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पेगासस स्पाईवेयर: लीक हो रहा सीबीएसई स्टूडेंट का डाटा, बच्चों तक पहुंच चुके हैं 'साइबर सेंधमार'  

Jitendra Bhardwaj जितेंद्र भारद्वाज
Updated Tue, 20 Jul 2021 10:52 PM IST
सार

सीबीएसई स्टूडेंट्स का डाटा भी लीक हो रहा है। देश में डेटा प्राइवेसी इतनी मजबूत नहीं है कि वह साइबर सेंधमारों को बच्चों तक पहुंचने से रोक सके। जनता का डाटा 35 पैसे से लेकर एक रुपये प्रति व्यक्ति के दाम बिक रही हैं। 
 

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Pegasus spyware: CBSE student data being leaked, 'cyber burglars' have reached children
Data leak - फोटो : quickheal
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विस्तार
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'पेगासस स्पाईवेयर' की तर्ज पर सीबीएसई स्टूडेंट्स का डेटा भी लीक हो रहा है। देश में डेटा प्राइवेसी की चेन इतनी मजबूत नहीं है कि वह साइबर सेंधमारों को बच्चों तक पहुंचने से रोक सके। अभी तक यही सामने आया था कि देश में पब्लिक का डेटा खुलेआम बिक रहा है। दिल्ली सहित कई शहरों में ऐसे कॉल सेंटर पकड़े जा चुके हैं, जहां पर 35 पैसे से लेकर एक रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से डेटा बेचा जाता है। 

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देश के प्रख्यात साइबर विशेषज्ञ रक्षित टंडन का कहना है, चूंकि हमारे देश में मजबूत आईटी कानून का अभाव है, डाटा प्रोटेक्शन बिल अभी संसद में है, ऐसी स्थिति में साइबर अपराध करने वालों को एक आसान राह मिल जाती है। कोरोनाकाल में कई ऐसे एप बन चुके हैं, जिनके मार्फत स्कूल या किसी दूसरी संस्था की मदद से स्टूडेंट का डेटा आसानी से चुराया जा सकता है। अभी सीबीएसई की 12 वीं क्लास का रिजल्ट नहीं आया है, लेकिन अभिभावकों के पास फोन कॉल और ईमेल आने लगे हैं कि फलां इंस्टीट्यूट आपके बच्चे के लिए ठीक रहेगा। बच्चा कौन से संकाय में है, यह सब जानकारी उनके पास रहती है। इसे आप क्या कहेंगे, मतलब साफ है कि देश में 'पेगासस स्पाईवेयर' जैसा कोई छोटा सॉफ्टवेयर काम कर रहा है। 
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साइबर विशेषज्ञ रक्षित टंडन बताते हैं, आज हमने मोबाइल फोन को आईटी का टॉप गजट मान लिया है। हमारा अधिकतर काम फोन पर होने लगा है। बैंक से लेकर स्कूल की फीस, बिजली का बिल, शॉपिंग और अनेक ऐसे काम, जिनके लिए आपको अब किसी के पास जाना नहीं पड़ता है। मोबाइल फोन के जरिए वे काम आसानी से हो जाते हैं। इस चक्कर में आप फोन पर ज्यादा से ज्यादा लोगों के संपर्क में आ जाते हैं। 

ऐसे कर सकते हैं बचाव

गूगल सर्च इंजन की शक्ति से आगे जाकर कुछ खोजने का प्रयास करते हैं। बतौर रक्षित टंडन, आप सब कुछ करते हैं, मगर फोन में मौजूद सॉफ्टवेयर को अपडेट करना भूल जाते हैं। सर्च पैटर्न को बदलें। एक विश्वसनीय ब्राउजर का इस्तेमाल करें। साइबर अपराध के ज्यादातर मामलों में एक वेबसाइट ही ट्रैकर को आपकी जानकारी दे देती है।  आज एक ऐसा दौर है कि आपने गूगल पर दवा, उपकरण, अस्पताल की जानकारी या कुछ और खोजा है तो उसके थोड़ी देर में आपके पास दर्जनों कंपनियां की ईमेल या कॉल आने लगती है। जाने अनजाने हम ऐसे लिंक पर क्लिक कर देते हैं, जो आपको सीधे हैकर से जोड़ देता है। 

