{"_id":"67374752b9fa209b5e0605ca","slug":"jharkhand-birsa-munda-s-birth-anniversary-congress-surrounded-government-on-forest-rights-2024-11-15","type":"story","status":"publish","title_hn":"Jharkhand: बिरसा मुंडा की जयंती पर कांग्रेस ने वन अधिकार पर सरकार को घेरा, न्याय से कैसे वंचित हुए आदिवासी","category":{"title":"India News","title_hn":"देश","slug":"india-news"}}
Jharkhand: बिरसा मुंडा की जयंती पर कांग्रेस ने वन अधिकार पर सरकार को घेरा, न्याय से कैसे वंचित हुए आदिवासी
डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: राहुल कुमार
Updated Fri, 15 Nov 2024 06:36 PM IST
सार
Birsa Munda's birth anniversary: कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपने बयान में कहा है, डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा पारित वन अधिकार अधिनियम, एफआरए (2006) एक क्रांतिकारी कानून था। इसने वनों से संबंधित शक्ति और अधिकार वन विभाग से ग्राम सभा को हस्तांतरित किया था।
विज्ञापन
झारखंड
- फोटो : अमर उजाला
विज्ञापन
विस्तार
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव (संचार) एवं संसद सदस्य जयराम ने शुक्रवार को धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर केंद्र सरकार को घेरा है। उन्होंने बिरसा मुंडा को भारत के सबसे महान सपूतों में से एक और स्वशासन एवं सामाजिक न्याय का प्रबल समर्थक बताया है। जयराम ने कहा, अब नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री बिहार के जमुई में आदिवासियों के हितैषी होने का दिखावा कर रहे हैं, जबकि उनकी सरकार आदिवासियों को न्याय से वंचित करने के लिए पूरी ताकत से लगी हुई है। धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान, 'डीएजेजीयूए' उनके इसी पाखंड को दर्शाता है। यह है तो भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर है, लेकिन वन अधिकार अधिनियम का पूरी तरह से मजाक बनाता है।
जयराम रमेश ने अपने बयान में कहा है, डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा पारित वन अधिकार अधिनियम, एफआरए (2006) एक क्रांतिकारी कानून था। इसने वनों से संबंधित शक्ति और अधिकार वन विभाग से ग्राम सभा को हस्तांतरित किया था। जनजातीय मामलों के मंत्रालय को कानून लागू करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में सशक्त बनाया गया। एफआरए ने आदिवासी समुदाय और ग्राम सभाओं को वनों पर शासन और प्रबंधन करने का अधिकार दिया था। वनों में लोकतांत्रिक शासन को सुनिश्चित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण सुधार था, लेकिन इस क्रांति के बाद नरेंद्र मोदी की प्रति-क्रांति आई है। 'डीएजेजीयूए' मूल रूप से इस ऐतिहासिक कानून और वनों के प्रशासन में लोकतांत्रिक सुधार को खत्म करता है।
यह एफआरए के कार्यान्वयन में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अधिकार देकर जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधिकार को कमज़ोर करता है। एफआरए के वैधानिक निकायों, अर्थात् ग्राम सभा, उप-विभागीय समिति, ज़िला स्तरीय समिति और राज्य स्तरीय निगरानी समिति को सशक्त बनाने के बजाय, डीएजेजीयूए ने जिला और उप-विभागीय स्तर पर एफआरए की इकाइयों का एक समानांतर विशाल संस्थागत तंत्र बनाया है। उन्हें बड़े स्तर पर फंड्स और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों से लैस किया गया है। वे सीधे जनजातीय मामलों के मंत्रालय और राज्य जनजातीय कल्याण विभागों के सेंट्रलाइज्ड नौकरशाही के नियंत्रण के अधीन हैं। एफआरए के वैधानिक निकायों के प्रति उनकी जवाबदेही नहीं है।
