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स्वास्थ्य: 2047 तक सिकलसेल मुक्ति का लक्ष्य, ICMR ने बनाया पहला 'कलंक पैमाना', जागरूकता के लिए शुरू की नई पहल
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शुभम कुमार
Updated Mon, 26 May 2025 06:08 AM IST
सार
प्रधानमंत्री मोदी के सिकलसेल मुक्त भारत अभियान को मजबूती देते हुए आईसीएमआर ने सिकलसेल एनीमिया से जुड़े सामाजिक कलंक को मापने के लिए देश का पहला 'कलंक पैमाना' तैयार किया है। यह मॉडल छह राज्यों में परीक्षण के बाद विकसित हुआ और इसे मेडिकल जर्नल 'लैंसेट' में प्रकाशित किया गया।
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प्रतीकात्मक तस्वीर
- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने सिकलसेल मुक्त अभियान की पहल की है जिसका लक्ष्य 2047 तक सिकलसेल एनीमिया को देश से खत्म करना है। दूसरी ओर वैज्ञानिकों ने इस बीमारी को लेकर भारत का पहला कलंक पैमाना बनाया है। एक ऐसा पैमाना जो समाज में इस बीमारी के प्रति फैली बुराईयों को न सिर्फ समझ सकें बल्कि उनसे मरीजों का बचाव करते हुए उपचार पूरा करवा सके।
नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का कहना है कि यह कलंक पैमाना सिकलसेल रोग से जुड़े कलंक को कम करने में मदद करेगी, जिससे मरीज बिना डर या शर्म के इलाज के लिए आगे आएंगे। जानकारी के मुताबिक, आईसीएमआर की टीम ने छह जिलों में वैज्ञानिक अध्ययन के बाद एक गणितीय मॉडल पर आधारित पैमाना तैयार किया है जिसका परीक्षण आंध्र प्रदेश में अल्लूरी सीताराम राजू, मध्य प्रदेश में अनूपपुर, गुजरात में छोटेपुर, ओडिशा में कंधमाल, कर्नाटक में मैसूर और असम राज्य में उदलगुरी में किया गया। चर्चित मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने आईसीएमआर के इस अध्ययन और कलंक पैमाने को विश्व स्तर पर प्रकाशित भी किया है।
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बीमारी से जुड़ीं सामाजिक कुरीतियां मिटाएगा
आईसीएमआर का कहना है कि यह एक बहु-केंद्र अध्ययन है जिसके तहत भारत में सिकलसेल रोग से जुड़े सामाजिक कलंक (स्टिग्मा) को मापने के लिए एक स्केल तैयार किया है। इसका नाम आईसीएमआर-एससीडी स्टिग्मा स्केल फॉर इंडिया (आईएसएसएसआई) रखा है। किसी एक बीमारी को लेकर समाज की कुरीतियों को जानने के लिए यह भारत का पहला और सबसे अनोखा पैमाना है।
आनुवांशिक रक्त विकार
दरअसल सिकलसेल रोग एक आनुवांशिक रक्त विकार है, जो भारत में एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। यह बीमारी तब होती है जब किसी व्यक्ति को माता-पिता दोनों से एक विशेष जीन (बीटा-ग्लोबिन जीन) के उत्परिवर्तन या म्यूटेशन मिलता है। इसके कारण असामान्य सिकल हीमोग्लोबिन बनता है जिससे लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य गोल आकार की बजाय दरांती के आकार की हो जाती हैं। ये कोशिकाएं रक्त वाहिकाओं में अटक सकती हैं, जिससे दर्दनाक संकट, एनीमिया (खून की कमी), और कई अंगों जैसे फेफड़े, हृदय, किडनी, आंखें, हड्डियां और मस्तिष्क को नुकसान हो सकता है।
हर गांव में होंगे काउंसलर
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में सिकलसेल रोग को लेकर काफी गलत धारणाएं हैं जिसके बारे में सरकार भी भलीभांति परिचित है। इसे जड़ से खत्म करने के लिए हमें एक ऐसे विकल्प की तलाश थी जिसका वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ इस्तेमाल किया जा सके। इसमें आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने सहयोग किया है। जल्द ही सिकलसेल रोग प्रभावित गांवों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर काउंसलर तैनात होंगे, जो सिकलसेल रोग से पीड़ित लोगों को परामर्श देंगे। साइकोमेट्रिक टेस्टिंग के जरिए भारत की विविध सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि खासकर आदिवासी समुदायों में लोगों को समझाने की कोशिश करेंगे।
ये भी पढ़ें:- Ghulam Nabi Azad: पूर्व सांसद ने पड़ोसी को आईना दिखाया, कहा- PAK में जितने आतंकी उतने पूरी दुनिया में भी नहीं
ये हैं भ्रांतियां
लोग बीमारी को श्राप या बुरी आत्माओं का प्रभाव मानते हैं। n अज्ञानता के कारण लोग झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र या पारंपरिक उपचार की सलाह देते हैं। n मरीजों में खून की कमी से त्वचा पीली पड़ जाती है। दूसरे लोग दूरी बना लेते हैं।
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आईसीएमआर का कहना है कि यह एक बहु-केंद्र अध्ययन है जिसके तहत भारत में सिकलसेल रोग से जुड़े सामाजिक कलंक (स्टिग्मा) को मापने के लिए एक स्केल तैयार किया है। इसका नाम आईसीएमआर-एससीडी स्टिग्मा स्केल फॉर इंडिया (आईएसएसएसआई) रखा है। किसी एक बीमारी को लेकर समाज की कुरीतियों को जानने के लिए यह भारत का पहला और सबसे अनोखा पैमाना है।
आनुवांशिक रक्त विकार
दरअसल सिकलसेल रोग एक आनुवांशिक रक्त विकार है, जो भारत में एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती है। यह बीमारी तब होती है जब किसी व्यक्ति को माता-पिता दोनों से एक विशेष जीन (बीटा-ग्लोबिन जीन) के उत्परिवर्तन या म्यूटेशन मिलता है। इसके कारण असामान्य सिकल हीमोग्लोबिन बनता है जिससे लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य गोल आकार की बजाय दरांती के आकार की हो जाती हैं। ये कोशिकाएं रक्त वाहिकाओं में अटक सकती हैं, जिससे दर्दनाक संकट, एनीमिया (खून की कमी), और कई अंगों जैसे फेफड़े, हृदय, किडनी, आंखें, हड्डियां और मस्तिष्क को नुकसान हो सकता है।
हर गांव में होंगे काउंसलर
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में सिकलसेल रोग को लेकर काफी गलत धारणाएं हैं जिसके बारे में सरकार भी भलीभांति परिचित है। इसे जड़ से खत्म करने के लिए हमें एक ऐसे विकल्प की तलाश थी जिसका वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ इस्तेमाल किया जा सके। इसमें आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने सहयोग किया है। जल्द ही सिकलसेल रोग प्रभावित गांवों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर काउंसलर तैनात होंगे, जो सिकलसेल रोग से पीड़ित लोगों को परामर्श देंगे। साइकोमेट्रिक टेस्टिंग के जरिए भारत की विविध सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि खासकर आदिवासी समुदायों में लोगों को समझाने की कोशिश करेंगे।
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ये हैं भ्रांतियां
लोग बीमारी को श्राप या बुरी आत्माओं का प्रभाव मानते हैं। n अज्ञानता के कारण लोग झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र या पारंपरिक उपचार की सलाह देते हैं। n मरीजों में खून की कमी से त्वचा पीली पड़ जाती है। दूसरे लोग दूरी बना लेते हैं।