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Telangana election: 119 में महज नौ सीटें! मुस्लिमों की इस सियासत पर क्यों घिरे ओवैसी, क्या BJP को होगा फायदा?

Ashish Tiwari आशीष तिवारी
Updated Wed, 29 Nov 2023 04:55 PM IST
सार
कांग्रेस और भाजपा ने अब तेलंगाना में मुसलमान की आवाज होने का दावा करने वाले ओवैसी को 13 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य में महज नौ सीटों पर ही चुनाव लड़ने के लिए घेरा है। कांग्रेस जहां मुसलमानों के लिए अलग से जारी किए गए घोषणा पत्र को मजबूत हथियार बनाकर गुरुवार को होने वाले चुनाव में ताल ठोंक कर आगे बढ़ रही है...
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Telangana election: BJP and Congress started targeting Asaduddin Owaisi in his own stronghold
Telangana election - फोटो : Amar Ujala/Rahul Bisht

विस्तार
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देश के अलग-अलग राज्यों में मुसलमानों की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले असदुद्दीन ओवैसी को उनके ही गढ़ में भाजपा और कांग्रेस ने घेरना शुरू कर दिया है। दोनों बड़े सियासी दलों ने ओवैसी को अपने-अपने राजनीतिक उठापटक वाले दाव में इस कदर फंसाया है कि उसके संदेश को देश के अलग-अलग राज्यों में प्रचारित किया जाने लगा। कांग्रेस और भाजपा अब तेलंगाना में मुसलमान की आवाज होने का दावा करने वाले ओवैसी को 13 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य में महज नौ सीटों पर ही चुनाव लड़ने के लिए घेरा है। कांग्रेस जहां मुसलमानों के लिए अलग से जारी किए गए घोषणा पत्र को मजबूत हथियार बनाकर गुरुवार को होने वाले चुनाव में ताल ठोंक कर आगे बढ़ रही है। वहीं भाजपा मुसलमानों के लिए केंद्र सरकार की योजनाओं के आधार पर तेलंगाना के माध्यम से समूचे देश में एक नैरेटिव सेट करने की सियासी बढ़त लेने में लगी हुई है।

तेलंगाना में गुरुवार को विधानसभा के चुनाव होने हैं। सत्तासीन पार्टी बीआरएस नेता अपनी जीत का दावा कर रहे हैं, तो कांग्रेस भी सियासी मैदान में खुद को मजबूत मानकर आगे बढ़ रही है। सियासी जानकारों का कहना है कि इसी बीच अंदरूनी तौर पर दो अन्य पार्टियों की मजबूत लड़ाई लड़ी जा रही है, जिसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी देखा जाएगा। वह पार्टी है भाजपा और असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक एसएनके राव कहते हैं कि इस लड़ाई के बीच में भाजपा ने सबसे बड़ा दांव भाजपा ने असदुद्दीन ओवैसी की महज नौ सीटों पर चुनाव लड़ने को लेकर उठाना शुरू किया है। उनका कहना है कि जब समूचे तेलंगाना में 13 फ़ीसदी मुसलमान हैं, तो उनकी नुमाइंदगी करने के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का 9 सीटों पर चयन करना उनके लिए ही अब भविष्य की सियासत के लिहाज से चुनौती जैसा बनता जा रहा है। ओवैसी की पार्टी बीते कुछ दशकों से तेलंगाना के हैदराबाद इलाके के एक विशेष क्षेत्र में ही सियासत करती आई है।

