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Sugar Production: चीनी उत्पादन ने पकड़ी रफ्तार: 15 नवंबर तक 10.5 लाख टन उत्पादन, पेराई-रिकवरी दोनों में सुधार
डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Tue, 18 Nov 2025 01:26 PM IST
सार
नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रियों के मुताबिक, पिछले साल मिलों की संख्या कम इसलिए थी क्योंकि महाराष्ट्र चुनाव के चलते पेराई सीजन नवंबर के अंत तक टल गया था।
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फोटो-7 चीनी मिल में ट्रैक्टर ट्राली से गन्ना अनलोड करतीं क्रेन। संवाद
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विस्तार
भारत में इस साल चीनी उत्पादन की शुरुआत उम्मीद से बेहतर रही है। एक अक्टूबर से शुरू हुए नए चीनी सत्र में 15 नवंबर तक 10.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है, जो पिछले साल इसी अवधि में बने उत्पादन से 7.1 लाख टन ज्यादा है। इस बार अधिकांश चीनी मिलों ने जल्दी पेराई शुरू की है और जूस रिकवरी भी बेहतर रही है, जिसकी वजह से कुल उत्पादन में तेजी देखने को मिली।
महाराष्ट्र में हालांकि लगातार बारिश के कारण पेराई सीजन देर से शुरू हुआ, लेकिन इसके बाद रिकवरी रेट मजबूत रहने से निर्यात बढ़ने की संभावनाएं भी मजबूत हुई हैं। नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रियों के अनुसार कर्नाटक और महाराष्ट्र में गन्ने के दाम को लेकर किसानों के जारी आंदोलन की वजह से मिलों में पेराई की रफ्तार धीमी पड़ी है। इस सीजन में 15 नवंबर तक 325 चीनी मिलों ने पेराई शुरू कर दी, जबकि पिछले साल इसी अवधि में सिर्फ 144 मिलें सक्रिय थीं। इस बार अब तक 128 लाख टन गन्ने की पेराई हो चुकी है, जो पिछले वर्ष के 91 लाख टन के मुकाबले काफी अधिक है। औसत रिकवरी रेट यानी गन्ने से चीनी बनने की दर 8.2 प्रतिशत रही है, जो पिछले वर्ष के 7.8 प्रतिशत से बेहतर है।
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महाराष्ट्र में हालांकि लगातार बारिश के कारण पेराई सीजन देर से शुरू हुआ, लेकिन इसके बाद रिकवरी रेट मजबूत रहने से निर्यात बढ़ने की संभावनाएं भी मजबूत हुई हैं। नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रियों के अनुसार कर्नाटक और महाराष्ट्र में गन्ने के दाम को लेकर किसानों के जारी आंदोलन की वजह से मिलों में पेराई की रफ्तार धीमी पड़ी है। इस सीजन में 15 नवंबर तक 325 चीनी मिलों ने पेराई शुरू कर दी, जबकि पिछले साल इसी अवधि में सिर्फ 144 मिलें सक्रिय थीं। इस बार अब तक 128 लाख टन गन्ने की पेराई हो चुकी है, जो पिछले वर्ष के 91 लाख टन के मुकाबले काफी अधिक है। औसत रिकवरी रेट यानी गन्ने से चीनी बनने की दर 8.2 प्रतिशत रही है, जो पिछले वर्ष के 7.8 प्रतिशत से बेहतर है।
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नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रियों के मुताबिक, पिछले साल मिलों की संख्या कम इसलिए थी क्योंकि महाराष्ट्र चुनाव के चलते पेराई सीजन नवंबर के अंत तक टल गया था। अनुमान है कि 2025–26 में देश का कुल चीनी उत्पादन 350 लाख टन रहेगा। इसमें महाराष्ट्र 125 लाख टन, उत्तर प्रदेश 110 लाख टन और कर्नाटक 70 लाख टन का योगदान देंगे। ये तीन राज्य मिलकर कुल उत्पादन का 75–80% हिस्सा देते हैं। पिछले सीजन के 50 लाख टन स्टॉक, 35 लाख टन एथेनॉल डायवर्जन और 290 लाख टन घरेलू खपत को जोड़कर देखें, तो देश के पास करीब 20–25 लाख टन चीनी निर्यात के लिए बचने की संभावना है।
कोऑपरेटिव चीनी मिलों के संगठन का कहना है कि, सरकार पहले ही 15 लाख टन चीनी निर्यात की मंजूरी दे चुकी है। समय पर लिया गया यह फैसला बाजार में स्थिरता लाने में मदद करेगा। भारत के प्रमुख निर्यात महीनों (जनवरी–अप्रैल) में अब सिर्फ दो महीने बचे हैं, और अनुमान है कि सीजन के आगे चलकर 10 लाख टन अतिरिक्त निर्यात की इजाज़त भी मिल सकती है। यह कदम उन चीनी मिलों के लिए राहत देने वाला होगा, जो इस समय चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य में बदलाव न होने से आर्थिक दबाव झेल रही हैं। एमएसपी 2019 से 31 रुपये प्रति किलो पर ही अटका हुआ है।