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Nagaland: राज्य में आरक्षण समीक्षा विवाद गहराया, पांच जनजातियों की समिति ने सरकार के फैसले को बताया पक्षपाती

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कोहिमा Published by: शुभम कुमार Updated Thu, 07 Aug 2025 03:28 PM IST
सार

नगालैंड में आरक्षण नीति की समीक्षा को लेकर एक बार फिर विवाद गहराता जा रहा है। जहां पांच जनजातियों की समिति (सीओआरआरपी) ने सरकार द्वारा गठित नए आयोग को पक्षपाती बताया। समिति ने आरोप लगाया कि उनकी मुख्य मांगों को नजरअंदाज की गईं है।

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नेफियू रियो, सीएम, नगालैंड - फोटो : ANI
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विस्तार
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नगालैंड में आरक्षण नीति की समीक्षा को लेकर विवाद लगातार रूप से गहराता जा रहा है। जहां पांच जनजातियों की समिति कमेटी ऑन रिव्यू ऑफ रिजर्वेशन पॉलिसी (सीओआरआरपी) ने राज्य सरकार के हालिया फैसले की कड़ी आलोचना की है। साथ ही समिति ने 12 जून के फैसले की दोहराव बताते हुए कहा कि सरकार ने फिर से उनकी मुख्य मांगों को नजरअंदाज कर दिया है।

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(सीओआरआरपी) के संयोजक तेसिनलो सेमी और सदस्य सचिव जीके झिमोमी ने बयान जारी कर कहा कि सरकार ने बिना किसी निष्पक्ष दृष्टिकोण के फिर से एक आरक्षण समीक्षा आयोग बना दिया है, जिसमें सिविल सोसाइटी संगठनों जैसे सेंट्रल नगालैंड ट्राइब्स काउंसिल, ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन और टेनीयिमी यूनियन नागलैंड को शामिल किया गया है।

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क्या है समिति की मुख्य मांगे?
वहीं बात अगर समिति की मांग करें तो उनकी मुख्य मांगें हैं आयोग की रचना निष्पक्ष और स्वतंत्र हो स्पष्ट टर्म्स ऑफ रेफरेंस (कार्यदायित्व) तय किए जाएं। समिति ने सरकार पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा कि आयोग की घोषित संरचना पूरी तरह से एकतरफा है।


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मंत्री के बयान पर भी आपत्ति
राज्य मंत्री और प्रवक्ता केजी केन्ये ने बुधवार को कहा था कि गैर-पिछड़ी पांच जनजातियों के पास राज्य की 64% सरकारी नौकरियां हैं, जबकि 10 पिछड़ी जनजातियों के पास सिर्फ 34%। इस असंतुलन को दूर करने के लिए एक सेवानिवृत्त अधिकारी की अध्यक्षता में नया आयोग बनेगा, जो छह महीने में रिपोर्ट देगा।

शनिवार को होगी एक साथ बैठक
हालांकि इसके जवाब में (सीओआरआरपी) ने मंत्री के बयान को काल्पनिक आंकड़ों पर आधारित बताया। साथ ही कहा कि 48 साल पुरानी आरक्षण नीति को बिना समीक्षा के जारी रखना और उसे 2026 की जनगणना से जोड़ना आंदोलन के साथ अन्याय है। साथ ही मामले में (सीओआरआरपी) ने शनिवार को कोहिमा में पांच प्रमुख जनजातीय संगठनों के साथ एक बैठक बुलाई है, जिसमें आगे की कार्रवाई पर फैसला किया जाएगा।

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अब समझिए आरक्षण नीति पर विवाद क्यों?
गौरतलब है कि 1977 में नगालैंड में आरक्षण नीति लागू की गई थी। शुरू में सात पिछड़ी जनजातियों को 25% आरक्षण दिया गया था (गैर-तकनीकी और गैर-राजपत्रित पदों में)। बाद में यह बढ़कर कुल 37% हो गया, जिसमें 25% पूर्वी नगालैंड की जनजातियों के लिए और 12% अन्य चार पिछड़ी जनजातियों के लिए तय किया गया। मामले में समिति का कहना है कि यह नीति अब राज्य की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति को नहीं दर्शाती और इसकी समीक्षा ज़रूरी है। हालांकि मामले में (सीओआरआरपी) ने पहले भी 29 मई और 9 जुलाई को विरोध रैलियां आयोजित की थीं, जिनमें दीमापुर, कोहिमा, मोकोकचुंग, वोक्हा, चुमौकेदिमा जैसे जिलों में प्रदर्शन हुए थे। 

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