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Shivsena-MNS: शिवसेना की स्थापना से मनसे के अलग होने तक की क्या कहानी, 20 साल बाद कैसे साथ आए उद्धव-राज ठाकरे?
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Wed, 24 Dec 2025 01:24 PM IST
सार
जिस शिवसेना का कभी उद्धव के साथ राज ठाकरे भी हिस्सा रहे थे, उसकी स्थापना कैसे और कब हुई थी? राज ठाकरे के पार्टी से दूर होने और फिर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बनने की क्या कहानी है? चुनावों में इन दोनों दलों का बाद में कैसा प्रदर्शन रहा? राज-उद्धव बीते 20 साल में किन-किन गठबंधनों का हिस्सा बने? अब दोनों दल यह बंधन छोड़कर कैसे साथ आ रहे हैं? आइये जानते हैं...
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20 साल बाद साथ आए ठाकरे बंधु।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
महाराष्ट्र में जो काम शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे नहीं करा पाए थे, वह काम भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन की विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकाय चुनाव में हुई बंपर जीत ने कर दिया। दरअसल, इन दोनों ही चुनावों में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना-उद्धव बालासाहेब ठाकरे (यूबीटी) और राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की बुरी तरह हार हुई है। साथ ही विपक्षी गठबंधन (जिसका शिवसेना-यूबीटी हिस्सा रही) वह भी नाकाम रहा है। ऐसे में करीब 20 साल बाद राज ठाकरे शिवसेना संस्थापक बालासाहेब के बेटे और अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे के साथ एक हुए हैं। दोनों ने आगामी ब्रह्नमुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनाव में गठबंधन का एलान कर दिया है।
उद्धव और राज ठाकरे के 2005 में आखिरी बार मंच पर साथ दिखने के 20 साल बाद एक बार फिर एकजुट होने को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। हालांकि, यह साफ नहीं है कि दोनों भाई अपनी पार्टियों को साथ लाकर चुनाव लड़ेंगे या नहीं। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर जिस शिवसेना का दोनों भाई कभी हिस्सा रहे थे, उसकी स्थापना कैसे और कब हुई थी? राज ठाकरे के पार्टी से दूर होने और फिर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बनने की क्या कहानी है? चुनावों में इन दोनों दलों का बाद में कैसा प्रदर्शन रहा? राज-उद्धव बीते 20 साल में किन-किन गठबंधनों का हिस्सा बने? अब दोनों दल यह बंधन छोड़कर कैसे साथ आ रहे हैं? आइये जानते हैं...
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उद्धव और राज ठाकरे के 2005 में आखिरी बार मंच पर साथ दिखने के 20 साल बाद एक बार फिर एकजुट होने को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। हालांकि, यह साफ नहीं है कि दोनों भाई अपनी पार्टियों को साथ लाकर चुनाव लड़ेंगे या नहीं। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर जिस शिवसेना का दोनों भाई कभी हिस्सा रहे थे, उसकी स्थापना कैसे और कब हुई थी? राज ठाकरे के पार्टी से दूर होने और फिर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बनने की क्या कहानी है? चुनावों में इन दोनों दलों का बाद में कैसा प्रदर्शन रहा? राज-उद्धव बीते 20 साल में किन-किन गठबंधनों का हिस्सा बने? अब दोनों दल यह बंधन छोड़कर कैसे साथ आ रहे हैं? आइये जानते हैं...
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शिवसेना पार्टी की कहानी क्या है?
