सब्सक्राइब करें
Hindi News ›   India News ›   maoism naxalism left wing extremism are on target of Amit Shah after Article 370

क्या अनुच्छेद 370 के बाद नक्सलवादी हैं अमित शाह के निशाने पर

सलमान रावी, बीबीसी हिंदी Published by: अमर शर्मा Updated Tue, 27 Aug 2019 08:31 PM IST
विज्ञापन
maoism naxalism left wing extremism are on target of Amit Shah after Article 370
प्रतीकात्मक तस्वीर
विज्ञापन
क्या जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद अब केंद्र सरकार और खास तौर पर गृह मंत्री अमित शाह के निशाने पर मध्य और पूर्वी भारत में सक्रिय नक्सलवादी हैं?
Trending Videos


राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में इस सवाल को लेकर बहस चल रही है क्योंकि अगर गृह मंत्रालय के आंकड़ों को देखा जाए तो साल 2014 से लेकर साल 2018 तक जहां जम्मू और कश्मीर में आम नागरिक, सुरक्षा बलों के जवान और आतंकवादियों को मिलाकर कुल 1,315 लोग मारे गए, वहीं इसी अंतराल में नक्सल प्रभावित इलाकों में ये संख्या 2,056 बताई गई है।
विज्ञापन
विज्ञापन


ये आंकड़े चौकाने वाले हैं क्योंकि फिलहाल सबका ध्यान जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खत्म किए जाने पर लगा हुआ है।

गृह मंत्री बनने के बाद अमित शाह ने सोमवार को पहली बार जो बैठक बुलाई तो वो सिर्फ और सिर्फ नक्सल समस्या और उसके समाधान को लेकर बुलाई गई। बैठक में 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय सुरक्षा बलों के महानिदेशकों को भी आमंत्रित किया गया था।

हालांकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस बैठक में शामिल नहीं हो सके और उनकी जगह उनके राज्य के पुलिस महानिदेशकों ने बैठक में शिरकत की।

नक्सल प्रभावित इलाके

आंतरिक सुरक्षा से जुड़े विशेषज्ञ तीनों मुख्यमंत्रियों की गैरहाजरी पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहते हैं कि जहां महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में हाल ही में बड़ा नक्सली हमला हुआ था और तेलंगाना हमेशा से ही माओवादियों का गढ़ रहा है, इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों का बैठक में नहीं आना अपने आप में चिंता का विषय है।

सरकारी सूत्र कहते हैं कि फडणवीस महाराष्ट्र में हो रहे चुनावों को लेकर काफी व्यस्त हैं।

बैठक को लकर कोई आधिकारिक बयान फौरन तो जारी नहीं किया गया, मगर इसमें शामिल कुछ अधिकारियों का कहना था कि जोर इस बात पर दिया गया कि नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में विकास में कैसे तेजी लाई जा सकती है और छापामार युद्ध से किस तरह निपटा जा सकता है।

केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के महानिदेशक रह चुके प्रकाश सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि इससे पहले भी बैठकें होती रहीं हैं मगर उन्होंने स्वीकार किया कि गृह मंत्रालय के आंकड़ों को देखने से जरूर लगेगा कि नक्सल प्रभावित इलाकों में हिंसा ज्यादा है।

वो कहते हैं, "मगर ये बात भी सच है कि अगर आप सालाना आंकड़ों के हिसाब से देखें तो नक्सली हमलों की घटनाओं में गिरावट जरूर आई है।"

वामपंथी विचाधारा

वैसे जुलाई में ही संसद में एक सांसद के प्रश्न का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा था कि भौगोलिक रूप से नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाके 'सिकुड़' रहे हैं। उनका ये भी कहना था कि अब सिर्फ 60 जिले ही ऐसे बचे हैं जहां माओवादियों का प्रभाव है और उनमे से भी सिर्फ 10 ऐसे जिले हैं जहां सबसे ज्यादा हिंसा दर्ज की गई है।

मगर प्रकाश सिंह कहते हैं कि ये मान लेना सही नहीं है कि सरकार ने माओवादियों को दबा दिया है या उनके प्रभाव को खत्म करने में कामियाबी हासिल की है।

उन्हें लगता है, "ऐसा दो बार पहले भी हो चुका है 60 और 70 के दशक में जब वामपंथी विचाधारा से जुड़े कई लोग अलग हो गए और अपनी पार्टियां बना लीं। लेकिन तभी कोंडपल्ली सिथरामैय्यह ने पीपल्स वार ग्रुप बना लिया।"

वो ये भी कहते हैं कि 2004 में जब माओवादी कन्युनिस्ट सेंटर और पीडब्लूजी का विलय हुआ तो माओवादियों का पहले से भी ज्यादा सैन्यीकरण हुआ है।

जानकार मानते हैं कि माओवादी पूरी तरह से पीछे नहीं हटे हैं क्योंकि जंगलों और सुदूर अंचलों में जो आर्थिक और सामजिक हालात हैं वो उन्हें और भी ज्यादा मजबूत कर रहे हैं।

आदिवासियों को संविधान से मिले हक

लेकिन अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के अध्यक्ष मनीष कुंजाम को लगता है कि अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद अब सरकार आदिवासियों को संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों पर हाथ डालना चाहती है।

मिसाल के तौर पर वो कहते हैं कि आठ अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर सभी की ये चिंता थी कि माओवादियों के नाम पर कहीं इन अधिकारों को न छीन लिया जाए।

उनका इशारा संविधान की पांचवीं अनुसूची और 'पंचायती राज एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट' की तरफ था।

कुंजाम कहते हैं, "इन प्रावधानों की वजह से आदिवासियों की ग्राम सभाओं और पंचायतों को कई अधिकार मिले हुए हैं जिसकी वजह से बड़ी-बड़ी कंपनियों को इन इलाकों से खनिज सम्पदा लूटना तो चाहती हैं मगर उनके सामने कानूनी अड़चनें आ रहीं हैं।"

वैसे उनका आरोप है कि वन अधिकार अधिनियम को भी लचर बनाने की पूरी कोशिश की जा रही है ताकि बड़े पैमाने पर आदिवासियों का विस्थापन हो।

अतिरिक्त सुरक्षा बल

मनीष कुंजाम ने नियमगिरि और बैलाडीला में लोह अयस्क की खदान के विरोध में आदिवासियों के प्रदर्शन का हवाला भी दिया।

लेकिन बैठक में मौजूद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मानना है कि चर्चा विकास और पुलिस के आधुनिकीकरण पर की गई।

साथ ही माओवाद प्रभावित जिलों के विकास के लिए अतिरिक्त धनराशि मुहैया कराने पर भी चर्चा की गई। इस पर भी चर्चा हुई कि किस तरह माओवाद प्रभावित राज्यों की पुलिस के बीच आपस का समन्वय बेहतर किया जा सके।

उन्होंने कहा कि कई राज्यों ने केंद्र से अतिरिक्त सुरक्षा बलों की मांग की है। जहाँ तक छापामार युद्ध का सवाल है तो बघेल कहते हैं कि केंद्रीय सुरक्षा बलों को इसके प्रशिक्षण का अभाव है।
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News apps, iOS Hindi News apps और Amarujala Hindi News apps अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed