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चिंताजनक: माइक्रोप्लास्टिक से पुरुषों में हार्ट अटैक का खतरा सबसे ज्यादा, धमनियों में जमा हो रहे बारीक कण

अमर उजाला नेटवर्क Published by: पवन पांडेय Updated Wed, 31 Dec 2025 06:57 AM IST
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सार

माइक्रोप्लास्टिक पुरुषों में हार्ट अटैक के खतरे को तेजी से बढ़ा रहा है। ये बेहद बारीक प्लास्टिक कण होते हैं, जो खाने, पानी, हवा और रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक चीजों से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। शोध में पाया गया है कि ये सूक्ष्म प्लास्टिक कण शरीर की धमनियों तक पहुंच जाते हैं और वहां जमा चर्बी में फंस जाते हैं। इससे धमनियां सख्त और संकरी हो जाती हैं, जिससे रक्त प्रवाह में रुकावट आती है। यही स्थिति आगे चलकर हार्ट अटैक या स्ट्रोक का कारण बन सकती है।

Microplastics pose the greatest risk of heart attack in men, as these tiny particles are accumulating in their
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : freepik
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विस्तार
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प्लास्टिक आधुनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, लेकिन अब इसके बेहद सूक्ष्म कण माइक्रोप्लास्टिक मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे के रूप में उभर रहे हैं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड (यूसीआर) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए नए शोध से संकेत मिलता है कि माइक्रोप्लास्टिक धमनियों में सूजन और प्लाक बनने की प्रक्रिया को तेज कर सकते हैं, जिससे हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ता है। यह अध्ययन इसलिए भी अहम है क्योंकि इसमें यह प्रभाव विशेष रूप से पुरुषों में अधिक स्पष्ट पाया गया है।
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यूसीआर के वैज्ञानिकों ने ऐसे चूहों पर प्रयोग किया, जिनमें आनुवंशिक रूप से हृदय रोग होने का खतरा अधिक था। इन चूहों को कम वसा और कम कोलेस्ट्रॉल वाला भोजन दिया गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परिणाम पारंपरिक जोखिम कारकों जैसे मोटापा या उच्च कोलेस्ट्रॉल की वजह से न हों। लगभग 9 हफ्तों तक इन चूहों को रोजाना माइक्रोप्लास्टिक की एक सीमित मात्रा दी गई, जो इंसानों को भोजन और पानी के जरिए मिलने वाले संभावित स्तर के करीब थी।

एनवायरमेंट इंटरनेशनल पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे बेहद चिंताजनक हैं। नर चूहों में दिल के पास स्थित एक प्रमुख धमनी में प्लाक का निर्माण लगभग 63 प्रतिशत तक बढ़ गया। वहीं, एक दूसरी बड़ी धमनी में प्लाक की मात्रा 600 प्रतिशत से भी अधिक बढ़ी हुई पाई गई। इसके विपरीत, मादा चूहों में समान माइक्रोप्लास्टिक संपर्क के बावजूद धमनियों में कोई बड़ा नकारात्मक बदलाव नहीं देखा गया। अध्ययन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि माइक्रोप्लास्टिक से हुआ यह नुकसान न तो वजन बढ़ने से जुड़ा था और न ही कोलेस्ट्रॉल स्तर में किसी वृद्धि से। चूहे मोटे नहीं हुए और उनके रक्त में वसा का स्तर भी सामान्य रहा। इसका अर्थ यह है कि माइक्रोप्लास्टिक ने सीधे तौर पर धमनियों को जैविक स्तर पर नुकसान पहुंचाया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इसका असर पारंपरिक हृदय जोखिम कारकों से अलग और स्वतंत्र है।

इसलिए पुरुषों पर असर ज्यादा
शोधकर्ताओं का मानना है कि महिलाओं में मौजूद एस्ट्रोजन हार्मोन कुछ हद तक हृदय और रक्त नलिकाओं को सुरक्षा प्रदान कर सकता है। इसके अलावा, पुरुषों और महिलाओं की कोशिकाएं सूजन और बाहरी कणों के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया देती हैं। हालांकि, इस लैंगिक अंतर के पीछे के सटीक जैविक कारणों को समझने के लिए आगे और शोध की जरूरत बताई गई है।

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ऐसे कम करें जोखिम...
हालांकि माइक्रोप्लास्टिक से पूरी तरह बचना मौजूदा समय में मुश्किल है, लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि जोखिम को कम किया जा सकता है। प्लास्टिक की जगह कांच या स्टील के बर्तनों का उपयोग, एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक से परहेज, अत्यधिक प्रोसेस्ड भोजन से दूरी और दिल की सेहत के लिए संतुलित आहार व नियमित व्यायाम जैसे कदम माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।


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