19 जून 1966 को बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी। पत्रकार और व्यंग्य कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन 'मराठी अस्मिता' के मुद्दे को लेकर किया था। दरअसल, बालासाहेब ठाकरे ने अपने करियर की शुरुआत 1950 के दशक के प्रारंभ में मुम्बई के फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के रूप में की थी। उनके कार्टून जापानी समाचार पत्र असाही शिंबुन और द न्यूयॉर्क टाइम्स के रविवारीय संस्करण में भी छपते थे। 1960 के दशक में वे राजनीति में काफी सक्रिय रूप से शामिल हो गए। बाल ठाकरे ने अपने विचारों की वकालत करने के लिए 1960 में मराठी साप्ताहिक राजनीतिक पत्रिका 'मार्मिक' शुरू की। इसमें ठाकरे अपने राजनीतिक कॉमिक्स बनाते और लेख प्रकाशित करते थे।
इसी दौरान उन्होंने 'महाराष्ट्र महाराष्ट्रियों के लिए' एक नारा भी दिया। ठाकरे के पिता केशव ठाकरे मुख्य रूप से मराठी भाषी राज्य के रूप में महाराष्ट्र के निर्माण में सहायक थे। केशव ठाकरे ने शिवाजी के नाम पर नए आंदोलन का नाम रखने का सुझाव दिया था। 1968 में शिवसेना पार्टी ने ग्रेटर बॉम्बे नगर निगम के स्थानीय चुनावों में 140 में से 42 सीटें जीतीं।
19 जून 1966 को बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी। पत्रकार और व्यंग्य कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे ने शिवसेना का गठन 'मराठी अस्मिता' के मुद्दे को लेकर किया था। दरअसल, बालासाहेब ठाकरे ने अपने करियर की शुरुआत 1950 के दशक के प्रारंभ में मुम्बई के फ्री प्रेस जर्नल में कार्टूनिस्ट के रूप में की थी। उनके कार्टून जापानी समाचार पत्र असाही शिंबुन और द न्यूयॉर्क टाइम्स के रविवारीय संस्करण में भी छपते थे। 1960 के दशक में वे राजनीति में काफी सक्रिय रूप से शामिल हो गए। बाल ठाकरे ने अपने विचारों की वकालत करने के लिए 1960 में मराठी साप्ताहिक राजनीतिक पत्रिका 'मार्मिक' शुरू की। इसमें ठाकरे अपने राजनीतिक कॉमिक्स बनाते और लेख प्रकाशित करते थे।
इसी दौरान उन्होंने 'महाराष्ट्र महाराष्ट्रियों के लिए' एक नारा भी दिया। ठाकरे के पिता केशव ठाकरे मुख्य रूप से मराठी भाषी राज्य के रूप में महाराष्ट्र के निर्माण में सहायक थे। केशव ठाकरे ने शिवाजी के नाम पर नए आंदोलन का नाम रखने का सुझाव दिया था। 1968 में शिवसेना पार्टी ने ग्रेटर बॉम्बे नगर निगम के स्थानीय चुनावों में 140 में से 42 सीटें जीतीं।
शिवसेना ने यूं बढ़ाया महाराष्ट्र में अपना दबदबा
धीरे-धीरे भारत में एक मजबूत हिंदू समर्थक नीति के समर्थक बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना महाराष्ट्र में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत बन गई। हालांकि, बाल ठाकरे ने कभी कोई आधिकारिक पद नहीं संभाला, न ही कभी चुनाव लड़ा, लेकिन वर्षों तक उन्हें महाराष्ट्र का शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था।
1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना पहली बार सरकार में आई
शिवसेना पहली बार 1985 में मुंबई महानगरपालिका में सत्ता में आई। 1989 में बालासाहेब ठाकरे, प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे के नेतृत्व में शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया। 1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार अस्तित्व में आई। भाजपा-शिवसेना गठजोड़ ने 1995 में विधानसभा की 288 सीटों में से 138 सीटें जीतीं और राज्य में गठबंधन सरकार बनी। शिवसेना के नेता मनोहर जोशी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। साथ ही 1999 में केंद्र में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शिवसेना के मनोहर जोशी लोकसभा के अध्यक्ष थे।
धीरे-धीरे भारत में एक मजबूत हिंदू समर्थक नीति के समर्थक बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना महाराष्ट्र में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत बन गई। हालांकि, बाल ठाकरे ने कभी कोई आधिकारिक पद नहीं संभाला, न ही कभी चुनाव लड़ा, लेकिन वर्षों तक उन्हें महाराष्ट्र का शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता था।
1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना पहली बार सरकार में आई
शिवसेना पहली बार 1985 में मुंबई महानगरपालिका में सत्ता में आई। 1989 में बालासाहेब ठाकरे, प्रमोद महाजन और गोपीनाथ मुंडे के नेतृत्व में शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन किया। 1995 में महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार अस्तित्व में आई। भाजपा-शिवसेना गठजोड़ ने 1995 में विधानसभा की 288 सीटों में से 138 सीटें जीतीं और राज्य में गठबंधन सरकार बनी। शिवसेना के नेता मनोहर जोशी महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। साथ ही 1999 में केंद्र में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में शिवसेना के मनोहर जोशी लोकसभा के अध्यक्ष थे।
उद्धव राज ठाकरे
- फोटो : PTI
क्या है मनसे की कहानी?
