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Supreme Court: भर्ती विवाद पर अदालत का आदेश, कहा- वैकल्पिक उपाय होने पर न्यायाधिकरण को दरकिनार न करें हाईकोर्ट

राजीव सिन्हा, अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली। Published by: ज्योति भास्कर Updated Fri, 24 Oct 2025 08:51 AM IST
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सार

सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की खंडपीठ ने एक अहम आदेश में कहा कि वैकल्पिक उपाय होने पर हाईकोर्ट न्यायाधिकरण को दरकिनार न करें। अदालत ने ये भी साफ किया कि भर्ती विवाद कोई असाधारण परिस्थितियां नहीं, जिनमें हाईकोर्ट का हस्तक्षेप जरूरी हो। जानिए क्या है अदालत का ये आदेश

Supreme Court justice maheshwari and justice bishnoi bench recruitment dispute High Court not bypass tribunal
सुप्रीम कोर्ट (फाइल) - फोटो : ANI
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विस्तार
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सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि जब किसी वैधानिक न्यायाधिकरण के समक्ष कोई प्रभावी वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो तो हाईकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिकाओं पर विचार नहीं करना चाहिए। शीर्ष अदालत कर्नाटक में 15,000 स्नातक प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती से संबंधित कई अपीलों पर विचार कर रही थी, जिसके कारण विवाहित महिला उम्मीदवारों की ओर से प्रस्तुत जाति प्रमाण पत्रों को लेकर एक लंबी कानूनी लड़ाई छिड़ गई थी।

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जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने पीड़ित अभ्यर्थियों की ओर से दायर सभी अपीलों को खारिज कर दिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की खंडपीठ के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें मामले को कर्नाटक राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण को सौंप दिया गया था।
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लोक शिक्षा विभाग की ओर से 21 मार्च, 2022 को एक अधिसूचना जारी की गई थी। मई 2022 में हुई परीक्षाओं के बाद 18 नवंबर, 2022 को प्रकाशित एक अनंतिम या अस्थायी चयन सूची में कई विवाहित महिलाओं को ओबीसी श्रेणी से बाहर कर दिया गया क्योंकि उन्होंने अपने पति के बजाय अपने पिता के नाम पर जाति-सह-आय प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए थे। परिणामस्वरूप उनके नाम सामान्य मेरिट सूची में आ गए जिससे उनके चयन की संभावना प्रभावित हुई।

इन अभ्यर्थियों ने कर्नाटक हाईकोर्ट में इस सूची को चुनौती दी और तर्क दिया कि किसी महिला की जाति जन्म और माता-पिता की स्थिति से निर्धारित होती है, विवाह से नहीं। 30 जनवरी, 2023 को एकल पीठ ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि किसी अभ्यर्थी का क्रीमी लेयर दर्जा उसके माता-पिता की आय और जाति पर निर्भर होना चाहिए न कि उसके पति की। न्यायालय ने अनंतिम सूची को रद्द कर दिया तथा राज्य को प्रभावित अभ्यर्थियों को ओबीसी के रूप में मानने का निर्देश दिया।

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फैसले के बाद सरकार ने जारी की नई सूची
इस फैसले के बाद सरकार ने 27 फरवरी, 2023 को एक नई सूची और 8 मार्च, 2023 को एक अंतिम सूची जारी की, जिससे पहले से चयनित 451 उम्मीदवारों को बाहर कर दिया गया। इसके कारण एक खंडपीठ के समक्ष कई अपीलें दायर की गईं, जिसने 12 अक्तूबर, 2023 को एकल जज के फैसले को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि सेवा संबंधी ऐसे मामले प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम, 1985 के तहत स्थापित न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। खंडपीठ ने राज्य को भर्ती प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति भी दे दी जबकि सभी तर्क न्यायाधिकरण के समक्ष खुले रखे।

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हाईकोर्ट के अधिकार पर उठा था सवाल
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसने इस बात की जांच की कि क्या न्यायाधिकरण के उपाय उपलब्ध होने के बावजूद हाईकोर्ट के पास याचिकाओं पर विचार करने का अधिकार है। खंडपीठ के फैसले को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि भर्ती विवाद कोई असाधारण परिस्थितियां नहीं हैं जिनमें हाईकोर्ट का हस्तक्षेप आवश्यक हो। इसने एल चंद्र कुमार बनाम भारत संघ (1997) में संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि सेवा न्यायाधिकरण ऐसे मामलों में प्रथम दृष्टया न्यायालय के रूप में कार्य करते हैं और हाईकोर्ट की भूमिका न्यायिक समीक्षा तक सीमित है।

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