पासपोर्ट, पेनकार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना है, आप एक ही बार सर्च करते हैं, लेकिन धड़ाधड़ आपके पास विभिन्न साइटों के लिंक आने शुरु हो जाते हैं। इन्हीं में 'पेगासस स्पाईवेयर' जैसे छोटे 'जासूस' छिपे रहते हैं। वे आपका डेटा चुरा लेते हैं। साइबर सेंधमारी से बचने के लिए केवल सरकारी वेबसाइट जैसे जीओवी.इन पर ही जाएं। 

अगर आपके मोबाइल फोन या कंप्यूटर में पावरफुल सिक्योरिटी टूल है तो आप साइबर क्राइम से बच सकते हैं। कई लोगों के मोबाइल फोन में बॉडीगार्ड जैसे टूल रहते हैं तो वे आसानी से ट्रैकर के जाल में नहीं फंसते। अगर वीपीएन चालू हो जाता है तो भी ट्रैकर आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकता। 

डेटा प्रोटेक्शन बिल को जल्द मिले मंजूरी

हमारे देश में जितनी जल्दी हो सके, डेटा प्रोटेक्शन बिल को संसद की मंजूरी मिलते ही कानून की शक्ल दे दी जाए। रक्षित टंडन कहते हैं, यही काफी नहीं है कि बिल पास हो गया। इसमें ठोस एवं प्रभावी कानून रखने होंगे। आईटी कानून में भी संशोधन होगा। इस कानून में करीब एक दशक पहले ही हल्का फुल्का बदलाव हुआ था। 

आज के दौर में लोगों की निजता की रक्षा के लिए मजबूत डेटा संरक्षण कानून की जरूरत है। एक ऐसा कानून, जो उन्हें सरकारी एजेंसियों द्वारा अवैध डेटा संग्रहण और प्राइवेट जासूसों से बचा सके। सरकार दावा करती है कि देश में निजता को कोई खतरा नहीं है, लेकिन रोजाना की घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि अभी ठोस कानूनों की आवश्यकता है। 

साल 2019 में सीबीआई को एक शिकायत दी गई थी। इसमें कहा गया कि 12 वीं क्लास के बाद विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग इंस्टीट्यूट के पास स्टूडेंट का डेटा होता है। इसमें अभिभावक, स्कूल, आधार नंबर, मोबाइल फोन, पेनकार्ड व परिवार से जुड़ी अन्य जानकारी शामिल होती हैं। नीट व जेईई जैसे टेस्टों की तैयारी के लिए प्राइवेट सेंटरों के पास स्टूडेंट का डेटा रहता है। वहां से तैयारी के लिए टिप्स बताए जाते हैं। 
 

सरकार को मजबूत कदम उठाने होंगे

रक्षित टंडन बताते हैं, यही तो हैरान करने वाली बात है कि आपका डेटा वहां कैसे पहुंचा। उसने किसने लीक किया है। वह डेटा तीन जगह पर होता है। एक आपके पास, दूसरा स्कूल में और तीसरा बोर्ड के पास। वह राज्य स्तर का या सीबीएसई जैसा बोर्ड हो सकता है। कॉलेजों में दाखिले से पहले ही अभिभावकों के मोबाइल पर कॉल आ जाती है। मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिले के लिए घर तक एजेंट पहुंच जाते हैं। रक्षित टंडन के मुताबिक, ये निजी डेटा में सेंध है। सरकार को इससे निपटने के लिए मजबूत कदम उठाने होंगे। साथ ही लोगों को भी जल्दबाजी और सस्ते के चक्कर में किसी अनजान वेबसाइट, ईमेल या किसी दूसरे लिंक से अपनी प्राइवेसी को बचाना होगा।

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