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कानों देखी : इंडिगो के मामले में हर कोई सक्रिय, क्या सिर्फ विमानन कंपनी ही है दोषी?

Shashidhar Pathak शशिधर पाठक
Updated Fri, 12 Dec 2025 01:57 PM IST
सार

इंडिगो संकट के बाद एक बार फिर बैठकों का दौर जारी है। 17 दिसंबर को संसद की समिति इस मामले में डीजीसीए को भी तलब कर रही है। अन्य नियामक एजेंसियों की भी जिम्मेदारी सुनिश्चित की जा रही है। इंडिगो के सीईओ को तलब करने की तैयारी है।

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Everyone is active in the Indigo case is only the airline company to blame?
इंडिगो - फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
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विस्तार
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इंडिगो संकट के बाद एक बार फिर बैठकों का दौर जारी है। 17 दिसंबर को संसद की समिति इस मामले में डीजीसीए को भी तलब कर रही है। अन्य नियामक एजेंसियों की भी जिम्मेदारी सुनिश्चित की जा रही है। इंडिगो के सीईओ को तलब करने की तैयारी है। उसकी उड़ानों में 10 प्रतिशत की कटौती कर दी गई है। घरेलू सेवा में उसकी हिस्सेदारी (56 प्रतिशत) ही अपने आप में सवालों के घेरे में है। यहां तक कि इंडिगो का कहना है कि घरेलू छोड़िए, वह एशिया की नंबर वन विमानन कंपनी है। इतना शानदार रिकार्ड भी किसी विमानन कंपनी के पास नहीं है। अब इस मामले में नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू सक्रिय हैं। हाईकोर्ट ने भी सरकार से तीखे सवाल पूछ लिए हैं। पीएमओ भी सक्रिय है। लेकिन संसदीय समिति के सदस्य और एनडीए सांसद ‘ऑफ द रिकार्ड’ कह रहे हैं कि क्या सारा दोष इंडिगो का है? सूत्र का कहना है कि मैं बोल नहीं सकता, लेकिन क्या बढ़ती मोनोपॉली, डीजीसीए और अन्य को माफ किया जा सकता है?
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चिरपरिचित अंदाज में सत्ता पक्ष को घेर रहे संजय सिंह
आम आदमी पार्टी ने संसद भवन में अपना एक कमांडर भेज रखा है। इस कमांडर को सदन में बिना दहाड़े चैन नहीं आता। यह हम नहीं भाजपा के ही एक सांसद ने कहा और मुस्कराते हुए आगे बढ़ गए। चुनाव सुधार पर चर्चा के लिए जब संजय सिंह बोलने के लिए खड़े हुए तो आसन पर उपसभापति हरिबंश सिंह थे। संजय सिंह अपनी पुरानी रौ में आने के लिए बेताब रहे। उप सभापति नियमों का हवाला देकर उन्हें टोकते रहे। हालत यहां तक पहुंच गई कि विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को खुद खड़े होकर संजय सिंह को अपनी शील्ड देनी पड़ी। यहां तक कि संजय सिंह भी आसन की तरफ ही सवाल उठाने लगे। उन्होंने कहा कि आप हमें चुनाव सुधार की चर्चा के विषय पर नहीं बोलने दे रहे हैं। उनकी पार्टी को संजय सिंह की तरह केन्द्र सरकार पर हमला बोलने वाला दूसरा चेहरा नहीं मिल पाया है। पहले राघव चड्ढा थे, लेकिन आजकल उनके तेवर न जाने कहां आराम फरमा रहे हैं।
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असम-बंगाल में तृणमूल का मास्टर प्लान 
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी का मानना है कि भाजपा को हराना है तो कांग्रेस को संजीवनी मिलना जरूरी है। ममता को यह ज्ञान पुराने अनुभव से आया है। हालांकि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में चाहती हैं कि कांग्रेस पूरी मजबूती से लड़े। ममता बनर्जी एक मास्टर प्लान बना रही हैं। उन्हें किसी भी हाल में भाजपा को पश्चिम बंगाल में रोकना है। इसके अलावा ममता बनर्जी चाहती हैं कि असम में भी तीसरी बार भाजपा सत्ता में न आने पाए। इसके लिए ममता ने मन बनाया है कि वह असम में सीमित सीट पर ही चुनाव लड़ेंगी। ममता जानती है कि असम में कांग्रेस मजबूत है और वह कांग्रेस को वहां कमजोर नहीं देखना चाहतीं। कांग्रेस के रणनीतिकार भी समझ रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में पुन: वापसी बहुत जटिल है। लेकिन वह पश्चिम बंगाल में पूरी ताकत से लड़ना चाहते हैं। बताते हैं कि इससे ममता बनर्जी सरकार विरोधी वोट का बंटवारा होगा। टीम ममता को एक भरोसा और है। उनका कहना है कि जबतक पश्चिम बंगाल में सुवेंदु बाबू(अधिकारी) भाजपा का झंडा उठाए हैं, तबतक ममता सरकार जिंदाबाद। पार्टी के एक राज्यसभा सदस्य के मुताबिक दिलीप घोष तक गनीमत थी। वह संगठन खड़ा करे थे। जबकि सुवेन्दु बाबू खुद को खड़ा कर रहे हैं। वह भी उनकी स्टाइल तृणमूल कांग्रेस से जुदा नहीं है। भाजपा के पास दूसरा कोई चेहरा नहीं है। इसलिए ममता को कोई खतरा भी नहीं है।  