2004 के चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बड़ा झटका लगा, जब महाराष्ट्र में सरकार चली गई, जिसके बाद यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि आखिरकार शिवसेना नेता बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी कौन होगा। उनके भतीजे राज ठाकरे को एक संभावना के रूप में देखा जाने लगा। हालांकि, बाल ठाकरे के बेटे उद्धव अंततः उत्तराधिकारी बने और 2003 में उन्होंने शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभाला। इसके बाद राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी और 9 मार्च 2006 को मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की। मनसे ने कई आंदोलनों के जरिए मराठी अस्मिता का मुद्दा उठाया।
2009 में 13 विधायक जीते थे
पार्टी की स्थापना के एक साल के भीतर ही मनसे को नगर निगम चुनावों का सामना करना पड़ा, जिनमें पार्टी को सफलता नहीं मिली। इसके बाद 2009 में पार्टी ने पहली बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ा। 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों को अच्छे वोट मिले, लेकिन सीट जीतने के लिए काफी नहीं थे। इसके ठीक छह महीने बाद विधानसभा चुनाव में पार्टी के 13 विधायक चुने गए। चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए चुनाव आयोग ने पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए आधिकारिक चुनाव चिह्न दिया। वर्ष 2010 में पार्टी को 'रेलवे इंजन' चुनाव चिह्न मिला।
2004 के चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को बड़ा झटका लगा, जब महाराष्ट्र में सरकार चली गई, जिसके बाद यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि आखिरकार शिवसेना नेता बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी कौन होगा। उनके भतीजे राज ठाकरे को एक संभावना के रूप में देखा जाने लगा। हालांकि, बाल ठाकरे के बेटे उद्धव अंततः उत्तराधिकारी बने और 2003 में उन्होंने शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभाला। इसके बाद राज ठाकरे ने पार्टी छोड़ दी और 9 मार्च 2006 को मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की स्थापना की। मनसे ने कई आंदोलनों के जरिए मराठी अस्मिता का मुद्दा उठाया।
2009 में 13 विधायक जीते थे
पार्टी की स्थापना के एक साल के भीतर ही मनसे को नगर निगम चुनावों का सामना करना पड़ा, जिनमें पार्टी को सफलता नहीं मिली। इसके बाद 2009 में पार्टी ने पहली बार लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ा। 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों को अच्छे वोट मिले, लेकिन सीट जीतने के लिए काफी नहीं थे। इसके ठीक छह महीने बाद विधानसभा चुनाव में पार्टी के 13 विधायक चुने गए। चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को देखते हुए चुनाव आयोग ने पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए आधिकारिक चुनाव चिह्न दिया। वर्ष 2010 में पार्टी को 'रेलवे इंजन' चुनाव चिह्न मिला।
नगर निगम चुनावों में भी दिखाई ताकत
2012 में हुए 10 नगर निगम चुनावों में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को जबरदस्त सफलता मिली थी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का पहला महापौर नासिक शहर में जीता था। पुणे शहर में पार्टी ने विपक्ष के नेता के रूप में उभरी। इसके अलावा मुंबई-ठाणे शहर में मत प्रतिशत काफी बढ़ गया।
साल 2019 एक और चुनाव का साल था, तब विपक्षी दल के रूप में मनसे ने सरकारों की आर्थिक नीतियों का कड़ा विरोध किया। लेकिन जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई तो राज ठाकरे ने केंद्र सरकार को बधाई दी। साल 2020 में मुंबई में हुए अधिवेशन में मनसे ने सीएए का समर्थन किया था।
2012 में हुए 10 नगर निगम चुनावों में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को जबरदस्त सफलता मिली थी। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का पहला महापौर नासिक शहर में जीता था। पुणे शहर में पार्टी ने विपक्ष के नेता के रूप में उभरी। इसके अलावा मुंबई-ठाणे शहर में मत प्रतिशत काफी बढ़ गया।
साल 2019 एक और चुनाव का साल था, तब विपक्षी दल के रूप में मनसे ने सरकारों की आर्थिक नीतियों का कड़ा विरोध किया। लेकिन जब जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाई गई तो राज ठाकरे ने केंद्र सरकार को बधाई दी। साल 2020 में मुंबई में हुए अधिवेशन में मनसे ने सीएए का समर्थन किया था।
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे
- फोटो : ANI
टूट के बाद कैसे जारी रही शिवसेना की पारी?
