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Khabaron Ke Khiladi: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के पीछे की क्या है असली कहानी, जानें विश्लेषकों की जुबानी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Sat, 26 Jul 2025 09:41 PM IST
सार

जगदीप धनखड़ के इस हफ्ते की शुरुआत में देश के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने को लेकर राजनीति जारी है। विपक्ष ने इसे लेकर कई तरह के अनुमान लगाए हैं। दूसरी तरफ मामले पर सरकार की चुप्पी ने आम लोगों के बीच कौतूहल बढ़ा दिया है। 

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खबरों के खिलाड़ी। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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इस हफ्ते संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ। चलते सत्र के बीच राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं। आखिर ये इस्तीफा क्यों हुआ? सुबह सत्र का संचालन करने वाले धनखड़ ने आखिर रात होते-होते इस्तीफा क्यों दिया? आखिर अचानक स्वास्थ्य में कोई बड़ी गड़बड़ हुई या फिर सियासी समीकरणों में कोई उठापटक हुई? कुछ इसी तरह के सवालों पर इस हफ्ते 'खबरों के खिलाड़ी' में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार, राकेश शुक्ल, पूर्णिमा त्रिपाठी, राजकिशोर और पीयूष पंत मौजूद रहे।
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पूर्णिमा त्रिपाठी: बंगाल में जगदीप धनखड़ ने अपनी भूमिका बहुत अच्छे से निभाई थी। जो केंद्र सरकार की मंशा थी उसे उन्होंने पूरी तरह से करके दिया। इसका इनाम उन्हें उपराष्ट्रपति के पद के तौर पर मिला। तीन साल तक विपक्ष उनकी आलोचना करता रहा। उनकी खिल्ली उड़ाता रहा, लेकिन पिछले आठ-दस महीनों से इस तरह की खबरें आ रही थीं कि धनखड़ जी और प्रधानमंत्री मोदी के बीच कुछ मुद्दों पर मनमुटाव है। मानसून सत्र की शुरुआत में विपक्ष ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ एक नोटिस दिया और उसे उन्होंने सरकार की सलाह लिए बगैर मंजूर कर लिया। जबकि, माना यह जा रहा था कि सरकार भी इस पर नोटिस लाने वाली थी। यही बात सरकार पचा नहीं पाई। 

राकेश शुक्ल: किसी भी दल की सरकार हो हर सरकार में उसे चलाने की एक लक्ष्मण रेखा होती है। जब ये लक्ष्मण रेखा लांघी जाती है तब इस तरह की स्थितियां पैदा होती हैं। सरकार की कोशिश थी कि उपराष्ट्रपति के साथ किसी भी तरह का टकराव पैदा नहीं हो। जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग मामले में सरकार धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी। धनखड़ जी के जल्दबाजी दिखाने की वजह से इस तरह की स्थितियां बनीं। 

राजकिशोर: जस्टिस वर्मा का महाभियोग का प्रस्ताव और जस्टिस शेखऱ यादव का प्रस्ताव दोनों अलग-अलग ही लाए जा सकते हैं। इन्हें क्लब नहीं किया जा सकता है। धनखड़ जी की जहां तक बात है तो वो देवीलाल के दौर से भौकाल वाले नेता रहे है। 1992 में उनके जन्मदिन पर 75 गाड़ियों का काफिला लेकर आए थे और देवीलाल की नजर में चढ़ गए। चंद्रशेखर सरकार में भी कुछ समय के लिए मंत्री रहे थे। पिछले कुछ समय से इस बात की चर्चा थी कि वो इस्तीफा दे सकते हैं। आगे कौन उपराष्ट्रपति कौन बनेगा ये पता नहीं है।  

पीयूष पंत: राज्यसभा में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार करने से पहले उपराष्ट्रपति ने यह पूछा था कि क्या लोकसभा में यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया है। जब उन्हें बताया गया कि हां, तब उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार किया। मुझे लगता है कि सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच मतभेद पैदा हो रहे थे। जब उन्होंने संवैधानिक अधिकारी का इस्तेमाल शुरू कर दिया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस तरह की घटनाओं से जो सवैधानिक संस्थान की गरिमा पर बहुत चोट पड़ती है। 

अवधेश कुमार: देश दूसरे सर्वोच्च स्थान पर बैठे शख्स का इतनी शांति से इस्तीफा हो गया, कहीं कोई उथल-पुथल नहीं है, इसे आप क्या कहेंगे। यह एक स्वाभाविक स्थिति है। अगर जगदीप धनखड़ का इस्तीफा नहीं होता तो मुझे अस्वाभाविक लगता। क्या सत्तापक्ष के किसी व्यक्ति ने कोई अपमानजनक टिप्पणी की है? हामिद अंसारी को हटाने की कभी सत्ता पक्ष ने कोशिश नहीं की। इससे पता चलता है कि सत्ता पक्ष का क्या रुख रहा है।
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