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53rd CJI Oath Ceremony: SC के नए CJI, जस्टिस सूर्यकांत कौन हैं? जानें उनके 10 बड़े फैसले।

वीडियो डेस्क, अमर उजाला डॉट कॉम Published by: अभिलाषा पाठक Updated Mon, 24 Nov 2025 10:09 AM IST
53rd CJI Oath Ceremony: Who is Justice Surya Kant, the new CJI of the Supreme Court? Learn about his 10 major
जस्टिस सूर्यकांत सोमवार को देश के 53वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ लेंगे। वह जस्टिस बीआर गवई की जगह लेंगे। जस्टिस सूर्यकांत जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने, बिहार मतदाता सूची समीक्षा व पेगासस स्पाइवेयर केस जैसे कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे हैं। वह 9 फरवरी, 2027 को सेवानिवृत्त होंगे। बतौर सीजेआई उनका कार्यकाल करीब 15 माह का होगा।निवर्तमान सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई सरकारी पद नहीं लेंगे। उन्होंने जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली का पुरजोर बचाव किया। निवर्तमान सीजेआई ने अपने कार्यकाल के दौरान किसी महिला जज की नियुक्ति न करने पर अफसोस जताया। अपने कार्यकाल के आखिरी दिन, निवर्तमान सीजेआई जस्टिस गवई ने लगभग सभी जरूरी मुद्दों पर बात की। जिसमें जूता फेंकने की घटना, न्यायपालिका में लंबित मामले, राष्ट्रपति संदर्भ पर उनके फैसले की आलोचना, अनुसूचित जातियों में क्रीमी लेयर को आरक्षण के फायदों से बाहर रखने जैसे विषय शामिल हैं। उन्होंने कहा, मैंने कार्यभार संभालने के साथ ही साफ कर दिया था कि मैं सेवानिवृत्ति के बाद कोई भी आधिकारिक काम नहीं लूंगा। अगले 9-10 दिनों के लिए आराम का वक्त, उसके बाद, एक नई पारी। यहां अपने सरकारी आवास पर मीडिया से अनौपचारिक बातचीत के दौरान उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने में मदद करती है। उन्होंने स्वीकार किया कि कोई भी व्यवस्था परिपूर्ण नहीं होती। इस बात की आलोचना होती है कि न्यायाधीश स्वयं अपनी नियुक्ति करते हैं। लेकिन इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है। हम खुफिया ब्यूरो की रिपोर्ट और कार्यपालिका के विचारों पर भी गौर करते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय कॉलेजियम का ही होता है। जूता फेंकने को लेकर जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा करने वाले वकील को माफ क्यों किया, तो निवर्तमान सीजेआई ने कहा, मुझे लगता है कि यह फैसला मैंने अपने आप लिया था, शायद बचपन में बनी सोच की वजह से। मुझे लगा कि सही यही होगा कि मैं मामले को नजरअंदाज कर दूं।तो चलिए जानते हैं जस्टिस सूर्यकांत के अब तक के 10 बड़े फैसले...

अनुच्छेद 370 पर फैसला
जस्टिस सूर्यकांत उस ऐतिहासिक पीठ का हिस्सा थे जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा था, जिसने जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया था। यह फैसला हाल के समय के सबसे महत्वपूर्ण संवैधानिक फैसलों में से एक है।
राजद्रोह कानून पर रोक
जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ में भी शामिल थे जिसने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून को प्रभावी रूप से निलंबित कर दिया था और राज्यों और केंद्र को निर्देश दिया था कि जब तक सरकार इस प्रावधान पर पुनर्विचार पूरा नहीं कर लेती, तब तक वे धारा 124ए के तहत नई एफआईआर दर्ज न करें। इस आदेश को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक बड़े कदम के रूप में देखा गया था।पेगासस का मामला
जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने पेगासस निगरानी के आरोपों की सुनवाई की थी। अदालत ने इन दावों की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की और टिप्पणी की कि राज्य को "राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर खुली छूट" नहीं दी जा सकती।

बिहार मतदाता सूची संशोधन
बिहार मतदाता सूची संशोधन एक अन्य महत्वपूर्ण आदेश में, जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग से विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान बिहार की मसौदा सूची से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं का विवरण प्रकट करने को कहा तथा चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता के महत्व पर बल दिया।

लैंगिक न्याय और स्थानीय शासन
उन्होंने एक ऐसी पीठ का नेतृत्व किया जिसने गैरकानूनी तरीके से पद से हटाई गई एक महिला सरपंच को बहाल किया और अपने फैसले में लैंगिक भेदभाव की बात कही। बाद में उन्होंने निर्देश दिया कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं—जो कानूनी बिरादरी में लैंगिक समानता के लिए एक अभूतपूर्व कदम था।

राज्यपाल-राष्ट्रपति शक्तियों का संदर्भ
जस्टिस सूर्यकांत राज्य विधानों से संबंधित राज्यपालों और राष्ट्रपति की शक्तियों पर राष्ट्रपति संदर्भ की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे—यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका व्यापक राजनीतिक और संघीय निहितार्थ है। फैसले का इंतजार है।


पीएम मोदी के काफिले में सुरक्षा चूक
जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ में भी थे जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2022 की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा चूक की जांच के लिए न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में एक पैनल नियुक्त किया था, उन्होंने कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में न्यायिक जांच की आवश्यकता होती है।

वन रैंक-वन पेंशन
एक रैंक-एक पेंशन (ओआरओपी) न्यायमूर्ति कांत ने एक रैंक-एक पेंशन (ओआरओपी) योजना को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया, जबकि सशस्त्र बलों में स्थायी कमीशन में समानता की मांग करने वाली महिला अधिकारियों से संबंधित मामलों की सुनवाई जारी रखी।

महिलाओं के लिए जस्टिस सूर्यकांत का निर्देश
जस्टिस सूर्यकांत ने महिलाओं के लिए भी एक अहम फैसला लिया था। जिसके तहत उन्होंने निर्देश दिया था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित बार एसोसिएशनों में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं।

पॉडकास्टर रणवीर इलाहबादिया के मामले में भी बेंच का हिस्सा थे
जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने पॉडकास्टर रणवीर इलाहबादिया को अपमानजनक टिप्पणियों के लिए चेतावनी देते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करने का लाइसेंस नहीं है।
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