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कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन से परेशान आईएसआई, आतंकियों को दे रही बिना नेटवर्क वाले एप्स की ट्रेनिंग
जितेंद्र भारद्वाज, अमर उजाला
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 10 Sep 2019 06:58 PM IST
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आतंकवादी
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जम्मू-कश्मीर में आतंकियों पर सुरक्षा बलों की पकड़ जैसे जैसे मजबूत होती जा रही है, वैसे ही सीमा पार आईएसआई और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों की बेचैनी भी बढ़ती जा रही है। कश्मीर में मौजूद आतंकियों को भारतीय सुरक्षा बलों की नजरों से बचाने के लिए आईएसआई नए नए तरीके अपना रही है। आतंकियों को अत्याधुनिक तकनीक से लैस ऐसे उपकरण मुहैया कराए गए हैं, जिनकी मदद से वे आपस में जो बातचीत करेंगे, उसका किसी को पता नहीं चलेगा। ये उपकरण बिना इंटरनेट या मोबाइल नेटवर्क बंद होने की स्थिति में भी काम करते हैं, जिनमें कई तरह के एप भी शामिल हैं। पिछले सप्ताह पकड़े गए आतंकियों से पूछताछ में यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है।
उनका नेटवर्क भी पाकिस्तानी सीमा में था। अब ऐसा ही मजबूत नेटवर्क सिस्टम सीमा से थोड़ी दूर स्थापित किया गया है। यह नेटवर्क सिस्टम हाई फ्रीक्वेंसी पर चलता है, और इसके जरिये ही भारतीय सीमा में मौजूद आतंकियों का नेटवर्क काम करता है। आईएसआई की मदद से अब एन्क्रिप्टेड सिस्टम पर आधारित उपकरणों का प्रयोग आतंकियों ने बढ़ा दिया है। अब इनमें कई ऐसे एप भी हैं, जो भारतीय नेटवर्क बंद होने की स्थिति में भी काम करते हैं।
पुलिस हिरासत में रहने के बाद बहुत से युवा मुख्य धारा में वापस लौट आए। युवाओं का कहना था कि वे गुमराह हो रहे थे। सुरक्षा बलों की सख्ती का ही नतीजा है कि फरवरी में पुलवामा हमले के बाद अभी तक घाटी में कोई दूसरा फिदायीन अटैक देखने को नहीं मिला है। घुसपैठ का मौका न मिलने, स्लीपर सेल के पकड़े जाने और फिदायीन अटैक दस्ते के सक्रिय न होने से भी आईएसआई परेशान है।
कश्मीर, अनंतनाग, पुलवामा और बनिहाल में शांति व्यवस्था खराब करने के लिए 'ऑफ द ग्रिड' चैट एप पर मैसेज भेजे गए थे। सुरक्षा बलों के हाथ लगे आतंकियों ने पूछताछ में बताया कि वे दो सौ मीटर के दायरे में बातचीत कर सकते हैं, जिसे इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकता। इसे वाईफाई और ब्लूटूथ से भी लिंक करने का प्रावधान है।
इस सिस्टम की खासियत यह है कि इसके साथ दर्जनों फोन लिंक हो सकते हैं। सर्वल मैश, यह सॉफ्टवेयर वाईफाई पर काम करता है। इसके जरिए प्राइवेट कॉल, टेक्स्ट मैसेज और फाइल शेयर कर सकते हैं। मोबाइल नेटवर्क न होने की स्थिति में भी यह सिस्टम काम करता है।
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आतंकियों को मिले अत्याधुनिक उपकरण
भारतीय खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि आईएसआई के पास यह क्षमता किसी अन्य देश के सहयोग से आई है। इससे पहले पाकिस्तान ने भारतीय सीमा में अपने संचार नेटवर्क को प्रभावी बनाने के लिए एलओसी के पास मोबाइल टावर लगा दिए थे। ताकि भारतीय सीमा में मौजूद आतंकियों से बातचीत कर उन्हें मदद पहुंचाई जा सके। कश्मीर में मौजूद आतंकियों के पास संचार के जो साधन होते थे, वे आईएसआई मुहैया कराती थी।
