SC: ISKCON बंगलूरू बनाम इस्कॉन मुंबई संपत्ति विवाद पर सुप्रीम फैसला आज; 'पेड़ कटाई' पर तेलंगाना सरकार को फटकार
सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को बंगलूरू स्थित प्रसिद्ध हरे कृष्ण मंदिर और शैक्षणिक परिसर के नियंत्रण को लेकर इस्कॉन बंगलूरू व इस्कॉन मुंबई के बीच चले लंबे विवाद पर अपना फैसला सुनाएगा। न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पिछले साल 24 जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट के फैसले में इस्कॉन मुंबई के पक्ष में फैसला दिया गया था। इस्कॉन बंगलूरू ने 2 जून, 2011 को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसमें 23 मई 2011 के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने 2009 के बंगलूरू की एक स्थानीय अदालत के फैसले को पलट दिया था। इसमें इस्कॉन बंगलूरू को संपत्ति पर कानूनी अधिकार दिया गया था। इस्कॉन मुंबई ने दावा किया कि बंगलूरू शाखा उसकी एक इकाई है और संपत्ति पर उसका अधिकार है। इस्कॉन बंगलूरू का कहना है कि वह दशकों से स्वतंत्र रूप से मंदिर का संचालन कर रहा है। इस्कॉन मुंबई का दावा है कि बंगलूरू मंदिर उसके अधीन आता है।
पेड़ों की कटाई पर तेलंगाना सरकार को फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास कान्चा गाचीबोवली जंगल में पेड़ों की अवैध कटाई पर कड़ा रुख अपनाया और कहा कि यह काम पहले से योजनाबद्ध लगता है। साथ ही कोर्ट ने तेलंगाना सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जंगल दोबारा तैयार नहीं किया गया तो तेलंगाना सरकार के अधिकारी जेल जा सकते हैं।
'सोमवार को क्यों नहीं शुरू किया काम'
मामले में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि पेड़ों की कटाई ऐसे समय पर की गई जब कोर्ट तीन दिन की छुट्टी पर था, ताकि कोई रोक न लग सके। कोर्ट ने सवाल किया कि अगर आपकी मंशा सही थी तो आपने सोमवार को काम शुरू क्यों नहीं किया? बता दें कि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 3 अप्रैल को स्वत: संज्ञान लेते हुए आदेश दिया था कि वन क्षेत्र में यथास्थिति बनी रहे और कोई नया काम न हो। इसके बावजूद पेड़ों की कटाई की गई, जो आदेश का उल्लंघन है।
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सुप्रीम कोर्ट ने दी सख्त चेतावनी
तेलंगाना सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अब वहां कोई गतिविधि नहीं हो रही है और सरकार कोर्ट के आदेशों का पूरा पालन करेगी। इसपर कोर्ट ने कहा कि सरकार की तरफ से कोई ठोस पुनर्वनीकरण योजना पेश नहीं की गई है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर आप अदालत की अवमानना से बचना चाहते हैं, तो जंगल को दोबारा तैयार करें। नहीं तो मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों को अस्थायी जेल में भेजना पड़ सकता है।
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मामले में अगली सुनवाई 23 जुलाई को
हालांकि कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को तय की है और तब तक राज्य सरकार से स्पष्ट और व्यावहारिक पुनर्वनीकरण योजना पेश करने की उम्मीद जताई है। वहीं इसी मामले में एक वकील ने कोर्ट को बताया कि कुछ छात्रों ने जंगल बचाने के लिए प्रयास किया था और उन्हें पुलिस ने एफआईआर का सामना करना पड़ा है। इसपर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह केवल वन संरक्षण के मुद्दे पर ध्यान दे रहा है, अन्य मामलों को इसमें शामिल न किया जाए। साथ ही उच्च न्यायालय ने ये भी कहा कि एफआईआर का सामना कर रहे छात्र अपनी शिकायतें अलग याचिका के जरिए उठा सकते हैं।
