Telangana: तेलंगाना जीत से कांग्रेस को दक्षिण भारत में हैं बड़ी उम्मीदें! इसलिए मान रही है पार्टी इसे संजीवनी
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विस्तार
चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। दक्षिण भारत के गेटवे कहे जाने वाले राज्य तेलंगाना को छोड़कर कांग्रेस पार्टी को राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार गंवानी पड़ी। जबकि मध्यप्रदेश में पार्टी भाजपा की सरकार को नहीं हटा सकी। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने तेलंगाना में सरकार बनाने के आंकड़े जुटा कर दक्षिण भारत के राज्यों में एक संजीवनी के तौर पर बड़ी सफलता मान रही है। पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि दक्षिण भारत में जिन कल्याणकारी योजनाओं के आधार पर कांग्रेस चुनाव जीत रही है, उसे पांच राज्यों में पार्टी को आने वाले लोकसभा चुनाव में न सिर्फ बड़ा फायदा होने वाला है, बल्कि उसका संदेश भी जाने वाला है।
वैसे तो रविवार को आए चार राज्यों के नतीजे कांग्रेस के लिहाज से निराशाजनक ही रहे, लेकिन तेलंगाना में सरकार बनाने के नंबर पाने के साथ पार्टी के रणनीतिकारों में बड़ी उत्सुकता है। कांग्रेस पार्टी कार्यालय में मौजूद पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि उनको हिंदी भाषी तीन राज्यों में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है। लेकिन वह तेलंगाना में जीत को पार्टी के लिए संजीवनी बताते हैं। उनका तर्क है कि तेलंगाना में जिस तरह से कांग्रेस पार्टी ने एक स्थानीय पार्टी बीआरएस को हराया है, उसका असर दक्षिण के राज्यों पर पड़ना स्वाभाविक है। वह कहते हैं कि तेलंगाना में उन्होंने जनता के लिए जिन वायदों को सामने रखा था, वही आने वाले लोकसभा के चुनाव में दक्षिण भारत में कांग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित होगा। हालांकि उनका कहना है कि अभी तेलंगाना के नतीजों के आधार पर रणनीति तो बनेगी, लेकिन उससे पहले हार की समीक्षा भी होगी।
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार किरण डी. कुमार कहते हैं कि दरअसल कांग्रेस तेलंगाना में सरकार बनाने के साथ खुद को दक्षिण के पांच राज्यों में बड़े विस्तार के फलक के तौर पर देख रही है। वह कहते हैं कि तेलंगाना की विजय से कांग्रेस को आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अपने बड़े सियासी जनाधार का अंदाजा लग रहा है। उनका कहना है दरअसल कांग्रेस ने कर्नाटक में जिन योजनाओं के आधार पर चुनाव लड़ा था, उसी तर्ज पर कांग्रेस ने तेलंगाना में भी अपनी सियासी बिसात बिछाई थी। पार्टी को उन योजनाओं के आधार और पर ही वोट मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। किरण कहते हैं कि इन्हीं आधार पर पार्टी या आंध्र प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव में सियासी बिसात बिछाएगी और तमिलनाडु में भी अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए इसी दांव को आगे रखेगी।
कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेता भी यह बात मानते हैं कि तेलंगाना में उनकी सरकार बनने का असर न सिर्फ आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में सीधे तौर पर दिखेगा, बल्कि केरल में भी पार्टी बड़ा प्रभाव डालने वाली है। पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता कहते हैं कि आंध्र प्रदेश में तो निश्चित तौर पर उनकी पार्टी अब तेलंगाना के परिणामों के आधार पर अपनी सियासी बिसात बिछाएगी। रही बात आने वाले लोकसभा के चुनावों की, तो पार्टी के नेताओं का मानना है कि अभी कुछ दिनों के भीतर पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की समीक्षा होगी। उसके बाद जो सभी प्रमुख विपक्षी दलों का गठबंधन समूह INDIA बनाया गया है, उसके आधार पर आगे की सियासी रणनीति तय की जाएगी। हालांकि राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तीन प्रमुख राज्यों में चुनाव हार जाना सियासी तौर पर किसी भी पार्टी के लिए बड़ा झटका होता है। इन चुनावों के कुछ महीनों बाद लोकसभा के चुनाव होने हैं।
राजनैतिक जानकार वैद्यनाथ मोहंती कहते हैं कि अगर कांग्रेस के लिए तेलंगाना एक संजीवनी मान कर चल रही है, तो भारतीय जनता पार्टी के लिए भी तेलंगाना में बढ़ा वोट प्रतिशत किसी बड़ी संजीवनी से कम नहीं हैं। वह कहते हैं इसलिए रविवार को आए विधानसभा चुनाव के परिणाम में भारतीय जनता पार्टी को दक्षिण भारत के गेटवे कहे जाने वाले तेलंगाना में बढ़े हुए वोट प्रतिशत भी उसको दक्षिण भारत में मजबूत करेंगे। उनका कहना है कि दक्षिण भारत के पांच राज्यों की 129 लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के महज 29 सांसद हैं। इसमें से 25 सांसद सिर्फ कर्नाटक राज्य से हैं, जहां पर हाल में हुए विधानसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सत्ता गंवा दी है। आंकड़ों के मुताबिक तमिलनाडु की 39 सीटों में से एक भी सीट पर भारतीय जनता पार्टी का सांसद नहीं है। इसलिए तेलंगाना में बढ़े वोट प्रतिशत का असर दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी मजबूती के साथ आगे बढ़ाएगी।