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Sengol: सेंगोल बनाने वाला परिवार ही उसे भूला, 2018 में याद आई पूरी कहानी; आजादी के बाद ऐसे सामने आया 'राजदंड'

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: शिवेंद्र तिवारी Updated Sun, 28 May 2023 05:53 AM IST
सार
कई दशकों तक 'सेंगोल' पर किसी का ध्यान नहीं गया और गलती से इसकी पहचान नेहरू की 'सोने की छड़ी' के रूप में पड़ गई। सेंगोल के निर्माण में शामिल रहा तमिलनाडु का वुम्मिदी परिवार भी अपने इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बारे में भूल चुका था।
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Sengol: The family that made Sengol forgot it, This is how the scepter came to the fore after independence
सेंगोल - फोटो : AMAR UJALA

विस्तार
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पीएम नरेंद्र मोदी आज नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित करेंगे। साथ ही प्रधानमंत्री नए संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की सीट के बगल में भारतीय स्वतंत्रता के प्रतीक सेंगोल को स्थापित करेंगे। यह जानकारी गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी थी। उन्होंने कहा कि नया संसद भवन हमारे इतिहास, सांस्कृतिक विरासत, परंपरा और सभ्यता को आधुनिकता से जोड़ने का सुंदर प्रयास है। इस अवसर पर एक ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित हो रही है।

सेंगोल।
सेंगोल। - फोटो : AMAR UJALA
पहले जानते हैं क्या है सेंगोल?
सेंगोल तमिल भाषा के शब्द 'सेम्मई' से निकला हुआ शब्द है। इसका अर्थ होता है धर्म, सच्चाई और निष्ठा। सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक हुआ करता था। सेंगोल शीर्ष पर एक 'नंदी' से सुशोभित एक स्वर्ण राजदंड है।

सेंगोल।
सेंगोल। - फोटो : Amar Ujala
नए संसद भवन में कहां और कैसे स्थापित किया जाएगा?
नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान सेंगोल को भव्य जुलूस के रूप में औपचारिक रूप से नए संसद भवन में ले जाया जाएगा। यह अवसर तमिल परंपरा की झलक देखने को मिलेगी। जानकारी के अनुसार, जुलूस का नेतृत्व तमिलनाडु के शास्त्रीय वाद्ययंत्र नादस्वरम बजाने वाले संगीतकारों का एक समूह करेगा। प्रधानमंत्री मोदी तमिल संस्कृति की रीतियों को अपनाते हुए इन संगीतकारों के साथ चलेंगे।

इसके अतिरिक्त तमिलनाडु में शैव मठों के 'अधीनम' या पुजारी लोकसभा के वेल (स्पीकर के बगल की जगह) में उपस्थित रहेंगे। वेल में पहुंचने पर पीएम मोदी पुजारियों का अभिवादन करेंगे, जो दोबारा सेंगोल को पवित्र जल से शुद्ध करेंगे। उधर पृष्ठभूमि में ओडुवार (तमिल मंदिर के गायक) 'कोलरू पाधिगम' की मधुर प्रस्तुति देंगे। इसके साथ ही नादस्वरम कोरस मनमोहक धुनों का जाप करेगा। इस पवित्र अनुष्ठान के बाद सेंगोल को पीएम मोदी को सौंप दिया जाएगा। पीएम नए संसद भवन में स्पीकर की सीट के बगल में एक कांच में ऐतिहासिक राजदंड स्थापित करेंगे। प्रतीकात्मक घटना भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक होगा।

सेंगोल के साथ पूर्व पीएम नेहरू
सेंगोल के साथ पूर्व पीएम नेहरू - फोटो : SOCIAL MEDIA
इसका ऐतिहासिक महत्व क्या है?
सेंगोल अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व रखता है क्योंकि यह भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा जवाहरलाल नेहरू को प्रस्तुत किया गया था। भारत के पहले भारतीय गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी के परपोते सी. आर. केसवन बताते हैं कि 1947 में जब आजादी नजदीक थी तब राजगोपालाचारी ने नेहरू जी को बताया कि यह प्राचीन भारतीय सभ्यता परंपरा है कि जब सत्ता का हस्तांतरण होता है तब पवित्र राजदंड सैंगोल को मुख्य पुजारी द्वारा नए राजा को दिया जाता है और यही होना चाहिए।

उन्होंने बताया कि यह राजदंड पहले माउंटबेटन को दिया गया, जिसे बाद में पुजारी को दिया गया, जिसे गंगाजल से पवित्र किया गया और इसे बाद में नेहरू को सौंपा गया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी। इसके बार में किसी को नहीं पता था। इस राजदंड को इलाहाबाद संग्रहालय में यह कहकर रखा गया कि यह एक गोल्डन वॉकिंग स्टिक है, जो पंडित नेहरू को दी गई थी।

सेंगोल
सेंगोल - फोटो : SOCIAL MEDIA
दोबारा कैसे खोजा गया सेंगोल?
कई दशकों तक 'सेंगोल' पर किसी का ध्यान नहीं गया और गलती से इसकी पहचान नेहरू की 'सोने की छड़ी' के रूप में पड़ गई। सेंगोल के निर्माण में शामिल रहा तमिलनाडु का वुम्मिदी परिवार भी अपने इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बारे में भूल चुका था। वुम्मिदी परिवार के सदस्य और चेन्नई स्थित वुमुदी बंगारू ज्वैलर्स (वीबीजे) के प्रबंध निदेशक अमरेंद्रन वुम्मुदी की मानें तो पहली बार 2018 में एक पत्रिका लेख के जरिए उन्हें 'सेंगोल' की कहानी पता चली। 2019 में उन्होंने इलाहाबाद संग्रहालय में राजदंड को खोजा। इसकी जानकारी सार्वजनिक करने करने के लिए अमरेंद्रन ने संग्रहालय के अधिकारियों के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की योजना बनाई। दुर्भाग्य से कोरोना आ जाने के कारण प्रेस कॉन्फ्रेंस योजना के अनुसार नहीं हो सकी इसलिए एक वीडियो बनाया गया। वीडियो ने आखिरकार प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान खींचा और पांच फुट लंबे सोने का राजदंड दोबारा सबके सामने आया।

प्रधानमंत्री कार्यालय की एक टीम ने वुम्मिदी परिवार से संपर्क किया। इसके बाद इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए), इतिहासकारों और तमिलनाडु के शैव मठ प्रमुखों के सहयोग से, वुम्मिदी परिवार ने एक डॉक्यूमेंट्री बनाई। आगे चलकर 'सेंगोल' की एक प्रतिकृति बनाई गई, जिसे वुम्मिदी कार्यालय में सुरक्षित रखा गया।

हाल ही में आईजीएनसीए ने वुम्मिदी परिवार से 'सेंगोल' प्रतिकृति के लिए एक और अनुरोध किया, लेकिन इस बार इसे चांदी की परत पर डिजाइन करना पड़ा। चांदी के राजदंड पर बाद में सोना चढ़ाया गया था। मॉडल सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए है, जबकि असली वाली हमेशा के लिए संसद में रख दी जाएगी। वुम्मिदी के पास काम को पूरा करने के लिए महज आठ दिन थे और कलाकारों की तीन टीमें दिन-रात काम कर रही थीं। सोना चढ़ाया हुआ राजदंड चेन्नई हवाई अड्डे पर अधिकारियों को सौंपा गया जो दिल्ली पहुंचा। एक सम्मान के रूप में, वुम्मिदी परिवार के सदस्यों को पीएम मोदी से मिलने और 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है।
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