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Supreme Court: न्यायिक अफसरों की पूर्ण पेंशन पर सरकार को नोटिस; एअर इंडिया हादसे की जांच को लेकर याचिका दायर

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नितिन गौतम Updated Fri, 19 Sep 2025 09:55 PM IST
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सुप्रीम कोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर अहमदाबाद में 12 जून, 2025 को हुए एअर इंडिया बोइंग ड्रीमलाइनर हादसे की अदालत की निगरानी में स्वतंत्र जांच की मांग की गई है। हादसे में 260 लोगों की जान चली गई थी। याचिका कैप्टन अमित सिंह के बनाए विमानन सुरक्षा एनजीओ सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन की तरफ से दायर की गई है।
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याचिका में दुर्घटनाग्रस्त विमान से मिला संपूर्ण डाटा सार्वजनिक करने का निर्देश देने की मांग भी की गई है। याचिका में कहा गया है कि जब एक ही विनाशकारी घटना में सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है तो राष्ट्र न केवल मृतकों के लिए शोक मनाता है बल्कि जांच प्रक्रिया को सच्चाई, जवाबदेही और इस आश्वासन के स्रोत के रूप में भी देखता है कि ऐसी आपदा फिर कभी नहीं होगी। इसलिए यह केवल पीड़ितों के परिवारों तक ही सीमित नहीं है बल्कि प्रत्येक नागरिक तक फैला हुआ है।
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वोडाफोन-आइडिया की याचिका पर 26 सितंबर को सुनवाई
दूरसंचार क्षेत्र की प्रमुख कंपनी वोडाफोन-आइडिया की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 26 सितंबर को सुनवाई करेगा। वोडाफोन-आइडिया ने साल 2016-17 तक के अतिरिक्त एजीआर को रद्द करने की मांग  और इस संबंध में याचिका दायर की थी। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने दूरसंचार कंपनी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर गौर करने के बाद याचिका पर विचार के लिए अगले शुक्रवार की तारीख तय की।

कंपनी ने 8 सितंबर को एक नई याचिका दायर कर दूरसंचार विभाग (DoT) को 3 फरवरी, 2020 के 'कटौती सत्यापन दिशानिर्देशों' के अनुसार वित्त वर्ष 2016-17 तक की अवधि के सभी AGR बकाया का 'व्यापक पुनर्मूल्यांकन और समाधान' करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। इस साल की शुरुआत में, भारती एयरटेल और वोडाफ़ोन आइडिया सहित दूरसंचार कंपनियों को झटका देते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 2021 के आदेश की समीक्षा करने से इनकार कर दिया था, जिसमें उनके द्वारा देय AGR बकाया की गणना में कथित गलतियों को सुधारने की उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था।
 

वरवर राव की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज 
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता और कवि पी. वरवर राव की उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें उन्होंने जमानत की शर्तों में संशोधन की मांग की थी। राव 2018 के भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी हैं। राव ने उस शर्त को हटाने की गुहार लगाई थी, जिसके तहत उन्हें ग्रेटर मुंबई क्षेत्र से बाहर जाने के लिए ट्रायल कोर्ट से पूर्व अनुमति लेनी पड़ती है।

न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय विश्नोई की पीठ ने इस याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए मामला खारिज कर दिया। अदालत ने टिप्पणी की, सरकार उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखेगी या फिर वही अदालत जाए। हमें दिलचस्पी नहीं है। राव की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि कार्यकर्ता को चार साल से जमानत मिली हुई है, लेकिन उनकी सेहत लगातार बिगड़ रही है। उन्होंने बताया कि पहले उनकी पत्नी उनकी देखभाल करती थीं, लेकिन अब वह हैदराबाद में रहने लगी हैं। वर्तमान में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है और मुकदमे के जल्द निपटने की भी संभावना नहीं है।

ऑस्ट्रेलियाई मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट का दौरा किया, सीजेआई के साथ मंच किया साझा
ऑस्ट्रेलिया के हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति स्टीफन गैगेलर एसी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का दौरा किया, जहां उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया और उन्होंने प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई के साथ मंच साझा किया। प्रधान न्यायाधीश ने अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष का स्वागत किया और न्यायालय कक्ष में वकीलों और वादियों से उनका परिचय कराया, जहां वह न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया के साथ सुनवाई कर रहे थे। मेहमान न्यायाधीश ने एक घंटे से अधिक समय तक न्यायालय की कार्यवाही का अवलोकन किया।

मद्रास हाई कोर्ट परिसर में स्थित समाधि मामले पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मद्रास हाई कोर्ट परिसर में स्थित डेविड येल और जोसेफ हाइनमर की समाधि को हटाने के आदेश पर रोक लगा दी। यह समाधि मद्रास लॉ कॉलेज (अब डॉ. आंबेडकर गवर्नमेंट लॉ कॉलेज) के परिसर में स्थित है और 1921 से संरक्षित स्मारक घोषित है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा। इससे पहले, मद्रास हाई कोर्ट ने अप्रैल 2024 में इसे संरक्षित स्मारक मानने से इनकार करते हुए इसे हटाने का आदेश दिया था। डेविड येल, तत्कालीन गवर्नर एलिहु येल के पुत्र थे, जिनके नाम पर अमेरिका का येल विश्वविद्यालय स्थापित हुआ।