जंगल की जमीन का गैर-वन उपयोग हुआ तो एक साल में वापस लें राज्य सरकारें- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि वे विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाकर यह जांच करें कि क्या आरक्षित वन भूमि को किसी निजी व्यक्ति या संस्था को गैर-वन कार्यों के लिए दिया गया है। मामले में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने निर्देश दिया कि ऐसी जमीनें वापस लेकर वन विभाग को सौंपी जाएं। अगर किसी वजह से जमीन वापस लेना जनहित में न हो, तो संबंधित व्यक्ति या संस्था से जमीन की लागत वसूलकर उस धन का उपयोग वन विकास में किया जाए।
कोर्ट ने राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों को एक साल के भीतर यह प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया है। पीठ ने कहा कि आरक्षित वन भूमि का इस्तेमाल केवल वनीकरण (अफॉरेस्टेशन) के लिए होना चाहिए। बता दें कि यह फैसला पुणे की एक आरक्षित वन भूमि के मामले में आया, जिसमें कोर्ट ने कहा कि यह केस इस बात का उदाहरण है कि किस तरह नेताओं, अफसरों और बिल्डरों की मिलीभगत से कीमती जंगल की जमीन को पिछड़े वर्ग के लोगों के पुनर्वास के नाम पर व्यावसायिक उपयोग में ला दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति केम्पैया सोमशेखर को मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की है।
हिरासत में मौत मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को लगाई फटकार, सीबीआई को सौंपा केस
सुप्रीम कोर्ट ने देवा पारधी (24) की हिरासत में हुई मौत के मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई न करने पर मध्य प्रदेश सरकार को फटकार लगाई और जांच सीबीआई को सौंप दी। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने आदेश दिया कि दोषी पुलिसकर्मियों को एक महीने के भीतर गिरफ्तार किया जाए और जांच गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर पूरी की जाए। मामला चोरी के एक आरोप में देवा और उसके चाचा गंगाराम की गिरफ्तारी से जुड़ा है। याचिका में आरोप लगाया गया कि पुलिस ने देवा को बेरहमी से प्रताड़ित करके मार डाला, जबकि पुलिस का दावा था कि उसे दिल का दौरा पड़ा था। गंगाराम घटना के एकमात्र गवाह हैं। वे अभी भी जेल में बंद हैं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि दो पुलिस अधिकारियों को पुलिस लाइन भेज दिया गया है, लेकिन कोर्ट ने कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अभी तक किसी भी अधिकारी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद में उलझे एक दंपती को फटकार लगाई कि वे महाराजाओं की तरह व्यवहार न करें क्योंकि देश में 75 साल से अधिक समय से लोकतंत्र कायम है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने पति-पत्नी के वकील से कहा कि वह दिन में उनसे बात करें और अपनी मंशा से अवगत कराएं। पीठ ने कहा कि ऐसे बयान दिए जा रहे हैं कि मध्यस्थता विफल हो गई है? महाराजा या राजा की तरह व्यवहार न करें। लोकतंत्र के पचहत्तर साल बीत चुके हैं। पीठ ने चेतावनी दी कि यदि मध्यस्थता के माध्यम से कोई समाधान नहीं निकला तो वह तीन दिनों के भीतर कठोर आदेश पारित करने से नहीं हिचकिचाएगी। ग्वालियर की रहने वाली महिला ने आरोप लगाया है कि अलग रह रहे उसके पति और उसके परिवार ने दहेज में रोल्स रॉयस कार और मुंबई में फ्लैट की मांग को लेकर उसे परेशान किया। पति ने आरोप से इनकार किया है। पति ने अलग रह रही पत्नी, उसके माता-पिता और रिश्तेदारों के खिलाफ विवाह प्रमाण पत्र तैयार करने में धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज कराया, जबकि महिला ने दहेज उत्पीड़न और क्रूरता का मामला दर्ज कराया। दोनों के वकील ने अदालत को बताया कि विवाद मुख्यतः धन को लेकर केंद्रित था। न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि हम जानते हैं कि यह केवल अहंकार के कारण है कि समझौता नहीं हो पाया है। यदि विवाद पैसे को लेकर है, तो उसे अदालत सुलझा सकती है, लेकिन इसके लिए पक्षों को आम सहमति पर पहुंचना होगा। पीठ ने सुनवाई अगले सप्ताह निर्धारित की।
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