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उनका नेटवर्क भी पाकिस्तानी सीमा में था। अब ऐसा ही मजबूत नेटवर्क सिस्टम सीमा से थोड़ी दूर स्थापित किया गया है। यह नेटवर्क सिस्टम हाई फ्रीक्वेंसी पर चलता है, और इसके जरिये ही भारतीय सीमा में मौजूद आतंकियों का नेटवर्क काम करता है। आईएसआई की मदद से अब एन्क्रिप्टेड सिस्टम पर आधारित उपकरणों का प्रयोग आतंकियों ने बढ़ा दिया है। अब इनमें कई ऐसे एप भी हैं, जो भारतीय नेटवर्क बंद होने की स्थिति में भी काम करते हैं।
बौखला गई है आईएसआई
बता दें कि पुलवामा हमले के बाद भारतीय सुरक्षा बलों ने जिस तरह से आतंकियों पर शिकंजा कसा है, उससे पाक आतंकी संगठन व आईएसआई बौखलाहट में है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पहले ही कह चुके हैं कि करीब 230 पाक आतंकी भारतीय सीमा में घुसपैठ के लिए तैयार बैठे हैं। आईएसआई ऐसे मौके की तलाश में है कि कब इन आतंकियों को सीमा पार करा दी जाए। वहीं उसकी बौखलाहट की एक दूसरी वजह भी है। वह है स्लीपर सेल का लगातार पकड़े जाना। पुलवामा हमले के दौरान खबरें आई थीं जम्मू कश्मीर में फिदायीन हमलों को अंजाम देने के लिए करीब सौ युवाओं का एक दस्ता बनाया गया है। हमले के बाद सुरक्षा बलों ने एक-एक कर अधिकांश फिदायीन युवकों का पता लगा लिया।पुलिस हिरासत में रहने के बाद बहुत से युवा मुख्य धारा में वापस लौट आए। युवाओं का कहना था कि वे गुमराह हो रहे थे। सुरक्षा बलों की सख्ती का ही नतीजा है कि फरवरी में पुलवामा हमले के बाद अभी तक घाटी में कोई दूसरा फिदायीन अटैक देखने को नहीं मिला है। घुसपैठ का मौका न मिलने, स्लीपर सेल के पकड़े जाने और फिदायीन अटैक दस्ते के सक्रिय न होने से भी आईएसआई परेशान है।
नहीं होती इंटरनेट की जरूरत
आतंकियों को लेटेस्ट साइबर उपकरणों की जानकारी दी जा रही है। एनआईए और जम्मू कश्मीर पुलिस के मुताबिक आईएसआई ने आतंकी संगठनों को ऐसे एप मुहैया कराए हैं, जिन्हें पकड़ना सुरक्षा बलों के लिए बहुत मुश्किल होता है। ये एप विंडो, मैक, लिनक्स, एंड्रायड और टॉर आदि पर चल सकते हैं। ये बिना इंटरनेट भी काम करते हैं। इन्हें ट्रैक या फॉलो नहीं कर सकते। पिछले दिनों कश्मीर घाटी में इंटरनेट शटडाउन के दौरान ऐसे कई एप का इस्तेमाल हुआ था।कश्मीर, अनंतनाग, पुलवामा और बनिहाल में शांति व्यवस्था खराब करने के लिए 'ऑफ द ग्रिड' चैट एप पर मैसेज भेजे गए थे। सुरक्षा बलों के हाथ लगे आतंकियों ने पूछताछ में बताया कि वे दो सौ मीटर के दायरे में बातचीत कर सकते हैं, जिसे इंटरसेप्ट नहीं किया जा सकता। इसे वाईफाई और ब्लूटूथ से भी लिंक करने का प्रावधान है।
वॉकी-टॉकी की तरह कर सकते हैं बात
इसके अलावा आईओएस या एंड्रायड सिस्टम पर वाकी टाकी से बातचीत हो जाती है। इसमें इंटरनेट की जरुरत भी नहीं होती। मैश नेटवर्क, इसके जरिए एक तय रेंज में दो स्मार्टफोन पर बातचीत हो जाती है। हालांकि दोनों फोन की दूरी सिग्नल स्ट्रैंथ पर निर्भर करती है। आतंकी संगठनों के पास सौ फीट से लेकर दो सौ मीटर तक की दूरी के उपकरण मौजूद हैं। यदि कहीं इंटरनेट या मोबाइल कवरेज नहीं है तो वहां पर 'फायर चैट' का इस्तेमाल करते हैं। अगर यह इंटरनेट से जुड़ जाता है तो इसकी मदद से दुनिया में कहीं भी बातचीत संभव है।इस सिस्टम की खासियत यह है कि इसके साथ दर्जनों फोन लिंक हो सकते हैं। सर्वल मैश, यह सॉफ्टवेयर वाईफाई पर काम करता है। इसके जरिए प्राइवेट कॉल, टेक्स्ट मैसेज और फाइल शेयर कर सकते हैं। मोबाइल नेटवर्क न होने की स्थिति में भी यह सिस्टम काम करता है।