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G RAM G: जी राम जी से होगा किसानों-श्रमिकों का कल्याण? मनरेगा में इन कमियों को दूर करने में मिल सकती है मदद
डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला
Published by: संध्या
Updated Tue, 16 Dec 2025 05:44 PM IST
सार
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में विकसित भारत- जी राम जी विधेयक, 2025 पेश कर दिया है। विपक्ष लगातार इस बिल का विरोध क रहा है। विपक्ष का दावा है कि इसका केवल नाम बदला जा रहा है।
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विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन ग्रामीण
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
विकसित भारत जी राम जी बिल संसद में पेश हो गया है। यह मनरेगा योजना का स्थान लेगा। कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने इसे लोकसभा के पटल पर रखा और इसे किसानों-श्रमिकों के हितों के अनुरूप बताया। विपक्ष ने यह कहते हुए इसका विरोध किया है कि सरकार केवल बिलों के नाम बदलकर उन्हें अपने खाते में शामिल करना चाहती है, लेकिन इससे श्रमिकों का भला नहीं होगा।
मनरेगा आने के बाद श्रमिकों का कल्याण हुआ। उन्हें अपने घर के आसपास ही काम मिलने लगा। उन्हें यह काम उन दिनों में मिलता है जब उनके पास कोई काम नहीं होता है। इससे श्रमिकों को अपने मनचाहे समय पर काम पाने से उनकी बेरोजगारी को कम करने में बड़ी सफलता मिली। एक आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, मनरेगा के अंतर्गत 2013 से 2021-22 के बीच हर साल लगभग आठ करोड़ को रोजगार प्राप्त हुआ। श्रमिकों के संदर्भ में यह एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। लेकिन इसका इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि पंजाब जैसे राज्यों में कृषि के लिए श्रमिक मिलने में परेशानी होने लगी।
कई बार उद्योगपतियों ने इस बात पर चिंता जताई और कहा कि मनरेगा जैसी योजनाओं के कारण उद्योगों को श्रमिकों के मिलने में परेशानी हो रही है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है। इस बयान को श्रमिक विरोधी बताकर इसे खारिज किया गया, लेकिन यह एक सच्चाई है कि उद्योगों और कृषि कार्यों के लिए श्रमिकों के मिलने में परेशानी हो रही है।
सरकार ने विकसित भारत जी राम जी योजना में खेती के बुवाई और कटाई के सीजन में काम न देने का प्रावधान किया है। यह इसी समस्या का इलाज माना जा रहा है। हालांकि, इससे उद्योगों की समस्या और अधिक बढ़ सकती है क्योंकि कटाई बुवाई के सीजन में श्रमिकों को अपने आसपास काम मिल जाएगा, जबकि बाद के सीजन में वे जी राम जी योजना में काम हासिल करेंगे। इससे वे अपना घर छोड़ रोजगार के लिए दूसरे शहरों में जाने से बचने की कोशिश कर सकते हैं। इससे उद्योगों को नुकसान होगा।
सत्ता पक्ष-विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच एक तथ्य यह है कि मनरेगा योजना में कई राज्यों में भारी मात्रा में भ्रष्टाचार की बात सामने आई थी। देश में जगह-जगह पर इस तरह की खबरें सामने आई जहां मनरेगा के नाम पर श्रमिकों को पैसा दे दिया गया, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दिया गया। बदले में काम देने वाले और श्रमिकों के बीच पैसे की बंदरबांट कर ली गई। अनेक जगहों पर मशीनों से काम कराकर उसे मनरेगा में किया गया बताकर पैसा ले लिया गया। कई स्थानों पर मृत लोगों के नाम पर मनरेगा योजना में काम हुआ दिखाकर भ्रष्टाचार किया गया।
डिजिटलाइजेशन से रुकेगा भ्रष्टाचार
लेकिन अब सरकार ने मनरेगा श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन से लेकर भुगतान तक लगभग सभी सुविधाएं डिजिटल कर दिया है। इससे मनरेगा में भ्रष्टाचार को रोकने में सहायता मिली है। जी राम जी योजना में पहले ही सरकार सभी सुविधाओं और पंजीकरण को डिजिटल करके चल रही है। इससे इसमें भ्रष्टाचार की संभावना बिल्कुल समाप्त हो जाएगी।
यह बिल दलित-आदिवासी विरोधी- प्रबल प्रताप शाही
अखिल भारतीय किसान कांग्रेस के नेशनल कोऑर्डिनेटर और प्रवक्ता प्रबल प्रताप शाही ने अमर उजाला से कहा कि मनरेगा कानून लागू होने के बाद देश के गरीबों-श्रमिकों को एक सहारा मिला था। जिस समय उनके पास काम नहीं होता था, वे अपने ग्राम प्रधान के पास जाकर काम मांग सकते थे। लेकिन इस बिल में बुवाई-कटाई के सीजन में श्रमिकों को काम मांगने का कोई अधिकार नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि यह कदम सीधे-सीधे दलितों-आदिवासियों के विरुद्ध है। आज भी लाखों दलित परिवारों और आदिवासियों के पास कोई भूमि नहीं है। वे भूमिहीन श्रमिक के रूप में काम करते हुए अपनी आजीविका चलाते हैं। लेकिन सरकार ने विशेष दिनों में काम मांगने का अधिकार छीनकर उन्हें मजबूर बनाने का काम किया है।