डीएजेजीयूए, राज्य जनजातीय कल्याण विभागों द्वारा ग्राम सभाओं के एफआरए कार्यान्वयन और सीएफआर प्रबंधन गतिविधियों के लिए तकनीकी एजेंसियों/डोमेन विशेषज्ञों/कॉर्पोरेट गैर सरकारी संगठनों को सूचीबद्ध करता है और उन्हें साथ लेता है। एफआरए की इन इकाइयों को ऐसे काम करने हैं, जिन्हें वैधानिक निकायों को कानून द्वारा करना आवश्यक है। इन वैधानिक निकायों को एफआरए इकाइयों के उप अंग के रूप में छोड़ दिया गया है।
एफआरए के इन इकाइयों को नाममात्र के एफआरए निकायों का आदेश मानने तक सीमित कर दिया गया है है। इसमें शामिल आर्थिक और सामाजिक संवेदनशीलता पर ध्यान दिए बिना ऐसा किया गया है, जबकि इसके लिए भारी भरकम बजट आवंटित किया गया है। बजट में प्रत्येक एफआरए में तकनीकी एजेंसियों के लिए 1 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में, भाजपा सरकार ने वनमित्र ऐप बनाने के लिए महाराष्ट्र नॉलेज कंपनी लिमिटेड को नियुक्त किया, जिसने एफआरए क्लेम करने की पारदर्शी प्रक्रिया को एक अस्पष्ट, ऑनलाइन प्रक्रिया में बदल दिया। इसकी ज़िम्मेदारी तकनीकी ऑपरेटरों ने संभाली है। परिणामस्वरूप तीन लाख क्लेम्स ख़ारिज़ कर दिए गए।
ऐसी तकनीकी एजेंसियों की संलिप्तता के कारण बड़े पैमाने पर ऐसी घटनाएं होने से आदिवासी समूह चिंतित हैं। उनकी चिंता वाजिब भी है। जयराम रमेश ने कहा, वन विभाग को अब सामुदायिक वन संसाधनों के प्रबंधन के लिए ग्राम सभा की अपनी ही समिति का हिस्सा बनने की अनुमति दी गई है, जो एफआरए का सीधा उल्लंघन है। एफआरए को आदिवासी और वन में रहने वाले अन्य समुदायों को अपने संसाधनों पर शासन और प्रबंधन हेतु सशक्त बनाने के लिए लाया गया था।
डीएजेजीयूए, विशुद्ध रूप से मनुवादी तरीके से, इन समुदायों को केवल जंगल में रहने वाले वनवासियों के रूप में देखता है, जो अपने आप में राजनीतिक और आर्थिक शक्ति होने के बजाय सिर्फ़ श्रमिक हैं। जैसा कि 12 मार्च, 2024 को महाराष्ट्र के नंदुरबार में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी द्वारा जारी किए गए आदिवासी संकल्प में कहा गया है। कांग्रेस पार्टी ईमानदारी और पूरी निष्पक्षता के साथ एफआरए के कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है। यह झारखंड और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों में लोगों को दी गई हमारी गारंटी का हिस्सा है। आगामी विधानसभा एवं संसदीय चुनावों के लिए भी यह प्राथमिकता बनी रहेगी।
Trending Videos
जयराम रमेश ने अपने बयान में कहा है, डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा पारित वन अधिकार अधिनियम, एफआरए (2006) एक क्रांतिकारी कानून था। इसने वनों से संबंधित शक्ति और अधिकार वन विभाग से ग्राम सभा को हस्तांतरित किया था। जनजातीय मामलों के मंत्रालय को कानून लागू करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में सशक्त बनाया गया। एफआरए ने आदिवासी समुदाय और ग्राम सभाओं को वनों पर शासन और प्रबंधन करने का अधिकार दिया था। वनों में लोकतांत्रिक शासन को सुनिश्चित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण सुधार था, लेकिन इस क्रांति के बाद नरेंद्र मोदी की प्रति-क्रांति आई है। 'डीएजेजीयूए' मूल रूप से इस ऐतिहासिक कानून और वनों के प्रशासन में लोकतांत्रिक सुधार को खत्म करता है।
