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ICMR: भारत को मिली पहली राष्ट्रीय 'रेयर ब्लड डोनर रजिस्ट्री', थैलेसीमिया-सिकल सेल के मरीजों को मिलेगा जीवनदान

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: पवन पांडेय Updated Sat, 21 Jun 2025 04:01 PM IST
सार

Rare Blood Donor Registry: भारत में यह पहली बार है जब एक संगठित और तकनीकी आधार पर दुर्लभ रक्तदाता रजिस्ट्री बनाई गई है। इससे ऐसे मरीजों को नई उम्मीद मिलेगी जिन्हें अब तक खून मिलना मुश्किल होता था। यह कदम देश में स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर बनाने की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है।

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ICMR prepares India's first national rare blood donor registry, News in Hindi
भारत को मिली पहली राष्ट्रीय 'रेयर ब्लड डोनर रजिस्ट्री' - फोटो : ANI
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विस्तार
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भारत में पहली बार दुर्लभ रक्त समूह वाले मरीजों के लिए राष्ट्रीय स्तर की 'रेयर ब्लड डोनर रजिस्ट्री' तैयार की गई है। यह पहल इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के तहत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोहेमेटोलॉजी (एनआईआईएच), मुंबई की तरफ से की गई है। इसका मुख्य उद्देश्य ऐसे मरीजों को समय पर रक्त उपलब्ध कराना है जिन्हें बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, खासकर थैलेसीमिया और सिकल सेल बीमारी से जूझ रहे मरीजों को।
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क्या है 'रेयर ब्लड डोनर रजिस्ट्री'?
यह एक ऑनलाइन पोर्टल है जिसमें दुर्लभ रक्त समूह वाले दाताओं की पूरी जानकारी दर्ज है। इससे जरूरतमंद मरीजों को आसानी से खून मिल सकेगा। अब इसे भारत सरकार के ई-रक्तकोष प्लेटफॉर्म से जोड़ा जा रहा है, जिससे सभी ब्लड बैंकों का डेटा एकसाथ जुड़ सके।
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क्यों है इसकी जरूरत?
आईसीएमआर के नागपुर स्थित सेंटर फॉर रिसर्च मैनेजमेंट एंड कंट्रोल ऑफ हीमोग्लोबिनोपैथीज (सीआरएचसीएम) की निदेशक डॉ. मनीषा मडकेकर ने बताया कि थैलेसीमिया के करीब एक से 1.5 लाख मरीजों को बार-बार खून की जरूरत पड़ती है। जबकि भारत में हर दिन 1,200 से ज्यादा सड़क हादसे होते हैं। हर साल छह करोड़ सर्जरी, 24 करोड़ बड़े ऑपरेशन, 33 करोड़ कैंसर से जुड़े इलाज, और एक करोड़ गर्भ से जुड़ी जटिलताएं होती हैं, जिनमें रक्त की भारी जरूरत पड़ती है।

अभी तक क्या होता था?
भारत के अधिकांश ब्लड बैंक केवल एबीओ और आरएचडी ब्लड ग्रुप का ही मिलान करते हैं। लेकिन इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन (आईएसबीटी) ने 47 अलग-अलग सिस्टम में 360 से ज्यादा रक्त एंटीजन पहचाने हैं। जब इन छोटे एंटीजन का मिलान नहीं होता, तो मरीज के शरीर में 'एलोइम्युनाइजेशन' नाम की प्रतिक्रिया हो सकती है, जिससे इलाज और जटिल हो जाता है।

कितनी मुश्किल होती है रेयर ब्लड ढूंढने में?
कुछ दुर्लभ रक्त समूह ऐसे होते हैं जो सामान्य रक्तदाताओं में 1:1000 या उससे भी कम पाए जाते हैं। ऐसे मरीजों को खून देना कई बार स्थानीय ब्लड बैंक के लिए संभव नहीं होता, और राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रक्त की खोज करनी पड़ती है।

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कैसे बनी यह रजिस्ट्री?
आईसीएमआर-एनआईआईएच ने 2019 में एक खास प्रोजेक्ट शुरू किया जिसमें भारत के चार हिस्सों से 4000 नियमित 'O' ग्रुप रक्तदाताओं की जांच की गई। इसमें केईएम अस्पताल, मुंबई; पीजीआईएमआर, चंडीगढ़; एमसीएच, कोलकाता; जेआईपीएमईआर, पुडुचेरी केंद्र थे। इस अध्ययन में 600 से ज्यादा दाता ऐसे मिले जिनमें सामान्य एंटीजन नहीं थे। वहीं 250 बहुत दुर्लभ ब्लड ग्रुप वाले दाता मिले और 170 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' वाले दाता शामिल किए गए — जो भारत में सबसे ज्यादा मांगा जाने वाला रेयर ब्लड ग्रुप है (हर साल 120-150 यूनिट की मांग)।

आगे की योजना क्या है?
आईसीएमआर अब इस रजिस्ट्री को ई-रक्तकोष के साथ जोड़ना चाहता है। इससे भारत के सभी ब्लड बैंक इस डेटाबेस में अपने दुर्लभ रक्तदाताओं की जानकारी जोड़ सकेंगे। मरीजों और डॉक्टरों को पोर्टल के माध्यम से जरूरत के समय पर रेयर ब्लड की जानकारी और संपर्क तुरंत मिल सकेगा।
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