समाप्त करने के किसी भी प्रयास का कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा।
सीजीएचएस के लाभार्थियों से क्या बोली थी सरकार?
केंद्र सरकार ने गत वर्ष सीजीएचएस के लाभार्थियों से कहा था कि वे अपनी आईडी को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते (आभा) के साथ लिंक करें। तब भी सरकारी कर्मियों ने पहल का विरोध किया था। नतीजा, आभा और सीजीएचएस कार्ड को लिंक करने की प्रक्रिया बहुत धीमी गति से चली। दोनों कार्ड को आपस में लिंक करने के लिए लाभार्थियों को तीस दिन का समय दिया था। यह अवधि 30 अप्रैल 2024 को समाप्त होनी थी, लेकिन अवधि को 30 जून तक बढ़ाया गया।
इसके बाद 30 जून से 120 दिन के भीतर सीजीएचएस और एबीएचए को लिंक करने के लिए कहा गया। महज दो लाख लाभार्थी भी इस पहल से नहीं जुड़े। आखिर में केंद्र सरकार ने 42 लाख से अधिक सीजीएचएस लाभार्थियों को बड़ी राहत प्रदान करते हुए कहा था कि अब सीजीएचएस कार्ड को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते (आभा) के साथ लिंक करना अनिवार्य नहीं है। यह पहल स्वेच्छापूर्वक और वैकल्पिक है। यह व्यवस्था आगामी आदेशों तक जारी रहेगी।
ये भी पढ़ें- ग्वालियर दरगाह में उर्स की इजाजत पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई, चुनौती के घेरे में ASI के आदेश
उस वक्त केंद्र सरकार के कर्मचारी, इन दोनों आईडी को लिंक करने को लेकर असमंजस में रहे। कर्मियों को लगता है कि उक्त दोनों आईडी को लिंक करने के बाद निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधा खत्म या कम हो सकती है। हालांकि केंद्र सरकार की तरफ से इस बाबत, कुछ नहीं कहा गया था। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने इस विषय में 'स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय' के सचिव को एक पत्र लिखा था। उसमें कहा गया कि कर्मचारी संगठनों और जेसीएम ने केंद्र सरकार के इस निर्णय का समर्थन नहीं किया है। यह निर्णय हैरान करने वाला था।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐसा निर्णय लेने से पहले केंद्रीय कर्मचारी संगठनों और स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) की स्टेंडिंग कमेटी की सलाह लेना भी जरुरी नहीं समझा। यह भारत सरकार का एक सोचा समझा कदम है। इसके जरिए सरकारी कर्मियों पर यह दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि वे केवल सरकारी अस्पतालों में ही इलाज कराएं। कर्मचारी, सीजीएचएस एम्पेनलमेंट अस्पतालों को अलविदा कह दें।
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बतौर श्रीकुमार, सीजीएचएस को समाप्त करने के विचार से केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों में चिंता की लहर दौड़ गई है। सीजीएचएस एक समय-परीक्षित स्वास्थ्य सेवा योजना है। इसकी कुछ कमियों को दूर किया जाना चाहिए, लेकिन इसे पूरी तरह समाप्त करना, ये तो बिल्कुल गलत है। सीजीएचएस, एक समय-परीक्षित स्वास्थ्य सेवा मॉडल, को 1954 में शुरू किया गया था। यह एक अंशदायी योजना है, जिसका उद्देश्य केंद्र सरकार के कर्मचारियों, पेंशनभोगियों, सांसदों, पूर्व राष्ट्रपतियों, उपराष्ट्रपतियों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों और यहां तक कि स्वतंत्रता सेनानियों को व्यापक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
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सीजीएचएस के पास कितने निजी अस्पताल सूचीबद्ध
वर्तमान में, सीजीएचएस के पास 2,500 से ज्यादा सूचीबद्ध निजी अस्पताल और डायग्नोस्टिक सेंटर व 5,500 से अधिक वेलनेस सेंटर हैं। सीजीएचएस की कुछ कमियों के बावजूद श्रीकुमार ने इस योजना का बचाव करते हुए कहा, कुछ गंभीर मुद्दे हैं, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे, सीजीएचएस सेंटरों पर डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी, कई आधुनिक उपचारों और नैदानिक प्रक्रियाओं का समावेश न होना, पुरानी उपचार दरें, अस्पतालों को इससे बाहर निकलने को मजबूर करना, सूचीबद्ध अस्पतालों और डायग्नोस्टिक सेंटरों को भुगतान में देरी, सीजीएचएस वेलनेस सेंटरों में दवाओं की कमी और जेनेरिक दवा नीति के तहत विशेष दवाओं से इनकार और सूचीबद्ध अस्पतालों द्वारा निर्धारित दरों से अधिक शुल्क लेना, आदि कमियां देखने को मिलती हैं।
