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Khabron Ke Khiladi: सपा-कांग्रेस के साथ आने से क्या बदलेगा, विपक्षी गठबंधन के लिए यह कितनी बड़ी सफलता?
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति भास्कर
Updated Sat, 24 Feb 2024 08:31 PM IST
सार
लोकसभा चुनाव 2024 का समय नजदीक आता जा रहा है। 28 विपक्षी दलों के गठबंधन- INDIA के घटक दलों में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे पर सहमति बन चुकी है। सपा-कांग्रेस के साथ आने से क्या बदलेगा, विपक्षी गठबंधन के लिए यह कितनी बड़ी सफलता? इन सवालों पर वरिष्ठ पत्रकारों की राय जानिए
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इंडिया गठबंधन के दलों के बीच सीट बंटवारे पर मंथन
- फोटो : amar ujala graphics
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विस्तार
बीते हफ्ते उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस के बीच सीटों के बीच बंटवारे का एलान हो गया। इसके साथ ही दूसरे राज्यों में भी इंडिया गठबंधन के सहयोगियों में सीट बंटवारे की उम्मीद बढ़ी है। आखिर किन राज्यों में इस गठबंधन के आकार लेने की उम्मीद है? कहां यह गठबंधन मूर्त रूप लेना मुश्किल है? उत्तर प्रदेश में जो गठबंधन हुआ है उसका कितना फायदा होगा? इन सभी सवालों पर इस हफ्ते के खबरों के खिलाड़ी में चर्चा हुई। चर्चा के लिए वरिष्ठ पत्रकार रामकृपाल सिंह, हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रेम कुमार, समीर चौगांवकर, अनुराग वर्मा और विनोद अग्निहोत्री मौजूद रहे।
रामकृपाल सिंह: मैं जब किसी भी चीज को देखता हूं। छह महीने पहले इस गठबंधन की शुरुआत हुई थी। तब कहा गया था कि कम से कम चार सौ सीटों पर एक के खिलाफ एक उम्मीदवार देंगे। आज हम कहां है यह देखना होगा। बंगाल में अभी कोई स्थिति नहीं है। कांग्रेस चाहे सीपीएम से जुड़े या ममता से जुड़े तो भी त्रिकोणीय संघर्ष होगा। अब बिहार में आ जाइये तो नीतीश अब भाजपा के साथ है। वहीं, उत्तर प्रदेश में 2019 में त्रिकोणीय मुकाबला था। तब सपा-बसपा साथ थे और कांग्रेस अलग थी। अब कांग्रेस साथ है। तो बसपा अलग है। मतलब अब भी त्रिकोणीय मुकाबला है। इसी तरह महाराष्ट्र में जो इस गठबंधन का हिस्से थे वो ही बंट चुके हैं। कुल मिलाकर मुझे लगता है कि अभी तक की स्थिति में जो भी विपक्षी गठबंधन हैं वो 2019 के मुकाबले कमजोर हैं।
प्रेम कुमार: यह देखना जरूरी है कि कौन मजबूत हुआ है और कौन कमजोर हुआ है। बिहार में ही बात करें तो बड़ा फर्क पड़ा है। सर्वे बता रहे हैं कि भाजपा के साथ जाने के बाद नीतीश का वोट शेयर घटा है। यानी, एनडीए कमजोर हुआ है। महाराष्ट्र में आपने शिवसेना और एनसीपी को बांट दिया। लेकिन, यह जनता तय करेगी कि कौन मजबूत है और कौन कमजोर। जो भी समर्थक होंगे। वो एकतरफा होंगे। चाहे वो शिंदे के साथ जाएं चाहे उद्धव ठाकरे के साथ जाएं। पूरे देश में लोग आंदोलित हैं। यह सरकार के खिलाफ गुस्सा है।
हर्षवर्धन त्रिपाठी: मैं पहले भी कहता रहा था कि जो भी गठबंधन बना है वह बस यूपीए रह जाएगा। आज की स्थिति में यह गठबंधन यूपीए प्लस आम आदमी पार्टी रह गया है। यह गठबंधन मानता है कि अगर हम इस बार साथ नहीं आए तो खत्म हो जाएंगे। जैसे उत्तर प्रदेश में कोशिश बस इतनी है कि गांधी परिवार और यादव परिवार अपनी सीट बच जाए। वहीं, आप के साथ जो गठबंधन हुआ है उसमें केवल कोशिश