न्यायिक अधिकारियों की पूर्ण पेंशन बहाल करने की याचिका पर केंद्र व राज्यों से जवाब तलब
सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों की पूर्ण पेंशन बहाल करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र और राज्यों से जवाब मांगा। याचिका में सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों की पूर्ण पेंशन को परिवर्तित पेंशन राशि की वसूली के तुरंत बाद बहाल करने की मांग की गई है, न कि मौजूदा 15 वर्ष की अवधि के बाद।

सीजेआई जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने अखिल भारतीय सेवानिवृत्त जज संघ (एआईआरजेए) की ओर से पेश अधिवक्ता गोपाल झा की दलीलों पर गौर किया। झा ने कहा कि मौजूदा नीति के कारण पूर्व न्यायिक अधिकारी प्रतिकूल स्थिति में हैं। इसके बाद सीजेआई ने केंद्र और सभी राज्यों को नोटिस जारी किया जाए। एआईआरजेए ने न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों और पेंशन संबंधी लाभों से संबंधित अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की ओर से दायर 2015 के एक लंबित मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 

एआईआरजेए के अध्यक्ष पूर्व जस्टिस एन सुकुमारन ने कहा कि पेंशनभोगी, जो कम्यूटेशन का विकल्प चुनते हैं, उन्हें सेवानिवृत्ति के समय आवास, बच्चों की शिक्षा या विवाह व्यय जैसी तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए एकमुश्त राशि मिलती है। यह राशि बाद में सरकार की ओर से पेंशन से कटौती के माध्यम से किश्तों में वसूल की जाती है, जो कि ईएमआई के माध्यम से ऋण के पुनर्भुगतान के समान है। नियमों के अनुसार, पूर्ण पेंशन बहाल होने से पहले 15 वर्ष की अवधि तक कम्यूटेड पेंशन में कटौती की जाती है। हालांकि, एआईआरजेए ने तर्क दिया है कि 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित पूरी मूल राशि 11 वर्ष से कम समय में पूरी तरह से वसूल हो जाती है। इस अवधि के बाद भी कटौती जारी रखना मनमाना और अनुचित है। इससे पेंशनभोगियों को उस धनराशि के लिए दंडित किया गया है, जो उन पर कभी बकाया नहीं थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अभियोजकों को छत्तीसगढ़ न्यायिक सेवा परीक्षा में अस्थायी रूप से शामिल होने की दी अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अभियोजकों को 21 सितंबर को छत्तीसगढ़ न्यायिक सेवा परीक्षा में अस्थायी रूप से शामिल होने की अनुमति दी। मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रा व जस्टिस एनवी अंजारी की पीठ ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग को निर्देश दिया कि वे इन उम्मीदवारों को प्रवेश स्तर की न्यायिक सेवाओं के लिए होने वाले प्रारंभिक परीक्षा में अस्थायी रूप से शामिल होने की इजाजत दे। याचियों को एडमिट कार्ड जारी नहीं किया गया, क्योंकि परीक्षा के नोटिफिकेशन में यह शर्त थी कि उम्मीदवारों को रिक्तियों की घोषणा की तारीख तक राज्य बार काउंसिल में वकील के रूप में पंजीकृत होना चाहिए। जो लोग सरकारी वकील के रूप में नियुक्त किए गए हैं, उन्हें अपना रजिस्ट्रेशन निलंबित करना होगा, इसलिए आयोग ने उन्हें एडमिट कार्ड जारी नहीं किया।

पीठ ने अंतरिम आदेश में कहा कि हम आयोग को निर्देश देते हैं कि वह आवश्यक योग्यता रखने वाले याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दे, सिवाय उन लोगों के जो एडवोकेट्स एक्ट 1961 के तहत वकील के रूप में पंजीकृत नहीं हैं। हालांकि, हम यह स्पष्ट कर देते हैं कि परीक्षा में शामिल होने से याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई अधिकार नहीं बनेगा। आयोग से यह भी कहा गया कि वह वकील के तौर पर तीन साल के अनुभव की शर्त पर जोर न दे, क्योंकि यह नोटिफिकेशन सुप्रीम कोर्ट के 20 मई के फैसले से पहले जारी किया गया था। 20 मई को, मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने नए कानून स्नातक छात्रों को एंट्री लेवल न्यायिक सेवा परीक्षा में बैठने से रोक दिया था और इसके लिए न्यूनतम तीन साल की कानूनी प्रैक्टिस का मानदंड तय किया था।

यूपी में 69000 अध्यापकों की भर्ती में EWS कोटा लागू करने की मांग वाली याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में वर्ष 2020 की 69000 सहायक शिक्षक भर्ती में ईडब्ल्यूएस कोटे लागू करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ के 8 मई, 2025 को दिए आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट के आदेश को अंजू त्रिपाठी समेत अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट की खंडपीठ के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपने फैसले में माना था कि राज्य सरकार को इस भर्ती में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) का 10 फीसदी आरक्षण देना चाहिए था लेकिन चूंकि अब सभी पद भर चुके हैं और चयनित शिक्षक कार्यरत हैं इसलिए किसी भी तरह का व्यावहारिक राहत देना संभव नहीं है। इससे पहले हाईकोर्ट की एकल पीठ से भी इन अभ्यर्थियों को राहत नहीं मिल सकी थी।
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