इनके अलावा प्रत्येक जिले में सीजीएचएस केंद्र स्थापित करने की संसदीय स्थायी समिति की सिफारिश का कार्यान्वयन न होना और आयुष-आधारित अस्पतालों का बहुत सीमित पैनलीकरण, ये बातें भी इस योजना की कमियों में शामिल हैं। बीमा सीजीएचएस का विकल्प नहीं बन सकता, श्रीकुमार ने केंद्र सरकार को, प्रस्तावित चिकित्सा बीमा योजना पर चेतावनी देते हुए कहा, इसमें बाह्य रोगी उपचार कवर नहीं किया गया है। उच्च प्रीमियम दरें, खासकर वरिष्ठ नागरिकों के लिए, प्रतिबंधित कवरेज और सीमित नेटवर्क वाले अस्पताल, जटिल दावा प्रक्रियाएं और निजी बीमा कंपनियों पर बढ़ती निर्भरता।
ये भी पढ़ें- 'युद्ध सेकंड में तय होता, महीनों में नहीं', आईसीजी कॉन्फ्रेंस में बोले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह
उन्होंने पूछा, केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को बीमा कंपनियों की दया पर क्यों छोड़ा जाए। जेसीएम के वरिष्ठ सदस्य ने सीजीएचएस को मजबूत करने का आह्वान किया है। सीजीएचएस को समाप्त करने के बजाय इसे प्रभावशाली बनाया जाए। इसका विस्तारित किया जाए। केंद्र सरकार, इस योजना पर संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशों को लागू करे। यदि बीमा शुरू किया जाता है, तो यह सीजीएचएस के अतिरिक्त होना चाहिए, जिसका प्रीमियम सरकार वहन करे। उन्होंने दोहराया कि सीजीएचएस को समाप्त करने के किसी भी प्रयास का कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा।
सीजीएचएस के लाभार्थियों से क्या बोली थी सरकार?
केंद्र सरकार ने गत वर्ष सीजीएचएस के लाभार्थियों से कहा था कि वे अपनी आईडी को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते (आभा) के साथ लिंक करें। तब भी सरकारी कर्मियों ने पहल का विरोध किया था। नतीजा, आभा और सीजीएचएस कार्ड को लिंक करने की प्रक्रिया बहुत धीमी गति से चली। दोनों कार्ड को आपस में लिंक करने के लिए लाभार्थियों को तीस दिन का समय दिया था। यह अवधि 30 अप्रैल 2024 को समाप्त होनी थी, लेकिन अवधि को 30 जून तक बढ़ाया गया।
इसके बाद 30 जून से 120 दिन के भीतर सीजीएचएस और एबीएचए को लिंक करने के लिए कहा गया। महज दो लाख लाभार्थी भी इस पहल से नहीं जुड़े। आखिर में केंद्र सरकार ने 42 लाख से अधिक सीजीएचएस लाभार्थियों को बड़ी राहत प्रदान करते हुए कहा था कि अब सीजीएचएस कार्ड को आयुष्मान भारत स्वास्थ्य खाते (आभा) के साथ लिंक करना अनिवार्य नहीं है। यह पहल स्वेच्छापूर्वक और वैकल्पिक है। यह व्यवस्था आगामी आदेशों तक जारी रहेगी।
ये भी पढ़ें- ग्वालियर दरगाह में उर्स की इजाजत पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई, चुनौती के घेरे में ASI के आदेश
उस वक्त केंद्र सरकार के कर्मचारी, इन दोनों आईडी को लिंक करने को लेकर असमंजस में रहे। कर्मियों को लगता है कि उक्त दोनों आईडी को लिंक करने के बाद निजी अस्पतालों में इलाज की सुविधा खत्म या कम हो सकती है। हालांकि केंद्र सरकार की तरफ से इस बाबत, कुछ नहीं कहा गया था। अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (एआईडीईएफ) के महासचिव सी. श्रीकुमार ने इस विषय में 'स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय' के सचिव को एक पत्र लिखा था। उसमें कहा गया कि कर्मचारी संगठनों और जेसीएम ने केंद्र सरकार के इस निर्णय का समर्थन नहीं किया है। यह निर्णय हैरान करने वाला था।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐसा निर्णय लेने से पहले केंद्रीय कर्मचारी संगठनों और स्टाफ साइड की राष्ट्रीय परिषद (जेसीएम) की स्टेंडिंग कमेटी की सलाह लेना भी जरुरी नहीं समझा। यह भारत सरकार का एक सोचा समझा कदम है। इसके जरिए सरकारी कर्मियों पर यह दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि वे केवल सरकारी अस्पतालों में ही इलाज कराएं। कर्मचारी, सीजीएचएस एम्पेनलमेंट अस्पतालों को अलविदा कह दें।
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