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इंडिगो की करीब 5000 फ्लाइट रद्द: मुआवजे पर क्या हैं नियम, कब यात्रियों को होटल-खाना देना जरूरी? जानें

स्पेशल डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Wed, 10 Dec 2025 07:48 PM IST
सार

Indigo Flight Cancellation Compensation: इंडिगो एयरलाइंस की फ्लाइट्स रद्द होने का सिलसिला दो दिसंबर से शुरू हुआ था। इसके बाद कंपनी की सैकड़ों उड़ानों का रद्द होना जारी है। इन परिस्थितियों में हजारों यात्री जहां-तहां हवाई अड्डों पर ही फंस गए। सरकार की तरफ से इंडिगो को रिफंड जारी करने की सीमा भी तय कर दी गई। हालांकि, इस परिस्थिति में यात्रियों के भी कई अधिकार हैं, जिनके जरिए एयरलाइंस की तरफ से ऐसी चूक की स्थिति में वे उचित राहत के पात्र हो जाते हैं।

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इंडिगो संकट। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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Indigo Flight Cancellation Compensation: इंडिगो की उड़ानें रद्द होने का सिलसिला लगातार नौवें दिन जारी हैं। कुल आंकड़ों पर गौर करें तो इस एयरलाइन कंपनी की तरफ से अब तक 5000 से ज्यादा उड़ानें रद्द की जा चुकी हैं। सबसे बुरे हालात 4, 5 और 6 दिसंबर को देखने को मिले, जब एयरलाइन की रोजाना रद्द होने वाली फ्लाइट्स की संख्या लगातार हजार के करीब रही। हालांकि, केंद्र सरकार की तरफ से नियमों में थोड़ी ढील दिए जाने के बाद अब इंडिगो की सेवाएं पटरी पर लौटती दिख रही हैं। इसके बावजूद कई अहम मार्गों पर टिकट बुक करा चुके यात्रियों की समस्याएं अभी भी जारी हैं। 
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इंडिगो संकट के इस पूरे दौर में सबसे ज्यादा परेशान वह यात्री रहे, जिन्होंने पहले से ही अपनी फ्लाइट के टिकट बुक करा लिए थे और सफर करने के लिए एयरपोर्ट तक पहुंच चुके थे। हालांकि, विमानन सेवा में अवरोध पैदा होने बाद इन लोगों को या तो इंडिगो की तरफ से उड़ान रद्द होने की जानकारी मिली या फिर इनके घंटों देरी से उड़ान भरने की सूचना मिली। स्थिति यह हो गई कि यात्रियों को घंटों एयरपोर्ट पर बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। वह भी इस उम्मीद में की उनकी रद्द हुई फ्लाइट की जगह सफर के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी या उनके लिए दूसरे इंतजाम किए जाएंगे। 
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हालांकि, एयरपोर्ट पर इन समस्याओं का कोई हल नहीं दिखा। सिर्फ केंद्र सरकार की तरफ से इंडिगो के लिए एक निर्देश जारी हुआ, जिसमें कंपनी को रद्द हुई फ्लाइट्स के यात्रियों को जल्द से जल्द रिफंड मुहैया कराने के लिए कहा गया। इसके लिए समयसीमा भी तय कर दी गई और महज तीन दिन में इंडिगो ने करीब 800 करोड़ से ज्यादा की राशि यात्रियों को लौटा दी। लेकिन इससे यात्रियों के एयरपोर्ट तक आने का खर्च, उड़ानें रद्द होने या लेट होने से उनकी मानसिक प्रताड़ना का मुआवजा शामिल नहीं था। न ही हवाई अड्डे पर उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की कमी को लेकर इंडिगो एयरलाइंस की कोई जिम्मेदारी तय की गई। 

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ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर किसी विमानन कंपनी की तरफ से उड़ानें रद्द किए जाने या फ्लाइट के देरी से उड़ान भरने से परेशानी झेलने वाले यात्रियों के लिए केंद्र सरकार के नियम क्या हैं? क्या यात्री अपनी परेशानी के लिए एयरलाइंस से मुआवजा वसूल सकते हैं? कैसे कंपनियां अपनी जिम्मेदारियों से बच निकलती हैं? इसके अलावा भारत में पीड़ित हवाई यात्री अदालत का रुख कब कर सकते हैं और उन्हें मुआवजा हासिल करने के लिए क्या करना पड़ता है? दुनिया में इससे जुड़े नियम क्या कहते हैं? आइये विस्तार से जानते हैं...
 

