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SC: न्यायिक अधिकारियों की वरिष्ठता और करियर प्रगति का मामला; 28 अक्तूबर से पांच जजों की पीठ करेगी सुनवाई
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: पवन पांडेय
Updated Tue, 14 Oct 2025 12:58 PM IST
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सार
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों के करियर ठहराव पर सुनवाई की तारीख तय की है। इस मामले की सुनवाई 28 अक्तूबर से पांच न्यायाधीशीय पीठ करेगी। इसकी अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट
- फोटो : एएनआई (फाइल)
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विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को घोषणा की कि वह 28 अक्तूबर से उच्च न्यायपालिका के कैडर में वरिष्ठता निर्धारण और न्यायिक अधिकारियों के करियर ठहराव से जुड़े अहम मुद्दों पर सुनवाई शुरू करेगा। सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशीय संविधान पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई करेंगे। इस पीठ में न्यायमूर्ति सूर्य कांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची भी शामिल हैं।
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'सभी प्रस्तुतियां 27 अक्तूबर तक दाखिल की जाएं'
पीठ ने न्यायिक अधिकारियों के करियर प्रगति के मुद्दे पर कई पक्षों के नोडल वकीलों को नामित किया और कहा कि सभी लिखित तर्क प्रस्तुतियां 27 अक्तूबर तक दाखिल की जाएं। यह आदेश कई याचिकाओं पर पारित किया गया, जिनमें ऑल इंडिया जज एसोसिएशन की तरफ से दायर याचिका भी शामिल थी। इन याचिकाओं में न्यायिक अधिकारियों की सेवा स्थितियों, वेतनमान और करियर प्रगति से जुड़े मुद्दे उठाए गए हैं।
7 अक्तूबर को शीर्ष अदालत ने पूरे देश के निचले न्यायिक अधिकारियों की तरफ से अनुभव किए जा रहे करियर ठहराव के मुद्दों को पांच न्यायाधीशीय संविधान पीठ के समक्ष भेजा था। मुख्य न्यायाधीश ने पहले कहा था कि न्यायपालिका में प्रवेश स्तर पर नियुक्त होने वाले अधिकारियों के लिए सीमित पदोन्नति अवसरों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक समाधान की आवश्यकता है।
मामले पर सीजेआई बीआर गवई की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि कई उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों ने इस मामले पर जारी नोटिसों के जवाब में अलग-अलग दृष्टिकोण व्यक्त किए हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'कुछ उच्च न्यायालयों का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों के कारण जो न्यायाधीश सेवा में सिविल जज, जूनियर डिवीजन के रूप में प्रारंभ करते हैं, वे जिला जज के पद तक नहीं पहुंच पाते।'
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कई राज्यों में प्रचलित असामान्य स्थिति का उल्लेख
सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों में प्रचलित असामान्य स्थिति का भी उल्लेख किया, जहां न्यायिक अधिकारियों की शुरुआत न्यायिक मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास (जेएमएफसी) के रूप में होती है, और वे प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज (पीडीजे) तक पहुंचने से पहले ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं, और उच्च न्यायालय की बेंच तक पदोन्नति का अवसर उन्हें नहीं मिल पाता। हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने इसके विपरीत तर्क प्रस्तुत किया कि ऐसे बदलाव सीधे भर्ती होने वाले जिला जज के योग्य उम्मीदवारों के लिए अनुचित होगा और उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।

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'सभी प्रस्तुतियां 27 अक्तूबर तक दाखिल की जाएं'
पीठ ने न्यायिक अधिकारियों के करियर प्रगति के मुद्दे पर कई पक्षों के नोडल वकीलों को नामित किया और कहा कि सभी लिखित तर्क प्रस्तुतियां 27 अक्तूबर तक दाखिल की जाएं। यह आदेश कई याचिकाओं पर पारित किया गया, जिनमें ऑल इंडिया जज एसोसिएशन की तरफ से दायर याचिका भी शामिल थी। इन याचिकाओं में न्यायिक अधिकारियों की सेवा स्थितियों, वेतनमान और करियर प्रगति से जुड़े मुद्दे उठाए गए हैं।
7 अक्तूबर को शीर्ष अदालत ने पूरे देश के निचले न्यायिक अधिकारियों की तरफ से अनुभव किए जा रहे करियर ठहराव के मुद्दों को पांच न्यायाधीशीय संविधान पीठ के समक्ष भेजा था। मुख्य न्यायाधीश ने पहले कहा था कि न्यायपालिका में प्रवेश स्तर पर नियुक्त होने वाले अधिकारियों के लिए सीमित पदोन्नति अवसरों को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक समाधान की आवश्यकता है।
मामले पर सीजेआई बीआर गवई की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि कई उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों ने इस मामले पर जारी नोटिसों के जवाब में अलग-अलग दृष्टिकोण व्यक्त किए हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'कुछ उच्च न्यायालयों का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों के कारण जो न्यायाधीश सेवा में सिविल जज, जूनियर डिवीजन के रूप में प्रारंभ करते हैं, वे जिला जज के पद तक नहीं पहुंच पाते।'
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कई राज्यों में प्रचलित असामान्य स्थिति का उल्लेख
सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों में प्रचलित असामान्य स्थिति का भी उल्लेख किया, जहां न्यायिक अधिकारियों की शुरुआत न्यायिक मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास (जेएमएफसी) के रूप में होती है, और वे प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज (पीडीजे) तक पहुंचने से पहले ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं, और उच्च न्यायालय की बेंच तक पदोन्नति का अवसर उन्हें नहीं मिल पाता। हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बसंत ने इसके विपरीत तर्क प्रस्तुत किया कि ऐसे बदलाव सीधे भर्ती होने वाले जिला जज के योग्य उम्मीदवारों के लिए अनुचित होगा और उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।