इस कड़ी में भाजपा ने तेलंगाना में मुसलमान को दिए जाने वाले चार फीसदी अतिरिक्त आरक्षण को समाप्त करने की बात कही है, लेकिन पार्टी के कार्यकर्ता राज्य की 13 फीसदी मुस्लिम आबादी में केंद्र सरकार की योजनाओं के पहुंचने को अपना बड़ा सियासी हथियार मान रहे हैं। तेलंगाना में भाजपा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता रामानुजन वी रेड्डी कहते हैं कि उनकी पार्टी ने निष्पक्ष तरीके से सभी समुदायों के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं लागू की हैं। गरीब तबके के मुसलमान से लेकर पिछले पायदान पर खड़े हर व्यक्ति को उसका लाभ मिल रहा है। रेड्डी का कहना है कि अगर ओवैसी मुसलमान के सबसे बड़े पैरोकार हैं, तो वह हैदराबाद की ही चुनिंदा सीटों पर चुनाव क्यों लड़ते हैं। उनको अगर अपनी आवाम की आवाज बनाना है, तो राज्य के सभी 13 फ़ीसदी मुसलमान की बस्तियों में जाकर सियासत करनी चाहिए। लेकिन वह बीआरएस के साथ मिलीभगत के चलते ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। उनका दावा है कि तेलंगाना के मुसलमान इस बात को लेकर खुले मन से स्वीकार भी करते हैं कि केंद्र सरकार की योजनाओं से उनको लाभ हो रहा है। हालांकि पार्टी लगातार यह आरोप लगाती आई है कि तेलंगाना सरकार केंद्र सरकार की योजनाओं को सही ढंग से जमीन पर नहीं उतर रही है, बावजूद इसके केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ तो लोगों को मिल ही रहा है।

जानकारों का कहना है कि भाजपा ने जिस आधार पर ओवैसी को घेरना शुरू किया है, उसका फायदा भाजपा को तेलंगाना में कितना मिलता है यह दूसरी बात है। लेकिन प्राथमिकता में उसका संदेश उत्तर भारतीय राज्यों में कितना जाता है, यह महत्वपूर्ण है। राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार निलेश त्रिवेदी कहते हैं कि बीते कुछ चुनावों के परिणाम इस बात की तस्दीक करते हैं कि भाजपा को मुसलमानों के उन क्षेत्रों में भी वोट मिलने शुरू हुए हैं, जहां गरीबी बहुत ज्यादा है। इसमें उत्तर प्रदेश जैसे राज्य प्रमुखता से शामिल हैं। त्रिवेदी कहते हैं कि अगर भाजपा इस नैरेटिव को सेट करने में कामयाब हो जाती है कि ओवैसी मुसलमान के लिए भी वह राजनीति नहीं कर रहे हैं, जिसका दावा करते हैं और भाजपा की नीतियां उनके लिए कारगर हैं, तो यह बड़ा सियासी दांव भाजपा के लिए हो सकता है।

हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह दांव भाजपा के लिए तब उल्टा पड़ सकता है, तब ऐसी दशा में उत्तर प्रदेश या अन्य मुस्लिम बाहुल्य जैसे राज्य में मुसलमान एक साथ समाजवादी पार्टी के हिस्से या कांग्रेस के हिस्से में चला जाए। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक डीपी शुक्ला कहते हैं कि भाजपा ने रणनीतिक तौर पर पसमांदा मुसलमान को अपने साथ जोड़ने की जो कवायद शुरू की है, उसमें बीते चुनाव के नतीजे यह बताते हैं कि बहुत हद तक केंद्र सरकार की योजनाएं इस तबके के मुसलमानों को भाजपा से जोड़ने में कामयाब होती दिखी हैं। ऐसे में भाजपा का पूरा फोकस तेलंगाना के सियासी संदेश को नॉर्थ इंडिया और देश के अलग-अलग राज्यों में मुसलमानों के बीच अपनी केंद्र सरकार की योजनाओं के माध्यम से आगे बढ़ाने का है।

हालांकि तेलंगाना में जिस तरीके से भाजपा ने एक विशेष मुद्दे के साथ ओवैसी को घेरना शुरू किया है, ठीक उसी तर्ज पर कांग्रेस ने भी ओवैसी को घेर कर मुस्लिमों में अपनी बढ़त बनाने की पूरी सियासी फील्डिंग भी सजाई है। तेलंगाना में कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि भाजपा की बी पार्टी के तौर पर काम करने वाली ओवैसी की पार्टी भाजपा के बड़े नेताओं के खिलाफ प्रत्याशी क्यों नहीं उतारती है। कांग्रेस पार्टी इस बात पर सवाल उठाती है कि अगर मुसलमान की रहनुमाई करने के लिए ओवैसी आगे आना चाहते हैं, तो वह महज कुछ सीटों पर ही चुनाव क्यों लड़ते हैं। जबकि मुसलमान तो तेलंगाना के अलग-अलग जिलों में 13 फ़ीसदी आबादी के साथ रहता है। इसी को देखते हुए कांग्रेस ने तेलंगाना में मुसलमान के लिए अलग से घोषणा पत्र जारी कर विशेष योजनाओं का एलान किया है।

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