पहले जानें- फ्लाइट रद्द होने या देरी से उड़ान भरने पर यात्रियों के लिए क्या नियम?
भारत में हवाई यात्रियों के अधिकारों को लेकर नियम तय करने का जिम्मा नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) का है। डीजीसीए की तरफ से नागर विमानन जरूरतों (सीएआर) के तहत इन नियमों की एक शृंखला दी गई है। इसके सेक्शन 3, सीरीज एम, पार्ट-4 में यात्रियों के अधिकारों से जुड़े नियम मौजूद हैं। इसका शीर्षक है- 'बोर्डिंग से इनकार करने, फ्लाइट रद्द होने या देरी से उड़ान भरने की स्थिति में एयरलाइंस की तरफ से यात्रियों को मुहैया कराई जाने वाली सुविधाएं।' इन नियमों की आखिरी बार जनवरी 2023 में समीक्षा की गई थी। 

इन नियमों के तहत एयरलाइंस पर यात्रियों को मुआवजा या सुविधाएं सिर्फ विशेष परिस्थिति में मुहैया कराई जाती हैं। यह विशेष परिस्थितियां इस बात पर निर्भर करती हैं कि एयरलाइन कंपनी ने यात्री को फ्लाइट के रद्द होने की जानकारी कब दी। 

मुआवजा मिलने के क्या नियम, यह कितना दिया जा सकता है?
डीजीसीए के सीएआर नियमों के खंड 3.3.2 के मुताबिक, अगर हवाई यात्री को उनकी फ्लाइट के रद्द होने की जानकारी तय समयसीमा में नहीं दी जाती तो उन्हें मुआवजा मुहैया कराना होगा। हालांकि, इसके लिए भी कुछ वर्ग बनाए गए हैं। 

सीएआर के खंड 3.8.1 के मुताबिक, अगर एयरलाइन कंपनी एयरपोर्ट पर यात्री के लिए वैकल्पिक फ्लाइट की व्यवस्था करती है तो उन्हें खाना और रिफ्रेशमेंट्स मुहैया कराए जाएंगे। इतना ही नहीं अगर यात्रियों को पूरी रात इंतजार करने की नौबत आए तो एयरलाइन को न सिर्फ होटल में उनके रहने का इंतजाम, बल्कि उन्हें लाने-ले जाने की व्यवस्था भी करनी होगी। कुछ एयरलाइन यात्रियों को लाउंज एक्सेस, खाने के लिए वाउचर या स्पा सेवाएं तक देते हैं। हालांकि, यात्रियों को एयरलाइन से इन्हें मांगना पड़ता है।

कैसे इन नियमों के पालन से बच जाती हैं एयरलाइन कंपनियां?
डीजीसीए के नियमों के बावजूद एयरलाइन कंपनियां कई मौकों पर यात्रियों को मुआवजा देने से बच निकलती हैं। सीएआर के खंड 1.4 और खंड 1.5 के मुताबिक, कंपनियां असाधारण परिस्थितियों का हवाला देते हुए यात्रियों को मुआवजा देने से इनकार कर सकती हैं। नियम में कहा गया है कि अगर फ्लाइट को ऐसे कारणों से रद्द किया गया है, जो कि कंपनी के नियंत्रण से बाहर हैं।

जिन घटनाओं के तहत विमानन कंपनियां यात्रियों को मुआवजा देने से मना कर सकती हैं, उन्हें फोर्स मैज्यूर (Force Majeure) कहा जाता है। हालांकि, यह घटनाक्रम भी सीमित हैं। इनमें किसी देश या क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता, प्राकृतिक आपदा, गृह युद्ध, बाढ़, धमाके, सरकारी नियम या हड़ताल शामिल हैं। इतना ही नहीं अगर कोई उड़ान एयर ट्रैफिक कंट्रोल (एटीसी) से जुड़े कारणों से रद्द होती है या मौसम और सुरक्षा कारणों से रद्द होती है तो भी एयरलाइन कंपनियां मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं हैं। हालांकि, एयरलाइंस को यह दर्शाना पड़ेगा कि उसने फ्लाइट को रद्द होने से रोकने के लिए हरसंभव कोशिश की। इसके अलावा ऐसी स्थिति में प्रतियोगी एयरलाइंस की क्षमताओं को भी परखा जाता है और इसके आधार पर आगे मुआवजा देना है या नहीं, तय किया जाता है।