अनुराग वर्मा: राजनीति में बहुत कुछ परसेप्शन पर निर्भर करता है। यह गठबंधन इस लड़ाई को हार गया है। जब इस गठबंधन की शुरुआत हुई थी उस वक्त इसमें थोड़ी मजबूती दिखी। धीरे-धीरे यह कमजोर पड़ने लगा और अब यह लगभग हार गया है। इस गठबंधन को बनाए रखने में जो सबसे डेस्पेरेट दिख रहा है वह कांग्रेस दिख रही है। उसमें भी वह अमेठी और रायबरेली को बचाए रखने की कोशिश कर रही है। इसके अलाव किसी भी राज्य में ये लड़ाई में नहीं दिख रहे हैं। जहां पर भी सीटों के बंटवारे की बात हो रही है या सहमति की बात हो रही है वहां इस बार एनडीए पहली बार पूरे दमखम से लड़ेगा।
समीर चौगांवकर: मुझे ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के अलावा इस गठबंधन में कोई दल बचा नहीं है। अखिलेश यादव सिर्फ अमेठी और रायबरेली में मदद करेंगे। बंगाल में ममता केवल दो सीटों पर कांग्रेस की मदद कर पाएंगी। दूसरे राज्यों में कांग्रेस को दूसरे दल मदद नहीं कर पाएंगे। कांग्रेस उन राज्यों में फोकस करती जहां उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है, लेकिन उसने उन सीटों पर ध्यान दिया जहां उसका वजूद नहीं था। मुझे लगता है कि यह कांग्रेस की रणनीतिक गलती है। जहां तक भाजपा के लिए चुनौती की बात है तो मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और उनका दस साल का काम जिस जगह पर है उसे देखते हुए विपक्ष उनको चुनौती देने की स्थिति में नहीं दिखाई देता है।
विनोद अग्निहोत्री: यह बात सही है कि भाजपा बहुत मजबूत स्थित में है। हर मामले में वह विपक्ष के मुकाबले इक्कीस दिखाई दे रहे हैं। इसके बाद भी उन्हें जयंत चौधरी की जरूरत पड़ती है। इसके बाद भी बिहार में उन्हें नीतीश कुमार की जरूरत पड़ती है। इसके बाद भी उन्हें एनसीपी और शिवसेना को तोड़ने की जरूरत पड़ती है। यह बताता है कि आप हम कितना भी उन्हें इक्कीस बताएं लेकिन, भाजपा को जमीनी हकीकत पता है।
जहां तक गठबंधन की बात है तो उत्तर प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन हो गया है। आप के साथ चीजें सही होती दिख रही हैं। बंगाल में अभी की स्थिति में गठबंधन मुश्किल दिख रहा है। मुद्दे जमीन पर हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि मुकाबला रोचक होगा। जहां तक मायावती की बात है तो वह किसके साथ जाएंगी यह या तो सिर्फ मायावती जानती हैं या फिर ऊपर वाला जानता है।
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रामकृपाल सिंह: मैं जब किसी भी चीज को देखता हूं। छह महीने पहले इस गठबंधन की शुरुआत हुई थी। तब कहा गया था कि कम से कम चार सौ सीटों पर एक के खिलाफ एक उम्मीदवार देंगे। आज हम कहां है यह देखना होगा। बंगाल में अभी कोई स्थिति नहीं है। कांग्रेस चाहे सीपीएम से जुड़े या ममता से जुड़े तो भी त्रिकोणीय संघर्ष होगा। अब बिहार में आ जाइये तो नीतीश अब भाजपा के साथ है। वहीं, उत्तर प्रदेश में 2019 में त्रिकोणीय मुकाबला था। तब सपा-बसपा साथ थे और कांग्रेस अलग थी। अब कांग्रेस साथ है। तो बसपा अलग है। मतलब अब भी त्रिकोणीय मुकाबला है। इसी तरह महाराष्ट्र में जो इस गठबंधन का हिस्से थे वो ही बंट चुके हैं। कुल मिलाकर मुझे लगता है कि अभी तक की स्थिति में जो भी विपक्षी गठबंधन हैं वो 2019 के मुकाबले कमजोर हैं।
