मिजोरम विधानसभा चुनाव : निर्णायक की भूमिका में रहेंगे छोटे राजनीतिक दल
पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में इस बार त्रिशंकु विधानसभा के अंदेशे से मैदान में उतरे क्षेत्रीय दलों की अहमियत काफी बढ़ गई है। किसी भी प्रमुख पार्टी को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में सरकार के गठन में इन दलों की भूमिका अहम होगी। राज्य के मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए नेशनल पीपुल्स पार्टी और जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने चुनावों के बाद किंग मेकर के तौर पर उभरने का दावा किया है।
सात क्षेत्रीय दलों के गठबंधन जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के अध्यक्ष लालदुहोमा राजधानी आइजल की पश्चिम-1 सीट से मैदान में हैं। वे अपनी पार्टी से मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी हैं। जेडपीएम ने 39 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। हालांकि चुनाव आयोग के समक्ष पंजीकरण नहीं होने की वजह से जेडपीएम के तमाम उम्मीदवार निर्दलीय के तौर पर ही चुनाव लड़ रहे हैं। लालदुहोमा कहते हैं कि कांग्रेस और एमएनएफ से तंग आ चुके लोग इस बार उनकी पार्टी का ही समर्थन करेंगे। लेकिन विधानसभा त्रिशंकु हुई तब भी सरकार के गठन में जेडपीएम की अहम भूमिका रहेगी।
राज्य की पांच सीटों पर चुनाव लड़ने वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के अध्यक्ष व मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा भी कह चुके हैं कि इस बार उनकी पार्टी सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाएगी।
हो सकता है त्रिकोणीय मुकाहला
दूसरी ओर, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि मिजोरम विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन की स्थिति में पार्टी चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस समेत किसी भी पार्टी के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार है। असम के वित्त मंत्री और राज्य में भाजपा के चुनाव प्रभारी हिमंत विश्व शर्मा ने कहा है कि कांग्रेस, मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) समेत तमाम राजनीतिक दलों में भाजपा के कुछ मित्र हैं। जरूरत पड़ने पर पार्टी उनके साथ तालमेल करने के लिए तैयार है।
एमएनएफ के प्रमुख व पूर्व मुख्यमंत्री जोरमथांगा भी इस बार त्रिशंकु विधानसभा का अंदेशा जता चुके हैं। अगर ऐसा होता है तो यह मिजोरम के चुनावी इतिहास में पहला ऐसा मौका होगा जब किसी पार्टी को अकेले बहुमत नहीं मिले। अलग राज्य के गठन के बाद अब तक यहां सात बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। हर बार या तो कांग्रेस को बहुमत मिलता रहा है या फिर एमएनएफ को।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि भाजपा कुछ सीटें जीत लेती है तो वह एनडीए में अपने सहयोगी एमएनएफ को समर्थन दे सकती है। एनपीपी के अलावा सात क्षेत्रीय दलों को लेकर बने जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। इसे पांच-छह सीटें मिल गईं तो वह किंगमेकर की भूमिका में आ सकता है।
चुनाव प्रचार थमा, विकास और शराबबंदी ही मुद्दा
मिजोरम विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार का शोर सोमवार को थम गया। वैसे, देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले यहां प्रचार का वैसा शोर नहीं होता। इसकी वजह है मिजो पीपुल्स फोरम (एमपीएफ) के कड़े दिशा-निर्देश। बुधवार को राज्य की 40 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होना है। इस बार विकास और शराबबंदी ही सबसे बड़े मुद्दे के तौर पर उभरे हैं।
राज्य में 7.68 लाख मतदाताओं में 3.74 लाख पुरुष और 3.93 लाख महिलाएं हैं। राज्य के संयुक्त मुख्य चुनाव अधिकारी जोराम्मुआना ने बताया कि कुल 1,164 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। चुनाव आयोग ने यहां 32 मतदान केंद्रों को अति संवेदनशील और 32 केंद्रों को संवेदनशील घोषित किया है। जोराम्मुआना ने बताया कि शांतिपूर्ण मतदान के लिए राज्य सशस्त्र पुलिस बल के अलावा केंद्रीय बलों की 40 कंपनियां तैनात की गई हैं।