उधर उद्धव ने शिवसेना का नेतृत्व जारी रखा। साल 2010 में पार्टी की वार्षिक दशहरा रैली के दौरान उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे को 'युवा सेना' के प्रमुख के रूप में लॉन्च किया गया। 2014 के चुनावों में शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट गया लेकिन चुनावों के बाद शिवसेना-भाजपा गठबंधन फिर से अस्तित्व में आया और उन्होंने महाराष्ट्र में सरकार बनाई। इसमें भाजपा के देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने।
चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूट गया। बदली सियासी परिस्थिति में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया। इस गठबंधन सरकार को महाविकास अघाड़ी कहा गया, जिसके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बने। नवंबर 2019 में शिवसेना प्रमुख उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य हो गए। इससे पहले उद्धव ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा था। मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव छह महीने के भीतर महाराष्ट्र विधान परिषद का चुनाव जीतकर आए। महाविकास अघाड़ी सरकार में उनके बेटे आदित्य को कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
उधर उद्धव ने शिवसेना का नेतृत्व जारी रखा। साल 2010 में पार्टी की वार्षिक दशहरा रैली के दौरान उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे को 'युवा सेना' के प्रमुख के रूप में लॉन्च किया गया। 2014 के चुनावों में शिवसेना-भाजपा गठबंधन टूट गया लेकिन चुनावों के बाद शिवसेना-भाजपा गठबंधन फिर से अस्तित्व में आया और उन्होंने महाराष्ट्र में सरकार बनाई। इसमें भाजपा के देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने।
चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना का गठबंधन टूट गया। बदली सियासी परिस्थिति में उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ गठजोड़ किया। इस गठबंधन सरकार को महाविकास अघाड़ी कहा गया, जिसके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बने। नवंबर 2019 में शिवसेना प्रमुख उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य हो गए। इससे पहले उद्धव ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा था। मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव छह महीने के भीतर महाराष्ट्र विधान परिषद का चुनाव जीतकर आए। महाविकास अघाड़ी सरकार में उनके बेटे आदित्य को कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
और फिर सहयोगी मंत्री की बगावत से शिवसेना का नाम-चिह्न ही चले गए
2022 में शिवसेना नेता और कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की। उद्धव ठाकरे नवंबर 2019 से जून 2022 तक करीब ढाई साल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे। जून 2022 में उनके ही कैबिनेट सहयोगी एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। 30 जून 2022 को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार ने शपथ ली। इस तरह से शिवसेना दो गुटों में बंट गई, जिसमें एक का नेतृत्व उद्धव ने किया तो दूसरे का नेतृत्व एकनाथ शिंदे ने किया।
राज ठाकरे के पहले भाजपा के साथ जाने की लगी थी अटकलें
महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन में पहले से ही तीन दल शामिल हैं। राज्य में भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित गुट) की महायुति सरकार चल रही है। बीते साल हुए विधानसभा चुनावों से ठीक पहले चर्चा थी कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की भाजपा से बात चल रही है और वह एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन सकती है। इसे लेकर तब देवेंद्र फडणवीस ने कई मौकों पर राज ठाकरे से मुलाकात भी की थी। उनके अलावा शिवसेना के तत्कालीन प्रमुख एकनाथ शिंदे ने भी राज ठाकरे से बात की थी।
2022 में शिवसेना नेता और कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत की। उद्धव ठाकरे नवंबर 2019 से जून 2022 तक करीब ढाई साल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे। जून 2022 में उनके ही कैबिनेट सहयोगी एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। 30 जून 2022 को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार ने शपथ ली। इस तरह से शिवसेना दो गुटों में बंट गई, जिसमें एक का नेतृत्व उद्धव ने किया तो दूसरे का नेतृत्व एकनाथ शिंदे ने किया।
राज ठाकरे के पहले भाजपा के साथ जाने की लगी थी अटकलें
महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन में पहले से ही तीन दल शामिल हैं। राज्य में भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित गुट) की महायुति सरकार चल रही है। बीते साल हुए विधानसभा चुनावों से ठीक पहले चर्चा थी कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की भाजपा से बात चल रही है और वह एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन सकती है। इसे लेकर तब देवेंद्र फडणवीस ने कई मौकों पर राज ठाकरे से मुलाकात भी की थी। उनके अलावा शिवसेना के तत्कालीन प्रमुख एकनाथ शिंदे ने भी राज ठाकरे से बात की थी।
राज ठाकरे और उद्धव
- फोटो : पीटीआई
लेकिन तब यह चर्चा अपने अंजाम तक नहीं पहुंची थी और विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी ने अलग से उतरकर किस्मत आजमाई थी। खुद राज के बेटे अमित ठाकरे ने मध्य मुंबई की माहिम सीट से चुनाव लड़ा था। तब इस सीट पर उन्हें उद्धव ठाकरे की पार्टी के महेश सावंत से चुनौती मिली थी। भाजपा ने तब अमित ठाकरे को समर्थन देने का वादा किया था, लेकिन एनडीए में ही उसकी सहयोगी एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली शिवसेना ने अपने मौजूदा विधायक सदा सरवणकर को मैदान में उतारा। शिवसेना यूबीटी ने इस सीट पर जीत का झंडा गाड़ा था, जबकि शिंदे की पार्टी के नेता को मनसे की ओर से वोट काटे जाने की वजह से 1500 से भी कम वोटों से हार मिली थी।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अभी किसी गठबंधन में शामिल नहीं है और अकेले ही चुनाव लड़ती रही है। पिछले कुछ महीनों से मनसे और भाजपा के बीच गठबंधन की खबरें आती रहीं, लेकिन यह अंजाम तक नहीं पहुंचीं।
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महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना अभी किसी गठबंधन में शामिल नहीं है और अकेले ही चुनाव लड़ती रही है। पिछले कुछ महीनों से मनसे और भाजपा के बीच गठबंधन की खबरें आती रहीं, लेकिन यह अंजाम तक नहीं पहुंचीं।
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उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे अब एक साथ कैसे आए?
