CRPF: कौन हैं नक्सलियों का 'काल' बने 'कोबरा कमांडो' जिनकी पीठ थपथपा रहे 'शाह', 'यूएस मरीन' को देते हैं टक्कर
पहली बार 2015 में गणतंत्र दिवस परेड में सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो, राष्ट्र के सामने आए थे। कोबरा यूनिट का गठन करने से पहले यूएस मरीन कमांडो, उनकी ट्रेनिंग, वर्किंग स्टाइल, सर्जीकल स्ट्राइक और दूसरे कई तरह के ऑपरेशन की जानकारी ली गई।

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छत्तीसगढ़ में गुरुवार को सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो, पुलिस और डीआरजी ने जॉइंट ऑपरेशन चलाकर 1 करोड़ रुपये के इनामी सीसीएम मोडेम बालकृष्णा उर्फ मनोज सहित 10 कुख्यात नक्सलियों को मारा गिराया। सुरक्षा बलों की इस सफलता पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 'एक्स' पर लिखा, नक्सलियों के विरुद्ध हमारे सुरक्षा बलों ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है। समय रहते बचे-खुचे नक्सली भी आत्मसमर्पण कर दें। आगामी 31 मार्च से पहले लाल आतंक का समूल नाश निश्चित है। आखिर कौन हैं नक्सलियों का 'काल' बने सीआरपीएफ के 'कोबरा कमांडो' (कमांडो बटालियन फॉर रिसॉल्यूट एक्शन), जिनकी पीठ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने थपथपाई है। ये कमांडो, 'यूएस मरीन कमांडो' को टक्कर देते हैं। इनका गठन 'यूएस मरीन कमांडो फोर्स' की तर्ज पर हुआ था। ये कमांडो बहादुरी के कई कारनामों में यूएस कमांडो से आगे निकल चुके हैं।

बता दें कि पहली बार 2015 में गणतंत्र दिवस परेड में सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो, राष्ट्र के सामने आए थे। कोबरा यूनिट का गठन करने से पहले यूएस मरीन कमांडो, उनकी ट्रेनिंग, वर्किंग स्टाइल, सर्जीकल स्ट्राइक और दूसरे कई तरह के ऑपरेशन की जानकारी ली गई। इन सबके बाद ही कोबरा यूनिट स्थापित हुई थी। यह विशिष्ट कमांडो फोर्स जंगल में बिना किसी मदद के 11 दिनों तक लड़ सकती है। इसी वजह से सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो, विश्व में अव्वल माने जाते हैं। नक्सलियों, आतंकियों से लड़ने व दूसरे ऑपरेशनों के लिए इस विशिष्ट फोर्स को खास तरह की ट्रेनिंग दी गई है।
हथियार, वर्दी एवं तकनीकी उपकरणों के मामले में भी 'कोबरा' दूसरे सभी बलों से पूरी तरह अलग है। बिना किसी मदद के लगातार डेढ़ सप्ताह तक जंगलों में लड़ते रहना इस फोर्स की खासियत है। वैश्विक आतंकी और अलकायदा सरगना लादेन को मार गिराने वाले यूएस मरीन कमांडो बिना किसी मदद के जंगल में लगातार तीन रातों तक लड़ सकते हैं। दूसरी ओर कोबरा के हर जवान को ट्रेनिंग के दौरान सात दिन तक जंगल में लड़ने की परीक्षा पास करना जरूरी है।
करीब एक दशक पहले कोबरा ने सारंडा (झारखंड) के घने जंगलों में 11 दिन तक बिना किसी मदद के एक बड़े ऑपरेशन को अंजाम दिया था। वजन लेकर, जंगल में नियमित रूप से लड़ते रहने का रिकॉर्ड ब्रिटेन के विशिष्ट कमांडो दस्ते 'एसएएस' के नाम पर रहा है। यह दस्ता 30 किलो वजन उठाकर दस रातें जंगल में गुजार सकता है, जबकि कोबरा कमांडो 23 किलो वजन के साथ 11 रातों तक गहन जंगल से गुजरने में समर्थ हैं।
कोबरा कमांडो की खूबियों में कई बातें शामिल हैं। जैसे यूएस मरीन कमांडो की तर्ज पर कोबरा को मरपट (मरीन पैटर्न) वर्दी मिलती है। इसमें सभी तकनीकी उपकरण लगे होते हैं। कोबरा कमांडो को यूएस आर्मी जैसा पैसजट (पर्सनल आर्मर सिस्टम-ग्राउंड ट्रूप्स) हेलमेट मिलता है। यूएस के एम-1 हेलमेट के अलावा जर्मन आर्मी का 'स्टेहेलम' हेलमेट भी कोबरा की शान है।
इजराइल निर्मित एमटीएआर व एक्स-95 राइफल और खुखरी की तर्ज पर कोबरा कमांडो 'मैशे' चाकू से लैस होते हैं। जीपीएस के अलावा रात को दिखने में मदद करने वाला चश्मा भी कोबरा कमांडो को मिलता है। चूंकि कोबरा को बाहर से कोई मदद नहीं मिलती, इसलिए इन्हें खास प्रशिक्षण दिया जाता है। मैगी जैसी कोई खाद्य सामग्री इन्हें प्रदान की जाती है। पानी की बोतल को झरने या तालाब से भरना पड़ता है। खाने का सामान खत्म हो जाता है, तो जंगली सामग्री से काम चलाना पड़ेगा। जवानों को ट्रेनिंग में कई जंगली वनस्पतियों की जानकारी दी जाती है। कोबरा कमांडो अपने जूते और वर्दी एक मिनट के लिए भी नहीं उतारते।