विज्ञापन
विज्ञापन
यह एफआरए के कार्यान्वयन में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अधिकार देकर जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अधिकार को कमज़ोर करता है। एफआरए के वैधानिक निकायों, अर्थात् ग्राम सभा, उप-विभागीय समिति, ज़िला स्तरीय समिति और राज्य स्तरीय निगरानी समिति को सशक्त बनाने के बजाय, डीएजेजीयूए ने जिला और उप-विभागीय स्तर पर एफआरए की इकाइयों का एक समानांतर विशाल संस्थागत तंत्र बनाया है। उन्हें बड़े स्तर पर फंड्स और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों से लैस किया गया है। वे सीधे जनजातीय मामलों के मंत्रालय और राज्य जनजातीय कल्याण विभागों के सेंट्रलाइज्ड नौकरशाही के नियंत्रण के अधीन हैं। एफआरए के वैधानिक निकायों के प्रति उनकी जवाबदेही नहीं है।
डीएजेजीयूए, राज्य जनजातीय कल्याण विभागों द्वारा ग्राम सभाओं के एफआरए कार्यान्वयन और सीएफआर प्रबंधन गतिविधियों के लिए तकनीकी एजेंसियों/डोमेन विशेषज्ञों/कॉर्पोरेट गैर सरकारी संगठनों को सूचीबद्ध करता है और उन्हें साथ लेता है। एफआरए की इन इकाइयों को ऐसे काम करने हैं, जिन्हें वैधानिक निकायों को कानून द्वारा करना आवश्यक है। इन वैधानिक निकायों को एफआरए इकाइयों के उप अंग के रूप में छोड़ दिया गया है।
एफआरए के इन इकाइयों को नाममात्र के एफआरए निकायों का आदेश मानने तक सीमित कर दिया गया है है। इसमें शामिल आर्थिक और सामाजिक संवेदनशीलता पर ध्यान दिए बिना ऐसा किया गया है, जबकि इसके लिए भारी भरकम बजट आवंटित किया गया है। बजट में प्रत्येक एफआरए में तकनीकी एजेंसियों के लिए 1 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में, भाजपा सरकार ने वनमित्र ऐप बनाने के लिए महाराष्ट्र नॉलेज कंपनी लिमिटेड को नियुक्त किया, जिसने एफआरए क्लेम करने की पारदर्शी प्रक्रिया को एक अस्पष्ट, ऑनलाइन प्रक्रिया में बदल दिया। इसकी ज़िम्मेदारी तकनीकी ऑपरेटरों ने संभाली है। परिणामस्वरूप तीन लाख क्लेम्स ख़ारिज़ कर दिए गए।
ऐसी तकनीकी एजेंसियों की संलिप्तता के कारण बड़े पैमाने पर ऐसी घटनाएं होने से आदिवासी समूह चिंतित हैं। उनकी चिंता वाजिब भी है। जयराम रमेश ने कहा, वन विभाग को अब सामुदायिक वन संसाधनों के प्रबंधन के लिए ग्राम सभा की अपनी ही समिति का हिस्सा बनने की अनुमति दी गई है, जो एफआरए का सीधा उल्लंघन है। एफआरए को आदिवासी और वन में रहने वाले अन्य समुदायों को अपने संसाधनों पर शासन और प्रबंधन हेतु सशक्त बनाने के लिए लाया गया था।
डीएजेजीयूए, विशुद्ध रूप से मनुवादी तरीके से, इन समुदायों को केवल जंगल में रहने वाले वनवासियों के रूप में देखता है, जो अपने आप में राजनीतिक और आर्थिक शक्ति होने के बजाय सिर्फ़ श्रमिक हैं। जैसा कि 12 मार्च, 2024 को महाराष्ट्र के नंदुरबार में भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी द्वारा जारी किए गए आदिवासी संकल्प में कहा गया है। कांग्रेस पार्टी ईमानदारी और पूरी निष्पक्षता के साथ एफआरए के कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है। यह झारखंड और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों में लोगों को दी गई हमारी गारंटी का हिस्सा है। आगामी विधानसभा एवं संसदीय चुनावों के लिए भी यह प्राथमिकता बनी रहेगी।