‘एसआईआर’पर कौन क्या कर रहा?
चुनाव आयोग के खिलाफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने झंडा बुलंद कर रखा है। भाजपा का कहना है कि राहुल गांधी के पास कोई समाधान नहीं होता। दूसरी तरफ अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में अपने कार्यकर्ताओं से ‘एसआईआर’ पर सब काम छोड़कर गंभीरता बनाए रखने की हिदायत दी है। ममता बनर्जी ने भी यही किया है। उन्होंने पश्चिम बंगाल में लोगों से कहा है कि वह चुनाव आयोग की तरफ से दिए जा रहे फार्म को उत्साह पूर्वक भरें। ममता ने राज्य के लोगों को गारंटी दी है कि उनका वोट कोई नहीं काटने पाएगा। एसआईआर में कोई धांधली न होने की गारंटी वह खुद ले रही हैं और किसी का जायज वोट कटा तो इसकी लड़ाई वह खुद लड़ेंगी। तृणमूल के लोगों का कहना है कि हमारे पास पश्चिम बंगाल में संगठन है। जबकि कांग्रेस का संगठन देश भर में कमजोर है। राहुल गांधी के पास पार्टी के प्रतिबद्ध लोगों की टीम नहीं है। इस वजह से राहुल पार्टी के इकलौते ‘फील्डमार्शल’ बने रहते हैं।
 
शीतकालीन सत्र: अपने-अपने मुद्दे, अपनी-अपनी रणनीति
संसद का शीतकालीन सत्र वंदेमातरम पर चर्चा और चुनाव सुधार पर चर्चा के लिए याद किया जाएगा। इस बार कांग्रेस के रणनीतिकार बड़े खुश नजर आ रहे हैं। उन्हें वंदे मातरम पर चर्चा के बाद चुनाव सुधार पर चर्चा में बड़ी जीत का आभास जो हो रहा है।  राहुल गांधी ‘एसआईआर’ मुद्दे पर चर्चा चाह रहे थे। सत्ता पक्ष इसके लिए तैयार नहीं था। लेकिन बिजनेस एडवाइजरी कमेटी में इस पर सहमति बन गई कि पहले वंदे मातरम गीत के 150 साल पूरे होने पर चर्चा हो और इसके बाद चुनाव सुधार पर। कांग्रेस को ‘हां’करने में कोई दिक्कत नहीं हुई। भाजपा भी पश्चिम बंगाल में प्रस्तावित चुनाव के बाबत खुश थी। वंदे मातरम पर चर्चा की शुरुआत भी प्रधानमंत्री ने ही की। प्रियंका गांधी ने अपना कौशल दिखाया। अब बारी चुनाव सुधार पर चर्चा थी। गृहमंत्री अमित शाह ने चर्चा का जवाब दिया। राहुल गांधी ने खुली चुनौती देकर देकर उन्हें उलझाने की कोशिश की। राहुल गांधी के दफ्तर में लाइव प्रसारण देख रही टीम इसे अपनी जीत की तरह देख रही है।
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