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चिंताजनक: पर्यावरणीय परिवर्तन के कारण जंगलों में गंभीर खतरा; तेजी से घट रही कीटभक्षी पक्षियों की आबादी

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: शिवम गर्ग Updated Mon, 24 Nov 2025 07:07 AM IST
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Eastern Himalaya Forest Crisis: Rapid Decline in Insectivorous Birds
कीटभक्षी पक्षी - फोटो : अमर उजाला प्रिन्ट/एजेंसी
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पूर्वी हिमालय के घने, ठंडे और स्थिर जलवायु वाले जंगलों में एक गंभीर खतरा आकार ले रहा है। शोध बताता है कि इंसानी दखल, खासकर चुनिंदा पेड़ों की कटाई से पैदा हुए तापमान व नमी के उतार-चढ़ाव ने छोटे कीटभक्षी पक्षियों की जीवन क्षमता, वजन और दीर्घकालिक जीवित रहने की दर को तेजी से कमजोर कर दिया है।

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इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बंगलूरू से जुड़े शोधकर्ताओं ने अरुणाचल प्रदेश के ईगल्स नेस्ट वन्यजीव अभयारण्य में 2011 से 2021 तक यह अध्ययन किया। इस दौरान वैज्ञानिकों ने हल्के एल्यूमिनियम के छल्लों से पक्षियों को टैग किया और हर वर्ष उन्हीं स्थानों पर लौटकर संख्या, वजन और सर्वाइवल रेट मापे। जर्नल ऑफ एप्लाइड इकॉलॉजी, ब्रिटिश इकोलॉजिकल सोसायटी में प्रकाशित परिणाम दिखाते हैं कि चयनात्मक कटाई वाले जंगलों में तापमान व नमी में बड़ा बदलाव आया, जबकि प्राकृतिक जंगल स्थिर बने रहे। इसलिए वहां रहने वाले छोटे कीटभक्षी पक्षियों को तनाव या अनुकूलन की कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। दिन में अधिक गर्मी, रात में असामान्य ठंड थर्मल स्पेशलिस्ट पक्षियों के लिए घातक बदलाव लाए। थर्मल स्पेशलिस्ट पक्षियों से तात्पर्य उन पक्षी प्रजातियों से है जो बहुत स्थिर और सीमित दायरे वाले तापमान में ही सुचारू रूप से जीवित रह पाते हैं।

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तेजी से घटती संख्या और वजन
अध्ययन बताता है कि जो प्रजातियां नए माहौल में छोटे सुरक्षित माइक्रो-हैबिटैट खोज लेती हैं, वे फिलहाल जीवित बनी हैं,लेकिन जिन्हें अपने पुराने ठंडे और नम आवास नहीं मिलते, उनका वजन घट रहा है,संख्या लगातार कम हो रही है और दीर्घकालिक जीवन संभावना तेजी से गिर रही है। मुख्य शोधकर्ता अक्षय भारद्वाज के अनुसार हम समझना चाहते हैं कि कुछ पक्षी कटाई के बाद भी टिके रहते हैं, जबकि कुछ की संख्या बहुत तेजी से गिरती है।

संरक्षण की तत्काल आवश्यकता
शोधकर्ताओं के मुताबिक संरक्षण रणनीति में सबसे जरूरी कदम हैं अलग-अलग ऊंचाई वाले क्षेत्रों में प्राथमिक (अप्रभावित) जंगलों को बचाना। जहां कटाई पहले ही हो चुकी है वहां माइक्रो क्लाइमेट सुधार के उपाय करना, जैसे छाया बढ़ाना, छोटे जल स्रोत बनाना और पक्षियों के लिए छोटे ठंडे सुरक्षित क्षेत्रों को बनाए रखना। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यदि कीटभक्षी पक्षियों की संख्या घटी तो जंगलों में कीड़ों की आबादी तेजी से बढ़ सकती है।

लंबे समय के डाटा की अहमियत
शोध के अनुसार जलवायु गर्म होने के साथ-साथ जंगलों में मौजूद छोटे सुरक्षित माइक्रो- हैबिटैट ही पक्षियों के अस्तित्व की जीवनरेखा बन सकते हैं। इसलिए ऐसे अध्ययनों से मिलने वाला दीर्घकालिक डेटा यह समझने में निर्णायक भूमिका निभाएगा कि कौन-सी प्रजातियां सबसे अधिक जोखिम में हैं और किस तरह की संरक्षण नीति उन्हें बचा सकती है। बढ़ते वन-विनाश और बदलती जलवायु ने छोटे कीटभक्षी पक्षियों को विलुप्ति के मुहाने पर ला दिया है। यदि हस्तक्षेप नहीं किए गए, तो यह संकट पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर देगा।

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