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SC: ट्रेनिंग के दौरान दिव्यांग हुए सैन्य अधिकारियों के पुनर्वास का मामला, सरकार को मिली 6 सप्ताह की मोहलत
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नितिन गौतम
Updated Wed, 17 Dec 2025 06:23 AM IST
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सुप्रीम कोर्ट (फाइल तस्वीर)
- फोटो : ANI
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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को उन अधिकारी कैडेटों के पुनर्वास से जुड़ी सिफारिशें अंतिम रूप देने के लिए छह सप्ताह का समय दिया, जिन्हें सैन्य प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग होने के कारण बाहर कर दिया गया था। यह मामला सेना, नौसेना और वायुसेना से जुड़ा है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि तीनों सेनाओं ने इस मुद्दे पर सकारात्मक सिफारिशें दी हैं, जिन पर रक्षा मंत्रालय विचार कर रहा है। इसके बाद इन पर वित्त मंत्रालय की मंजूरी भी जरूरी होगी। इसी कारण अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी तय की है।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर शुरू किया था। अदालत की मदद के लिए नियुक्त न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) वरिष्ठ वकील रेखा पल्ली ने मेडिकल सहायता, आर्थिक मदद, शिक्षा, पुनर्वास और बीमा से जुड़े सुझाव दिए थे। केंद्र सरकार पहले ही भरोसा दिला चुकी है कि प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग हुए कैडेटों को अब पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना के तहत इलाज की सुविधा मिलेगी। अगस्त 2025 से ऐसे सभी कैडेट इस योजना में शामिल कर लिए गए हैं और उनसे एकमुश्त शुल्क भी नहीं लिया जा रहा है।
अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा एकमुश्त आर्थिक मदद और बीमा राशि महंगाई के हिसाब से कम है, इसलिए इसमें बढ़ोतरी पर विचार होना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1985 से अब तक करीब 500 अधिकारी कैडेट इस स्थिति का सामना कर चुके हैं, जिनकी आर्थिक और चिकित्सा परेशानियां लगातार बढ़ रही हैं।
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यह मामला सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लेकर शुरू किया था। अदालत की मदद के लिए नियुक्त न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) वरिष्ठ वकील रेखा पल्ली ने मेडिकल सहायता, आर्थिक मदद, शिक्षा, पुनर्वास और बीमा से जुड़े सुझाव दिए थे। केंद्र सरकार पहले ही भरोसा दिला चुकी है कि प्रशिक्षण के दौरान दिव्यांग हुए कैडेटों को अब पूर्व सैनिक अंशदायी स्वास्थ्य योजना के तहत इलाज की सुविधा मिलेगी। अगस्त 2025 से ऐसे सभी कैडेट इस योजना में शामिल कर लिए गए हैं और उनसे एकमुश्त शुल्क भी नहीं लिया जा रहा है।
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अदालत ने यह भी कहा कि मौजूदा एकमुश्त आर्थिक मदद और बीमा राशि महंगाई के हिसाब से कम है, इसलिए इसमें बढ़ोतरी पर विचार होना चाहिए। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1985 से अब तक करीब 500 अधिकारी कैडेट इस स्थिति का सामना कर चुके हैं, जिनकी आर्थिक और चिकित्सा परेशानियां लगातार बढ़ रही हैं।
आरोपी को बरी करने के लिए ठोस कारण जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को बरी करने के फैसले को रद्द करना कोई सामान्य बात नहीं है। इसके लिए ठोस और मजबूत कारण होने चाहिए। जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में तीन आरोपियों की सजा को खारिज कर दिया था। पीठ ने कहा कि इस अदालत के कई फैसलों से यह एक तय सिद्धांत है कि आरोपी को बरी करने के फैसले को पलटने के लिए ठोस कारण होने चाहिए। कहा, एक बार जब कोर्ट आरोपी को बरी कर देता है, तो निर्दोष होने की धारणा और मजबूत हो जाती है।
