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Karnataka: गन्ना किसानों के आंदोलन से घबराई कर्नाटक सरकार, सिद्धारमैया ने प्रधानमंत्री से लगाई मदद की गुहार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बंगलूरू
Published by: नितिन गौतम
Updated Fri, 07 Nov 2025 09:58 AM IST
सार
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि गन्ने का फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) तय करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे अपना आंदोलन और तेज न करें और शुक्रवार को बंगलूरू में बातचीत के लिए बुलाया।
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पीएम मोदी के साथ कर्नाटक सीएम सिद्धारमैया
- फोटो : फेसबुक/पीएमओइंडिया
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विस्तार
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी लिखकर राज्य में गन्ना किसानों के संकट को हल करने के लिए तुरंत बैठक की मांग की है। कर्नाटक में बीते कई दिनों से कई जिलों के गन्ना किसान आंदोलन कर रहे हैं और उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद किया हुआ है। किसान आंदोलन को समर्थन बढ़ता ही जा रहा है और यह आंदोलन कई अन्य जिलों में भी फैल सकता है। सीएम ने प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी में अपील करते हुए लिखा कि 'मैं आपसे जल्द से जल्द बैठक करने का अनुरोध करता हूं ताकि हम अपने गन्ना किसानों, अपनी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कर्नाटक और देश में गन्ने की वैल्यू-चेन की भलाई के लिए मिलकर काम कर सकें।'
सीएम बोले- एफआरपी केंद्र सरकार तय करती है
कर्नाटक के गन्ना किसानों ने गन्ने के लिए 3,500 रुपये प्रति टन का मूल्य तय करने की मांग कर रहे हैं। जिसके बाद कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को दखल देने का फैसला किया और शुक्रवार को किसानों और चीनी मिल मालिकों के साथ लगातार दो बैठकें बुलाईं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि गन्ने का फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) तय करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे अपना आंदोलन और तेज न करें और शुक्रवार को बंगलूरू में बातचीत के लिए बुलाया।
ये भी पढ़ें- Politics: 'जिन्नावादी कांग्रेस...इनके लिए शरिया संविधान से ऊपर', CM रेड्डी के मुसलमान वाले बयान पर भड़की भाजपा
कर्नाटक सरकार ने की केंद्र सरकार से दखल की मांग
किसान गन्ने के लिए 3,500 रुपये प्रति टन की मांग कर रहे हैं, वहीं मिलों ने 3,200 रुपये प्रति टन से ज्यादा देने से इनकार कर दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2025-26 सीजन के लिए गन्ने की फसल के लिए 10.25% के बेसिक रिकवरी रेट पर फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) 3,550 रुपये प्रति टन तय किया है। हालांकि, कटाई और ट्रांसपोर्ट के जरूरी खर्च, जो 800 से 900 रुपये प्रति टन के बीच हैं, काटने के बाद किसान को असल में सिर्फ 2,600-3,000 रुपये प्रति टन ही मिलते हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि खाद, मजदूरी, सिंचाई और ट्रांसपोर्ट की लागत में बढ़ोतरी के कारण, यह दर ढांचा गन्ने की खेती को आर्थिक रूप से नुकसानदायक बना रहा है। सिद्धारमैया ने दावा किया कि समस्या की जड़ केंद्रीय नीति स्तर पर है। यही वजह है कि सीएम ने FRP फॉर्मूला, चीनी के लिए स्थिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), चीनी के निर्यात पर रोक और चीनी-आधारित फीडस्टॉक से इथेनॉल का कम इस्तेमाल आदि मुद्दों पर चर्चा करने के लिए प्रधानमंत्री से मिलने की मांग की है।
क्या है एफआरपी
बता दें कि एफआरपी वह मूल्य है, जो केंद्र सरकार गन्ना किसानों के लिए तय करती है। ये वह न्यूनतम दर है जो चीनी मिलें, गन्ना किसानों को कानूनी रूप से भुगतान करती हैं। इसका भुगतान किसानों को 14 दिनों के भीतर करना होता है और देरी पर 15 प्रतिशत ब्याज लग सकता है। FRP का निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर होता है, जिसमें राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों से परामर्श लिया जाता है।
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सीएम बोले- एफआरपी केंद्र सरकार तय करती है
कर्नाटक के गन्ना किसानों ने गन्ने के लिए 3,500 रुपये प्रति टन का मूल्य तय करने की मांग कर रहे हैं। जिसके बाद कर्नाटक सरकार ने गुरुवार को दखल देने का फैसला किया और शुक्रवार को किसानों और चीनी मिल मालिकों के साथ लगातार दो बैठकें बुलाईं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि गन्ने का फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) तय करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे अपना आंदोलन और तेज न करें और शुक्रवार को बंगलूरू में बातचीत के लिए बुलाया।
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कर्नाटक सरकार ने की केंद्र सरकार से दखल की मांग
किसान गन्ने के लिए 3,500 रुपये प्रति टन की मांग कर रहे हैं, वहीं मिलों ने 3,200 रुपये प्रति टन से ज्यादा देने से इनकार कर दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने 2025-26 सीजन के लिए गन्ने की फसल के लिए 10.25% के बेसिक रिकवरी रेट पर फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (FRP) 3,550 रुपये प्रति टन तय किया है। हालांकि, कटाई और ट्रांसपोर्ट के जरूरी खर्च, जो 800 से 900 रुपये प्रति टन के बीच हैं, काटने के बाद किसान को असल में सिर्फ 2,600-3,000 रुपये प्रति टन ही मिलते हैं। मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि खाद, मजदूरी, सिंचाई और ट्रांसपोर्ट की लागत में बढ़ोतरी के कारण, यह दर ढांचा गन्ने की खेती को आर्थिक रूप से नुकसानदायक बना रहा है। सिद्धारमैया ने दावा किया कि समस्या की जड़ केंद्रीय नीति स्तर पर है। यही वजह है कि सीएम ने FRP फॉर्मूला, चीनी के लिए स्थिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), चीनी के निर्यात पर रोक और चीनी-आधारित फीडस्टॉक से इथेनॉल का कम इस्तेमाल आदि मुद्दों पर चर्चा करने के लिए प्रधानमंत्री से मिलने की मांग की है।
क्या है एफआरपी
बता दें कि एफआरपी वह मूल्य है, जो केंद्र सरकार गन्ना किसानों के लिए तय करती है। ये वह न्यूनतम दर है जो चीनी मिलें, गन्ना किसानों को कानूनी रूप से भुगतान करती हैं। इसका भुगतान किसानों को 14 दिनों के भीतर करना होता है और देरी पर 15 प्रतिशत ब्याज लग सकता है। FRP का निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर होता है, जिसमें राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों से परामर्श लिया जाता है।
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