गौरतलब है कि दोनों भाई आखिरी बार 2005 में एक साथ दिखे थे। उस वक्त शिवसेना से बगावत कर नारायण राणे कांग्रेस में शामिल हो गए थे और महाराष्ट्र की मालवण विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ रहे थे। उस उपचुनाव में नारायण राणे को हराने के लिए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मिलकर शिवसेना उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार किया था। हालांकि, राणे ने इस सीट से जीत हासिल की थी। इस चुनाव के बाद वह पूरा घटनाक्रम हुआ, जिसके तहत शिवसेना की कमान बालासाहेब ने बेटे उद्धव को देने का फैसला किया।
राज ठाकरे ने मतभेद के चलते साल 2006 में अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया था। हालांकि, राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ खास हासिल नहीं कर सके। वहीं शिवसेना यूबीटी भी बंटवारे के बाद कमजोर है। पार्टी को विधानसभा चुनावों के साथ स्थानीय निकाय चुनावों में भी नाकामी झेलनी पड़ी है। यही वजह है कि दोनों भाइयों ने मराठी अस्मिता के नाम पर साथ आने का फैसला किया।
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गौरतलब है कि दोनों भाई आखिरी बार 2005 में एक साथ दिखे थे। उस वक्त शिवसेना से बगावत कर नारायण राणे कांग्रेस में शामिल हो गए थे और महाराष्ट्र की मालवण विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ रहे थे। उस उपचुनाव में नारायण राणे को हराने के लिए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मिलकर शिवसेना उम्मीदवार के लिए चुनाव प्रचार किया था। हालांकि, राणे ने इस सीट से जीत हासिल की थी। इस चुनाव के बाद वह पूरा घटनाक्रम हुआ, जिसके तहत शिवसेना की कमान बालासाहेब ने बेटे उद्धव को देने का फैसला किया।
राज ठाकरे ने मतभेद के चलते साल 2006 में अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया था। हालांकि, राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ खास हासिल नहीं कर सके। वहीं शिवसेना यूबीटी भी बंटवारे के बाद कमजोर है। पार्टी को विधानसभा चुनावों के साथ स्थानीय निकाय चुनावों में भी नाकामी झेलनी पड़ी है। यही वजह है कि दोनों भाइयों ने मराठी अस्मिता के नाम पर साथ आने का फैसला किया।
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राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे।
- फोटो : ANI
20 साल बाद कैसे लगीं साथ आने की अटकलें?