बिहार एसआईआर पर एनजीओ की याचिका पर आयोग से जवाब मांगने से किया इन्कार
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार एसआईआर से जुड़ी एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिका पर चुनाव आयोग से जवाब मांगने से इन्कार कर दिया। एनजीओ ने आयोग को उस मीडिया रिपोर्ट पर जवाब देने का निर्देश देने की मांग की थी जिसमें आरोप था कि एसआईआर के दौरान लाखों पूर्व-भरे मतदाता नाम हटाने के नोटिस स्थानीय अधिकारियों के बजाय केंद्रीय स्तर पर जारी किए गए थे। सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत व जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि इससे एक गलत मिसाल कायम होगी।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स को चुनाव आयोग से जवाब मांगने से पहले तथ्यों को सामने रखते हुए हलफनामा दाखिल करने को कहा। इस मामले में आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने एनजीओ की ओर से अखबार की रिपोर्ट पर भरोसा करने पर आपत्ति जताई और उसमें निहित आरोपों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि आयोग को मीडिया रिपोर्टों पर अचानक प्रतिक्रिया देने के लिए अदालत में नहीं बुलाया जा सकता, जबकि इस मुद्दे पर पहले ही महत्वपूर्ण सुनवाई हो चुकी है। पीठ ने कहा कि जब तक इस मुद्दे को औपचारिक रूप से हलफनामे के माध्यम से रिकॉर्ड में नहीं लाया जाता, तब तक वह मीडिया रिपोर्ट से प्रभावित नहीं हो सकती।
द्विवेदी ने कहा कि यदि भूषण अब भी आरोप को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें हलफनामे के माध्यम से सबूत पेश करने चाहिए। उन्होंने दावा किया कि आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत है क्योंकि सभी नोटिस जिला चुनाव अधिकारियों की ओर से जारी किए गए थे। सीजेआई ने भूषण से कहा कि स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार, दूसरे पक्ष से जवाब तभी मांगा जा सकता है जब कोई चीज औपचारिक रूप से अदालत के समक्ष रखी जाए। सीजेआई ने आगे कहा कि अदालतें केवल मीडिया रिपोर्टों के आधार पर जवाब दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकतीं, क्योंकि मीडिया रिपोर्टें स्वयं भी कभी-कभी स्रोतों पर निर्भर करती हैं और पूरी तरह या आंशिक रूप से सही हो सकती हैं।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स को चुनाव आयोग से जवाब मांगने से पहले तथ्यों को सामने रखते हुए हलफनामा दाखिल करने को कहा। इस मामले में आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने एनजीओ की ओर से अखबार की रिपोर्ट पर भरोसा करने पर आपत्ति जताई और उसमें निहित आरोपों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि आयोग को मीडिया रिपोर्टों पर अचानक प्रतिक्रिया देने के लिए अदालत में नहीं बुलाया जा सकता, जबकि इस मुद्दे पर पहले ही महत्वपूर्ण सुनवाई हो चुकी है। पीठ ने कहा कि जब तक इस मुद्दे को औपचारिक रूप से हलफनामे के माध्यम से रिकॉर्ड में नहीं लाया जाता, तब तक वह मीडिया रिपोर्ट से प्रभावित नहीं हो सकती।
द्विवेदी ने कहा कि यदि भूषण अब भी आरोप को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें हलफनामे के माध्यम से सबूत पेश करने चाहिए। उन्होंने दावा किया कि आरोप तथ्यात्मक रूप से गलत है क्योंकि सभी नोटिस जिला चुनाव अधिकारियों की ओर से जारी किए गए थे। सीजेआई ने भूषण से कहा कि स्थापित प्रक्रियाओं के अनुसार, दूसरे पक्ष से जवाब तभी मांगा जा सकता है जब कोई चीज औपचारिक रूप से अदालत के समक्ष रखी जाए। सीजेआई ने आगे कहा कि अदालतें केवल मीडिया रिपोर्टों के आधार पर जवाब दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकतीं, क्योंकि मीडिया रिपोर्टें स्वयं भी कभी-कभी स्रोतों पर निर्भर करती हैं और पूरी तरह या आंशिक रूप से सही हो सकती हैं।