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कब अदालत के जरिए राहत ले सकते हैं यात्री?
डीजीसीए के इन दिशा-निर्देशों से इतर कई बार एयरलाइन कंपनियां तकनीकी कारणों या अभियानगत कारणों का हवाला देते हुए यात्रियों को रद्द फ्लाइट्स के लिए मुआवजा देने से इनकार कर देती हैं। ऐसी स्थिति में यात्री उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ता अदालतों का रुख कर सकते हैं और सेवा में कमी का मुद्दा उठाकर उचित राहत हासिल कर सकते हैं। कई अदालतों ने एयरलाइन कंपनियों को इन केसों में मुआवजा चुकाने के निर्देश भी दिए हैं। 

जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (डीसीडीआरसी) औ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के कुछ हालिया फैसलों पर नजर डाली जाए तो सामने आता है कि एयरलाइन अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए अस्पष्ट जवाब नहीं दे सकतीं। ऐसे मामलों में यात्रियों को राहत भी मिली है। 
 

इंडिगो की फ्लाइट रद्द होने पर क्या हो सकता है?
अगर इंडिगो की बात की जाए तो सामने आता है कि उसकी समस्या केंद्र सरकार की ओर से जारी फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) नियमों के अस्तित्व में आ जाने से शुरू हुईं। सरकार ने एयरलाइंस को क्रू-पायलट्स की भर्ती के लिए उचित समय भी दिया था। इसके बावजूद इंडिगो समय पर इन नियमों का पालन करने लायक इंतजाम नहीं कर पाया। दूसरी तरफ बाकी एयरलाइंस ने सरकार के नियमों को माना और समस्याओं से दूर रहे। 

यानी इंडिगो की परेशानी की जड़ उसकी तकनीकी और अभियानगत दिक्कतें रहीं, जिनसे अधिकतर यात्रियों को न तो सही समय पर फ्लाइट के रद्द होने की जानकारी मिली और न ही उनके एयरपोर्ट पहुंचने के बाद उड़ान रद्द होने या देरी से होने पर उनके लिए कोई इंतजाम किए गए। इंडिगो के इस संकट पर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में भी सुनवाई हुई, जहां कोर्ट ने निर्देश दिया कि यात्रियों को हुई परेशानी की भरपाई की जाए। यानी यात्रियों को मुआवजा मिलने का रास्ता साफ हो सकता है। 

जब हजारों यात्री परेशान, तब क्या सभी अदालत जा सकते हैं?
ऐसी परिस्थितियां जब किसी एयरलाइन कंपनी की फ्लाइट्स एक साथ बड़ी संख्या में रद्द हो जाएं और इससे हजारों लोग प्रभावित हों (जैसे मौजूदा समय का इंडिगो संकट) तो ऐसे मामलों में अलग-अलग अदालतों में एक-एक व्यक्ति की याचिका काफी जटिल हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता सुरक्षा कानून के तहत क्लास एक्शन सूट का विकल्प मिलता है, जिसमें प्रभावित व्यक्ति एक साथ कोर्ट में अपील दायर कर राहत की मांग कर सकते हैं। 

इस कानून की धारा 35(1)(c) के तहत एक से ज्यादा उपभोक्ता मिलकर सैकड़ों अन्य प्रभावितों के लिए भी याचिका दायर कर सकते हैं। हालांकि, इसमें जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की मंजूरी जरूरी होती है। 

अगर फ्लाइट कैंसल होने से यात्रियों के एक बड़े समूह की समस्याएं एक जैसी हैं, जैसे- रिफंड न होना या कम होना या मुआवजा न दिया जाना तो वे एक प्रतिनिधि तय कर के याचिका डाल सकते हैं। यह नियम एक साथ कई दावों को जोड़ देता है और एयरलाइन की जिम्मेदारी तय करने का बड़ा जरिया बन जाता है। खासकर कंपनी की ओर से सेवा में किसी तरह की कमी की स्थिति में।
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