कुछ माह पहले फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट में राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे से हाथ मिलाने के संकेत दिए थे। महेश मांजरेकर ने पूछा कि क्या अब भी दोनों भाई साथ आ सकते हैं? इस पर राज ठाकरे ने कहा कि 'महाराष्ट्र के अस्तित्व, महाराष्ट्र के लोगों के अस्तित्व के सामने हमारे मतभेद कुछ भी नहीं हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता कि साथ आना कोई बहुत मुश्किल है। सिर्फ इसकी नीयत होनी चाहिए। ये सिर्फ मेरी बात नहीं है और न ही ये मेरे हितों के बारे में है। हमें बड़ी तस्वीर देखनी चाहिए।'
राज ठाकरे का बयान सामने आने के बाद शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी तुरंत सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि 'मैं छोटे-मोटे झगड़ों को किनारे रखने के लिए तैयार हूं। मैं सभी मराठी लोगों से महाराष्ट्र की भलाई के लिए एकजुट होने की अपील करता हूं, लेकिन एक तरफ उनका (भाजपा का) समर्थन करना और बाद में उनका विरोध करना, इससे काम नही चलेगा।'
कुछ माह पहले फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट में राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे से हाथ मिलाने के संकेत दिए थे। महेश मांजरेकर ने पूछा कि क्या अब भी दोनों भाई साथ आ सकते हैं? इस पर राज ठाकरे ने कहा कि 'महाराष्ट्र के अस्तित्व, महाराष्ट्र के लोगों के अस्तित्व के सामने हमारे मतभेद कुछ भी नहीं हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता कि साथ आना कोई बहुत मुश्किल है। सिर्फ इसकी नीयत होनी चाहिए। ये सिर्फ मेरी बात नहीं है और न ही ये मेरे हितों के बारे में है। हमें बड़ी तस्वीर देखनी चाहिए।'
राज ठाकरे का बयान सामने आने के बाद शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी तुरंत सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि 'मैं छोटे-मोटे झगड़ों को किनारे रखने के लिए तैयार हूं। मैं सभी मराठी लोगों से महाराष्ट्र की भलाई के लिए एकजुट होने की अपील करता हूं, लेकिन एक तरफ उनका (भाजपा का) समर्थन करना और बाद में उनका विरोध करना, इससे काम नही चलेगा।'
हिंदी भाषा ने तैयार की एकजुटता की जमीन
राज और उद्धव के साथ आने की जमीन इस साल के मध्य में ही तैयार हो गई थी, जब महाराष्ट्र सरकार के तीन भाषा के फार्मूले के तहत हिंदी पढ़ाने के फैसले का राज ठाकरे के साथ उद्धव ने भी विरोध किया था। विरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार ने 17 जून को एक और प्रस्ताव जारी किया, जिसमें हिंदी पढ़ने की अनिवार्यता खत्म कर उसे वैकल्पिक कर दिया गया। हालांकि विरोध नहीं थमा, जिसके बाद 29 जून को सरकार ने सरकारी प्रस्ताव जारी कर तीन भाषा फार्मूले को ही वापस ले लिया।
इस पूरे घटनाक्रम ने मनसे और शिवसेना के गठबंधन का आधार तय कर दिया। यही वजह रही कि सरकार द्वारा तीन भाषा फार्मूला वापस लेने के बाद ही दोनों पार्टियों ने 5 जुलाई को साझा रैली करने का एलान कर दिया। दोनों पार्टियों ने सरकार के फैसले को अपनी जीत के तौर पर प्रचारित किया और कहा कि मराठी एकता से सरकार घबरा गई। इस दौरान दोनों भाई एक मंच पर भी जुटे थे और दोनों में करीबी नजर आई थी। हालांकि, तब यह करीबी चुनावी गठबंधन में तब्दील नहीं हो सकी।
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राज और उद्धव के साथ आने की जमीन इस साल के मध्य में ही तैयार हो गई थी, जब महाराष्ट्र सरकार के तीन भाषा के फार्मूले के तहत हिंदी पढ़ाने के फैसले का राज ठाकरे के साथ उद्धव ने भी विरोध किया था। विरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार ने 17 जून को एक और प्रस्ताव जारी किया, जिसमें हिंदी पढ़ने की अनिवार्यता खत्म कर उसे वैकल्पिक कर दिया गया। हालांकि विरोध नहीं थमा, जिसके बाद 29 जून को सरकार ने सरकारी प्रस्ताव जारी कर तीन भाषा फार्मूले को ही वापस ले लिया।
इस पूरे घटनाक्रम ने मनसे और शिवसेना के गठबंधन का आधार तय कर दिया। यही वजह रही कि सरकार द्वारा तीन भाषा फार्मूला वापस लेने के बाद ही दोनों पार्टियों ने 5 जुलाई को साझा रैली करने का एलान कर दिया। दोनों पार्टियों ने सरकार के फैसले को अपनी जीत के तौर पर प्रचारित किया और कहा कि मराठी एकता से सरकार घबरा गई। इस दौरान दोनों भाई एक मंच पर भी जुटे थे और दोनों में करीबी नजर आई थी। हालांकि, तब यह करीबी चुनावी गठबंधन में तब्दील नहीं हो सकी।
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