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Kerala High Court: 'सही आकलन नहीं किया..', कोर्ट ने रद्द किए सबरीमाला एयरपोर्ट के लिए जमीन अधिग्रहण के अहम चरण
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोच्चि।
Published by: निर्मल कांत
Updated Sun, 21 Dec 2025 01:51 AM IST
सार
Kerala High Court: केरल हाईकोर्ट ने सबरीमाला ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया के अहम चरण रद्द कर दिए, क्योंकि राज्य ने परियोजना के लिए आवश्यक न्यूनतम जमीन का सही आकलन नहीं किया।
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केरल हाईकोर्ट
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
केरल हाईकोर्ट ने प्रस्तावित सबरीमाला ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया के अहम चरणों को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि परियोजना के लिए वास्तव में कितनी जमीन चाहिए, राज्य ने इसका सही आकलन नहीं किया।
राज्य सरकार ने 30 दिसंबर 2022 को 2,570 एकड़ भूमि के अधिग्रहण को मंजूरी देने का आदेश जारी किया था। इसमें चेरुवल्ली एस्टेट और इसके बाहर स्थित अतिरिक्त 307 एकड़ भूमि शामिल थी। जस्टिस सी जयचंद्रन ने आयाना चैरिटेबल ट्रस्ट (पूर्व में गॉस्पेल फॉर एशिया) और इसके प्रबंध ट्रस्टी डॉ. सिनी पनूस की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि 2013 के 'भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार' अधिनियम के तहत निर्णय लेने की प्रक्रिया कानूनी रूप से दोषपूर्ण थी।
ये भी पढ़ें: 'अघोषित आपातकाल लाने की कोशिश...', कर्नाटक हेट स्पीच बिल को लेकर बोलीं केंद्रीय मंत्री करंदलाजे
कोर्ट ने 19 दिसंबर के आदेश में राज्य को निर्देश दिया कि वह न्यूनतम भूमि की जरूरत का नया सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (एसआईए) करे, फिर विशेषज्ञ समूह से नई रिपोर्ट तैयार कराए और उसके बाद सरकार इस पर पुनर्विचार करे।
याचिकाकर्ताओं ने सरकार की कई कार्रवाइयों को चुनौती दी थी, जिसमें सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट, विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट, भूमि अधिग्रहण को मंजूरी देने वाला सरकार का आदेश और 2013 अधिनियम की धारा 11 के तहत जारी नोटिफिकेशन शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि राज्य को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण का अधिकार है। कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि सरकार केवल आवश्यक न्यूनतम जमीन का ही अधिग्रहण कर सकती है।
ये भी पढ़ें: 'मजदूर का पसीना सूखने से पहले मेहनताना दें', पैगम्बर साहब का हवाला देकर कोर्ट का मदुरै निगम को आदेश
कोर्ट के मुताबिक, 2013 के कानून की धारा 4(4)(डी), 7(5)(बी) और 8(1)(सी) के तहत यह जरूरी कदम सही तरीके से नहीं उठाए गए। जस्टिस जयचंद्रन ने कहा कि वास्तव में कितनी जमीन चाहिए, अधिकारियों ने यह तय करने में पूरी तरह ध्यान नहीं दिया।
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राज्य सरकार ने 30 दिसंबर 2022 को 2,570 एकड़ भूमि के अधिग्रहण को मंजूरी देने का आदेश जारी किया था। इसमें चेरुवल्ली एस्टेट और इसके बाहर स्थित अतिरिक्त 307 एकड़ भूमि शामिल थी। जस्टिस सी जयचंद्रन ने आयाना चैरिटेबल ट्रस्ट (पूर्व में गॉस्पेल फॉर एशिया) और इसके प्रबंध ट्रस्टी डॉ. सिनी पनूस की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि 2013 के 'भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार' अधिनियम के तहत निर्णय लेने की प्रक्रिया कानूनी रूप से दोषपूर्ण थी।
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कोर्ट ने 19 दिसंबर के आदेश में राज्य को निर्देश दिया कि वह न्यूनतम भूमि की जरूरत का नया सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (एसआईए) करे, फिर विशेषज्ञ समूह से नई रिपोर्ट तैयार कराए और उसके बाद सरकार इस पर पुनर्विचार करे।
याचिकाकर्ताओं ने सरकार की कई कार्रवाइयों को चुनौती दी थी, जिसमें सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट, विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट, भूमि अधिग्रहण को मंजूरी देने वाला सरकार का आदेश और 2013 अधिनियम की धारा 11 के तहत जारी नोटिफिकेशन शामिल थे। कोर्ट ने कहा कि राज्य को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण का अधिकार है। कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि सरकार केवल आवश्यक न्यूनतम जमीन का ही अधिग्रहण कर सकती है।
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कोर्ट के मुताबिक, 2013 के कानून की धारा 4(4)(डी), 7(5)(बी) और 8(1)(सी) के तहत यह जरूरी कदम सही तरीके से नहीं उठाए गए। जस्टिस जयचंद्रन ने कहा कि वास्तव में कितनी जमीन चाहिए, अधिकारियों ने यह तय करने में पूरी तरह ध्यान नहीं दिया।