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Justice Surya Kant: भारत के 53वें CJI बने जस्टिस सूर्यकांत; जानें हरियाणा के गांव से सुप्रीम कोर्ट तक का सफर

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Mon, 24 Nov 2025 10:14 AM IST
सार

धूप की तपिश में पसीने से तरबतर एक दुबला-पतला किशोर अपने भाइयों के साथ मेहनत करने में मशगूल था। अचानक उसने थ्रेशर मशीन बंद कर दी, आसमान की ओर देखा और बुलंद आवाज में कहा कि मैं अपनी जिंदगी को बदल दूंगा.... हरियाणा के छोटे गांव पेटवाड़ से निकले जस्टिस सूर्यकांत अब भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश बन गए हैं। आइए हिसार गांव से सुप्रीम कोर्ट तक की उनके अद्भभुत यात्रा के बारे में जानते है। 

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Justice Surya Kant 53rd CJI oath Supreme Court journey from a village in Haryana to Legal Profession and Top
भारत के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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देश की राजधानी से करीब 136 किलोमीटर दूर स्थित हरियाणा के हिसार जिले के छोटे-से गांव पेटवाड़ में एक तपती दोपहर में गेहूं की फसल की मड़ाई चल रही थी। धूप की तपिश में पसीने से तरबतर एक दुबला-पतला किशोर अपने भाइयों के साथ मेहनत करने में मशगूल था। अचानक उसने थ्रेशर मशीन बंद कर दी, आसमान की ओर देखा और बुलंद आवाज में कहा कि मैं अपनी जिंदगी को बदल दूंगा। वह बस मैट्रिक पास एक साधारण-सा लड़का था। उस वक्त किसी को यह अंदाजा नहीं था कि सरकारी स्कूल में बोरी पर बैठने वाला वही तालिब-ए-इल्म, एक दिन अदालती इंसाफ का चेहरा बनकर लोगों को न्याय दिलाने का काम करेगा। उस बच्चे का नाम था सूर्यकांत, जिन्होंने आज भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के तौर पर शपथ ले ली है। जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर, 2025 से 9 फरवरी, 2027 तक लगभग 15 महीने देश की सर्वोच्च अदालत का नेतृत्व करेंगे।
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कैसे हुई शुरुआत, समझिए
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के छोटे-से गांव पेटवाड़ (नारनौंद) में मदनगोपाल शास्त्री और शशि देवी के घर हुआ। पिता संस्कृत के शिक्षक थे, जबकि माता एक साधारण गृहिणी। वे पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके तीन भाई ऋषिकांत (सेवानिवृत्त शिक्षक), शिवकांत (डॉक्टर) और देवकांत (सेवानिवृत्त आईटीआई प्रशिक्षक) और एक बहन कमला देवी हैं। पिता चाहते थे कि बेटा उच्च कानूनी शिक्षा (एलएलएम) प्राप्त करे, मगर जस्टिस सूर्यकांत ने उन्हें मनाया कि वह एलएलबी के बाद सीधे वकालत शुरू करेंगे।

महत्वपूर्ण मामले
1.   चुनाव आयोग को बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए 65 लाख मतदाताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था।
2.   उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा समाप्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था।
3.   ओआरओपी (वन रैंक वन पेंशन) को संाविधानिक रूप से वैध माना और भारतीय सशस्त्र बलों में महिलाओं के लिए समान अवसरों का समर्थन किया।
4.   जस्टिस कांत उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने असम से संबंधित नागरिकता के मुद्दों पर धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा था।
5.   जस्टिस कांत दिल्ली आबकारी शराब नीति मामले में अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ के सदस्य थे। हालांकि, उन्होंने केजरीवाल की गिरफ्तारी को जायज ठहराया था।
 
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परिवार
जस्टिस सूर्यकांत की शादी वर्ष 1980 में सविता शर्मा से हुई थी, जो पेशे से लेक्चरर रहीं और बाद में एक कॉलेज की प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हुईं। उनके परिवार में दो बेटियां हैं, जो अपने पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए कानून में स्नातकोत्तर (मास्टर डिग्री) की पढ़ाई कर रही हैं।

कानूनी सफर
जस्टिस सूर्यकांत ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से 1984 में कानून की डिग्री हासिल की। उसी वर्ष उन्होंने हिसार जिला न्यायालय में अपने कानूनी सफर की शुरुआत भी की। एक साल यहां वकालत करने के बाद 1985 में, न्यायमूर्ति कांत पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में अपनी वकालत शुरू करने के लिए चंडीगढ़ चले गए। इसी हाईकोर्ट में न्यायाधीश रहते हुए उन्होंने 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय से कानून में स्नातकोत्तर की डिग्री भी हासिल की।
 

सबसे युवा महाधिवक्ता
जस्टिस कांत महज 38 वर्ष की आयु में सात जुलाई, 2000 को हरियाणा के सबसे कम उम्र के महाधिवक्ता बने। इसके बाद वह वरिष्ठ अधिवक्ता भी नियुक्त हुए और 2004 में उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। 14 वर्षों से अधिक समय तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवा देने के बाद, वह अक्तूबर, 2018 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और फिर 24 मई, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने।

कवि भी हैं
न्यायमूर्ति सूर्यकांत एक बेहतरीन कवि भी हैं। जब वह कॉलेज में थे, तब उनकी एक कविता, 'मेंढ पर मिट्टी चढ़ा दो' काफी लोकप्रिय हुई थी। पर्यावरण से उन्हें बेहद प्रेम है। गांव में एक तालाब के जीर्णोद्धार के लिए उन्होंने अपनी जेब से दान दिया। उसके चारों ओर उन्होंने पेड़-पौधे भी लगवाए हैं। इसके अलावा, वह खेती के भी शौकीन हैं।

किताब भी लिखी
जस्टिस सूर्यकांत पत्रकारिता के पेशे के बेहद मुरीद हैं। वह पत्रकार की तरह ही किसी मामले की तह में जाना पसंद करते हैं। वह खुद को दिल से पत्रकार कहते हैं। इसके अलावा, उन्होंने एडमिनिस्ट्रेटिव जियोग्राफी ऑफ इंडिया शीर्षक से एक किताब भी लिखी है, जो साल 1988 में प्रकाशित हुई।

विवादों में रहे
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में रहने के दौरान जस्टिस सूर्यकांत पर गंभीर कदाचार के आरोप लगे थे। 2012 में, एक रियल एस्टेट एजेंट ने उन पर करोड़ों रुपये के लेन-देन में शामिल होने का आरोप लगाया था। 2017 में, पंजाब के एक कैदी ने शिकायत दर्ज कराई और कहा कि जस्टिस कांत ने जमानत देने के लिए रिश्वत ली थी। हालांकि, ये आरोप साबित नहीं हो सके।
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