Khabaron Ke Khiladi: क्या दुनिया में तैयार हो रहा नया वर्ल्ड ऑर्डर? विश्लेषकों ने बताई बदलती तस्वीर की कहानी
चीन के तियानजिन में आयोजित एससीओ की बैठक में भारत और चीन के बीच सुलक्षते रिश्तों को पूरी दुनिया ने देखा। चीन, भारत और रूस के मजबूत संबंधों से अमेरिका की बौखलाहट साफ देखने को मिली। इस हफ्ते खबरों के खिलड़ी में इसी विषय पर चर्चा हुई।
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भारत-अमेरिका के बीच रिश्तों में जारी तनाव के बीच बीते हफ्ते हुई एससीओ की बैठक से आई तस्वीरों के कई देशों में हलचल मचा दी। बात यहां तक गई कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पोस्ट में लिखा, 'लगता है कि हमने भारत और रूस को चीन के हाथों खो दिया है। ईश्वर करे कि उनका भविष्य लंबा और समृद्ध हो!' हालांकि, कुछ घंटों बाद ही उनके सुर फिर बदल गए और उन्होंने कहा, 'भारत और अमेरिका के बीच खास रिश्ता है। मैं हमेशा पीएम मोदी का दोस्त रहूंगा, वह एक महान प्रधानमंत्री हैं।' इसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवाब दिया है और इसकी सराहना की है। दुनिया में जारी इसी हलचल पर इस हफ्ते खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, पूर्णिमा त्रिपाठी और अवधेश कुमार साथ ही अर्थशास्त्री बृजेंद्र उपाध्याय मौजूद रहे।
रामकृपाल सिंह: इस सब में कुछ नया नहीं है। हमारी विदेश नीति में शुरू से ही चीन से हमारे रिश्ते ठीक रहे हैं। बीच-बीच में कुछ दिक्कतें जरूर आती रही हैं। पंडित नेहरू के जमाने से हमारे रिश्ते चीन से बेहतर रहे हैं। हिंदी चीनी भाई-भाई का नारा भी उसी दौर में आया था। रूस से हमारे रिश्ते शुरू से अच्छे रहे हैं। पश्चिम के देशों और अमेरिका की छटपटाहट इस बात की है कि उनकी जो मोनोपॉली पिछले 500 वर्षों से रही है वो खत्म होती हुई दिख रही है।
पूर्णिमा त्रिपाठी: हमारी विदेश नीति में हम एक नया दौर देख रहे हैं, जिसे हम कोर्स करेक्शन कह सकते हैं। पिछले 10-11 वर्षों में हमारे पड़ोसियों से हमारे रिश्ते बिगड़ते जा रहे थे। अब उसे सुधारने की कोशिश की जा रही है। ये अच्छी बात है। भारत ने अब तय कर लिया है कि उसे किसी एक तरफ झुके हुए नहीं दिखना है। चीन के साथ हम अपने रिश्तों में गर्माहट लाने की कोशिश कर रहे हैं। रूस से हमारे रिश्ते शुरू से ही अच्छे रहे हैं। जो तस्वीरें हाल में आई हैं वो एक सुधार की ओर साफ इशारा कर रही हैं। ये एक नया वर्ल्ड ऑर्डर जरूर बन रहा है। ये दुनिया की अर्थव्यवस्था में बड़ा टर्नअराउंड करने वाला है।
विनोद अग्निहोत्री: अमेरिका के साथ डील करते वक्त कोई व्यक्तिगत रिश्ते की बात नहीं होती है। वहां सीधा हार्डकोर बिजनेस होता है। ट्रंप ने ट्वीट किया और उस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सकारात्मक जवाब देना केवल पोस्चरिंग हैं। ट्रंप अगले पल क्या करेंगे ये कोई नहीं जानता है। जहां तक चीन की बात है तो 1962 के बाद एक नकारात्मकता रही है। राजीव गांधी के दौर में बर्फ थोड़ी पिघली गलवां तक रिश्ते ठीक-ठाक रहे। एक चीज समझनी होगी कि भारत और चीन अगर एक साथ रहेंगे तो दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर डालेंगे। अब दुनिया में सिर्फ आर्थिक संबंधों के आधार पर रिश्ते तय होते हैं। एससीओ की बैठक बताती है कि भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर मजबूती से खड़ा है।
अवधेश कुमार: इस समय कोई वर्ल्ड ऑर्डर स्पष्ट दिखाई नहीं दे सकता है। भारत ने एससीओ की बैठक में बहुत सधी हुई भूमिका निभाई है। भारत की कूटिनीति को बहुत गहराई से देखने की जरूरत है। ट्रंप ने भले उत्तेजक बयान दिए, लेकिन भारत ने कभी भी उत्तेजना में कोई जवाब नहीं दिया। भारत और चीन के संबंध और भारत और अमेरिका के संबंध की बात करेंगे तो मुझे लगता है कि अभी भी अमेरिका बेहतर साझेदार है। जब तक अमेरिका की ओर से 25 फीसदी अतरिक्त टैरिफ पर कोई बयान नहीं आता तब तक स्थिति को देखना पड़ेगा। मेरा मानना है कि भारत पर जब-जब चुनौतियां आई हैं तब तब भारत पहले से बेहतर स्थिति में उठकर खड़ा हुआ है।
अर्थशास्त्री बृजेंद्र उपाध्याय: मैं पिछले एक महीने के अंदर हुए बदलावों को बहुत अहम मानता हूं। पिछले 15-20 साल से जो विदेश नीति चल रही है भारत ने ट्रंप के 50 फीसदी टैरिफ के बाद बड़ा बदलाव किया है। ट्रंप के आने के बाद जो बदलाव हुआ है वो ये है कि ये सरकार ये मानती है कि हमको किसी की जरूरत नहीं है। इस सरकार को लगता है कि वो अपनी ताकत से सब को दबा लेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।