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पहल: गर्भवतियों में रोकेंगे थायराइड विकार, कम होगा जोखिम; ICMR करेगा अध्ययन
परीक्षित निर्भय, अमर उजाला
Published by: लव गौर
Updated Mon, 10 Nov 2025 05:43 AM IST
सार
गर्भवती महिलाओं में थायराइड विकारों पर आईसीएमआर अध्ययन शुरू करेगा। इसके लिए देशभर के सभी शोध संस्थानों और अस्पतालों से डाटा मांगा है।
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गर्भवती महिला
- फोटो : एआई तस्वीर
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विस्तार
गर्भवती महिलाओं में थायराइड विकारों पर जल्द ही राष्ट्रीय अध्ययन शुरू होगा। नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस अध्ययन को शुरू करने से पहले देशभर के सभी शोध संस्थानों और अस्पतालों से डाटा मांगा है।
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आईसीएमआर ने कहा है कि गर्भावस्था के दौरान थायराइड विकारों के वास्तविक बोझ, कारणों और परिणामों को बेहतर ढंग से समझने के लिए राष्ट्रीय अध्ययन की योजना है जिसके लिए सभी संस्थान अपने यहां पंजीकृत गर्भवती महिलाओं में हाइपोथायरॉयडिज्म का डाटा साझा करें। इस अध्ययन के आधार पर आईसीएमआर मातृ एवं नवजात स्वास्थ्य के लिए साक्ष्य-आधारित नीति बनाएगा।
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दरअसल हाइपोथायरॉयडिज्म भारत में प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं में सबसे आम अंतःस्रावी विकारों में से एक है। गर्भावस्था के दौरान शरीर में आयोडीन और थायरॉयड हार्मोन की बढ़ी मांग इसे और जटिल बना देती है। बिना इलाज या गलत तरीके से प्रबंधित मामलों में गर्भपात, प्रीक्लेम्पसिया, समयपूर्व प्रसव और बच्चे में बौद्धिक विकास की कमी जैसे गंभीर प्रभाव देखे जा सकते हैं।
आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. तानिका लिंगदोह ने बताया कि भारत में गर्भावस्था के दौरान थायराइड विकार एक उभरता हुआ सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है। इस सहयोगी अध्ययन से हमें जोखिम समूहों की पहचान करने और मातृ-शिशु स्वास्थ्य सुधार के लिए नीति-निर्माताओं को ठोस साक्ष्य उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी।
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महिलाओं के लिए मानक किए जाएंगे विकसित
आईसीएमआर का कहना है कि यह पहल गर्भवती महिलाओं में थायराइड विकारों की सटीक प्रचलन दर, जोखिम कारक और स्वास्थ्य परिणामों को समझने में मदद करेगी। इसके तहत देशभर से चल रहे या पूरे हो चुके प्रेगनेंसी कोहॉर्ट स्टडी, क्रॉस-सेक्शनल सर्वे और रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल्स से डाटा मांगा है। यह अध्ययन चार बिंदुओं पर केंद्रित है जिसमें भारतीय महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरायडिज्म का आकलन करना, इससे जुड़े पोषण, पर्यावरण, मेटाबॉलिक और ऑटोइम्यून जोखिम कारकों की पहचान करना, सबक्लिनिकल हाइपोथायरायडिज्म के गर्भावस्था और नवजात परिणामों से संबंधों का अध्ययन करना और भारतीय महिलाओं के लिए थायराइड फंक्शन के ट्राइमेस्टर-विशिष्ट सामान्य मानक विकसित करना शामिल है।