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प्रेम कुमार: यह देखना जरूरी है कि कौन मजबूत हुआ है और कौन कमजोर हुआ है। बिहार में ही बात करें तो बड़ा फर्क पड़ा है। सर्वे बता रहे हैं कि भाजपा के साथ जाने के बाद नीतीश का वोट शेयर घटा है। यानी, एनडीए कमजोर हुआ है। महाराष्ट्र में आपने शिवसेना और एनसीपी को बांट दिया। लेकिन, यह जनता तय करेगी कि कौन मजबूत है और कौन कमजोर। जो भी समर्थक होंगे। वो एकतरफा होंगे। चाहे वो शिंदे के साथ जाएं चाहे उद्धव ठाकरे के साथ जाएं। पूरे देश में लोग आंदोलित हैं। यह सरकार के खिलाफ गुस्सा है।
हर्षवर्धन त्रिपाठी: मैं पहले भी कहता रहा था कि जो भी गठबंधन बना है वह बस यूपीए रह जाएगा। आज की स्थिति में यह गठबंधन यूपीए प्लस आम आदमी पार्टी रह गया है। यह गठबंधन मानता है कि अगर हम इस बार साथ नहीं आए तो खत्म हो जाएंगे। जैसे उत्तर प्रदेश में कोशिश बस इतनी है कि गांधी परिवार और यादव परिवार अपनी सीट बच जाए। वहीं, आप के साथ जो गठबंधन हुआ है उसमें केवल कोशिश
अनुराग वर्मा: राजनीति में बहुत कुछ परसेप्शन पर निर्भर करता है। यह गठबंधन इस लड़ाई को हार गया है। जब इस गठबंधन की शुरुआत हुई थी उस वक्त इसमें थोड़ी मजबूती दिखी। धीरे-धीरे यह कमजोर पड़ने लगा और अब यह लगभग हार गया है। इस गठबंधन को बनाए रखने में जो सबसे डेस्पेरेट दिख रहा है वह कांग्रेस दिख रही है। उसमें भी वह अमेठी और रायबरेली को बचाए रखने की कोशिश कर रही है। इसके अलाव किसी भी राज्य में ये लड़ाई में नहीं दिख रहे हैं। जहां पर भी सीटों के बंटवारे की बात हो रही है या सहमति की बात हो रही है वहां इस बार एनडीए पहली बार पूरे दमखम से लड़ेगा।
समीर चौगांवकर: मुझे ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के अलावा इस गठबंधन में कोई दल बचा नहीं है। अखिलेश यादव सिर्फ अमेठी और रायबरेली में मदद करेंगे। बंगाल में ममता केवल दो सीटों पर कांग्रेस की मदद कर पाएंगी। दूसरे राज्यों में कांग्रेस को दूसरे दल मदद नहीं कर पाएंगे। कांग्रेस उन राज्यों में फोकस करती जहां उसका सीधा मुकाबला भाजपा से है, लेकिन उसने उन सीटों पर ध्यान दिया जहां उसका वजूद नहीं था। मुझे लगता है कि यह कांग्रेस की रणनीतिक गलती है। जहां तक भाजपा के लिए चुनौती की बात है तो मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और उनका दस साल का काम जिस जगह पर है उसे देखते हुए विपक्ष उनको चुनौती देने की स्थिति में नहीं दिखाई देता है।
विनोद अग्निहोत्री: यह बात सही है कि भाजपा बहुत मजबूत स्थित में है। हर मामले में वह विपक्ष के मुकाबले इक्कीस दिखाई दे रहे हैं। इसके बाद भी उन्हें जयंत चौधरी की जरूरत पड़ती है। इसके बाद भी बिहार में उन्हें नीतीश कुमार की जरूरत पड़ती है। इसके बाद भी उन्हें एनसीपी और शिवसेना को तोड़ने की जरूरत पड़ती है। यह बताता है कि आप हम कितना भी उन्हें इक्कीस बताएं लेकिन, भाजपा को जमीनी हकीकत पता है।
जहां तक गठबंधन की बात है तो उत्तर प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन हो गया है। आप के साथ चीजें सही होती दिख रही हैं। बंगाल में अभी की स्थिति में गठबंधन मुश्किल दिख रहा है। मुद्दे जमीन पर हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि मुकाबला रोचक होगा। जहां तक मायावती की बात है तो वह किसके साथ जाएंगी यह या तो सिर्फ मायावती जानती हैं या फिर ऊपर वाला जानता है।