प्रबल प्रताप शाही ने आरोप लगाया कि यह बिल धनिकों को ताकत देने और श्रमिकों को मजबूर करने के लिए लाया जा रहा है क्योंकि जब श्रमिकों के पास सरकार से काम मांगने का अधिकार नहीं होगा, उस समय वे बड़े किसानों और उद्योगों में उनकी मनचाही कीमत पर काम करने के लिए मजबूर होंगे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में कल्याणकारी सरकारें जनता के कल्याण के लिए काम करती हैं, लेकिन यह सरकार धनिकों और उद्यमियों के हितों में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार को यह कानून तत्काल वापस लेना चाहिए।
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मनरेगा आने के बाद श्रमिकों का कल्याण हुआ। उन्हें अपने घर के आसपास ही काम मिलने लगा। उन्हें यह काम उन दिनों में मिलता है जब उनके पास कोई काम नहीं होता है। इससे श्रमिकों को अपने मनचाहे समय पर काम पाने से उनकी बेरोजगारी को कम करने में बड़ी सफलता मिली। एक आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, मनरेगा के अंतर्गत 2013 से 2021-22 के बीच हर साल लगभग आठ करोड़ को रोजगार प्राप्त हुआ। श्रमिकों के संदर्भ में यह एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। लेकिन इसका इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि पंजाब जैसे राज्यों में कृषि के लिए श्रमिक मिलने में परेशानी होने लगी।
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कई बार उद्योगपतियों ने इस बात पर चिंता जताई और कहा कि मनरेगा जैसी योजनाओं के कारण उद्योगों को श्रमिकों के मिलने में परेशानी हो रही है। इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ रहा है। इस बयान को श्रमिक विरोधी बताकर इसे खारिज किया गया, लेकिन यह एक सच्चाई है कि उद्योगों और कृषि कार्यों के लिए श्रमिकों के मिलने में परेशानी हो रही है।
सरकार ने विकसित भारत जी राम जी योजना में खेती के बुवाई और कटाई के सीजन में काम न देने का प्रावधान किया है। यह इसी समस्या का इलाज माना जा रहा है। हालांकि, इससे उद्योगों की समस्या और अधिक बढ़ सकती है क्योंकि कटाई बुवाई के सीजन में श्रमिकों को अपने आसपास काम मिल जाएगा, जबकि बाद के सीजन में वे जी राम जी योजना में काम हासिल करेंगे। इससे वे अपना घर छोड़ रोजगार के लिए दूसरे शहरों में जाने से बचने की कोशिश कर सकते हैं। इससे उद्योगों को नुकसान होगा।
सत्ता पक्ष-विपक्ष के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच एक तथ्य यह है कि मनरेगा योजना में कई राज्यों में भारी मात्रा में भ्रष्टाचार की बात सामने आई थी। देश में जगह-जगह पर इस तरह की खबरें सामने आई जहां मनरेगा के नाम पर श्रमिकों को पैसा दे दिया गया, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दिया गया। बदले में काम देने वाले और श्रमिकों के बीच पैसे की बंदरबांट कर ली गई। अनेक जगहों पर मशीनों से काम कराकर उसे मनरेगा में किया गया बताकर पैसा ले लिया गया। कई स्थानों पर मृत लोगों के नाम पर मनरेगा योजना में काम हुआ दिखाकर भ्रष्टाचार किया गया।
डिजिटलाइजेशन से रुकेगा भ्रष्टाचार
लेकिन अब सरकार ने मनरेगा श्रमिकों का रजिस्ट्रेशन से लेकर भुगतान तक लगभग सभी सुविधाएं डिजिटल कर दिया है। इससे मनरेगा में भ्रष्टाचार को रोकने में सहायता मिली है। जी राम जी योजना में पहले ही सरकार सभी सुविधाओं और पंजीकरण को डिजिटल करके चल रही है। इससे इसमें भ्रष्टाचार की संभावना बिल्कुल समाप्त हो जाएगी।
यह बिल दलित-आदिवासी विरोधी- प्रबल प्रताप शाही
अखिल भारतीय किसान कांग्रेस के नेशनल कोऑर्डिनेटर और प्रवक्ता प्रबल प्रताप शाही ने अमर उजाला से कहा कि मनरेगा कानून लागू होने के बाद देश के गरीबों-श्रमिकों को एक सहारा मिला था। जिस समय उनके पास काम नहीं होता था, वे अपने ग्राम प्रधान के पास जाकर काम मांग सकते थे। लेकिन इस बिल में बुवाई-कटाई के सीजन में श्रमिकों को काम मांगने का कोई अधिकार नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि यह कदम सीधे-सीधे दलितों-आदिवासियों के विरुद्ध है। आज भी लाखों दलित परिवारों और आदिवासियों के पास कोई भूमि नहीं है। वे भूमिहीन श्रमिक के रूप में काम करते हुए अपनी आजीविका चलाते हैं। लेकिन सरकार ने विशेष दिनों में काम मांगने का अधिकार छीनकर उन्हें मजबूर बनाने का काम किया है।
प्रबल प्रताप शाही ने आरोप लगाया कि यह बिल धनिकों को ताकत देने और श्रमिकों को मजबूर करने के लिए लाया जा रहा है क्योंकि जब श्रमिकों के पास सरकार से काम मांगने का अधिकार नहीं होगा, उस समय वे बड़े किसानों और उद्योगों में उनकी मनचाही कीमत पर काम करने के लिए मजबूर होंगे। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में कल्याणकारी सरकारें जनता के कल्याण के लिए काम करती हैं, लेकिन यह सरकार धनिकों और उद्यमियों के हितों में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार को यह कानून तत्काल वापस लेना चाहिए।