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Shashi Tharoor: 'दुनिया के लिए भारत एक उभरता हुआ मॉडल', शशि थरूर ने फिर की पीएम मोदी की दिल खोलकर तारीफ
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु चंदेल
Updated Tue, 18 Nov 2025 04:41 PM IST
सार
शशि थरूर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रामनाथ गोयनका लेक्चर को आर्थिक दृष्टि और सांस्कृतिक मिशन का संयुक्त संदेश बताया। उन्होंने कहा कि पीएम ने भारत की रचनात्मक अधीरता, विरासत, भाषाओं व ज्ञान प्रणालियों को पुनर्जीवित करने के लिए 10 साल के राष्ट्रीय मिशन की अपील की।
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कांग्रेस सांसद शशि थरूर
- फोटो : ANI
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विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रामनाथ गोयनका लेक्चर पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने एक बार पीएम मोदी की दिल खोलकर तारीफ की है। थरूर ने कहा कि पीएम का पूरा संबोधन देश के लिए एक साथ आर्थिक दृष्टिकोण और सांस्कृतिक मिशन दोनों की तरह सामने आया। उनके मुताबिक प्रधानमंत्री ने ऐसे समय में यह संदेश दिया, जब भारत को तेज विकास, नई सोच और अपनी विरासत पर गर्व की संयुक्त दिशा की जरूरत है।
थरूर ने कहा कि प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में भारत की "रचनात्मक अधीरता" पर जोर दिया और पिछली औपनिवेशिक मानसिकता को पीछे छोड़ने की बात कही। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में बताया कि पीएम मोदी ने भारत की विरासत, भाषाओं और ज्ञान-परंपराओं पर गर्व बहाल करने के लिए 10 साल के राष्ट्रीय मिशन का आह्वान किया। थरूर के मुताबिक इस समय देश विकास की तेज रफ्तार के साथ सांस्कृतिक आत्मविश्वास की ओर भी बढ़ रहा है।
उभरता हुआ बाजार नहीं, उभरता हुआ मॉडल
थरूर ने बताया कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि भारत अब ‘इमर्जिंग मार्केट’ नहीं, बल्कि दुनिया के लिए ‘इमर्जिंग मॉडल’ बन चुका है। उन्होंने देश की आर्थिक मजबूती का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार का हर कदम लोगों की समस्याओं का समाधान करने की भावनात्मक प्रतिबद्धता से जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उन पर हमेशा चुनाव मोड में रहने का आरोप लगता है, लेकिन वह दरअसल ‘इमोशनल मोड’ में रहते हैं।
ये भी पढ़ें- 'दिल्ली दंगे राष्ट्र की संप्रभुता पर हमला', सुप्रीम कोर्ट में पुलिस ने कहा- यह घटना सुनियोजित थी
मैकाले की मानसिकता खत्म करने की बात
अपनी टिप्पणी में थरूर ने कहा कि पीएम मोदी का भाषण मैकाले की 200 साल पुरानी "दास मानसिकता" को खत्म करने पर केंद्रित रहा। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री ने भारतीय शिक्षा, भाषाओं और ज्ञान परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए दीर्घकालिक राष्ट्रीय प्रयास का आह्वान किया। हालांकि, थरूर ने यह भी कहा कि काश प्रधानमंत्री यह भी बताते कि कैसे रामनाथ गोयनका ने अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल भारतीय राष्ट्रवाद की आवाज उठाने के लिए किया।
बीमार होने के बावजूद शामिल होने का जिक्र
थरूर ने यह भी कहा कि वह तेज बुखार और खांसी के बावजूद कार्यक्रम में शामिल हुए क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विमर्श था। उन्होंने कहा कि पीएम का संबोधन भारत की आर्थिक दिशा और सांस्कृतिक पहचान दोनों पर एक महत्वपूर्ण दृष्टि प्रस्तुत करता है। थरूर के अनुसार, अलग-अलग विचारों के बावजूद राष्ट्रीय मुद्दों पर संवाद और बहस लोकतंत्र की ताकत है, और इसी भावना से वह कार्यक्रम में मौजूद रहे।
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थरूर ने कहा कि प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में भारत की "रचनात्मक अधीरता" पर जोर दिया और पिछली औपनिवेशिक मानसिकता को पीछे छोड़ने की बात कही। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में बताया कि पीएम मोदी ने भारत की विरासत, भाषाओं और ज्ञान-परंपराओं पर गर्व बहाल करने के लिए 10 साल के राष्ट्रीय मिशन का आह्वान किया। थरूर के मुताबिक इस समय देश विकास की तेज रफ्तार के साथ सांस्कृतिक आत्मविश्वास की ओर भी बढ़ रहा है।
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उभरता हुआ बाजार नहीं, उभरता हुआ मॉडल
थरूर ने बताया कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि भारत अब ‘इमर्जिंग मार्केट’ नहीं, बल्कि दुनिया के लिए ‘इमर्जिंग मॉडल’ बन चुका है। उन्होंने देश की आर्थिक मजबूती का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार का हर कदम लोगों की समस्याओं का समाधान करने की भावनात्मक प्रतिबद्धता से जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उन पर हमेशा चुनाव मोड में रहने का आरोप लगता है, लेकिन वह दरअसल ‘इमोशनल मोड’ में रहते हैं।
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मैकाले की मानसिकता खत्म करने की बात
अपनी टिप्पणी में थरूर ने कहा कि पीएम मोदी का भाषण मैकाले की 200 साल पुरानी "दास मानसिकता" को खत्म करने पर केंद्रित रहा। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री ने भारतीय शिक्षा, भाषाओं और ज्ञान परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए दीर्घकालिक राष्ट्रीय प्रयास का आह्वान किया। हालांकि, थरूर ने यह भी कहा कि काश प्रधानमंत्री यह भी बताते कि कैसे रामनाथ गोयनका ने अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल भारतीय राष्ट्रवाद की आवाज उठाने के लिए किया।
बीमार होने के बावजूद शामिल होने का जिक्र
थरूर ने यह भी कहा कि वह तेज बुखार और खांसी के बावजूद कार्यक्रम में शामिल हुए क्योंकि यह एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विमर्श था। उन्होंने कहा कि पीएम का संबोधन भारत की आर्थिक दिशा और सांस्कृतिक पहचान दोनों पर एक महत्वपूर्ण दृष्टि प्रस्तुत करता है। थरूर के अनुसार, अलग-अलग विचारों के बावजूद राष्ट्रीय मुद्दों पर संवाद और बहस लोकतंत्र की ताकत है, और इसी भावना से वह कार्यक्रम में मौजूद रहे।
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