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पहल: कमजोर बच्चों को मौत के जोखिम से बाहर निकालने के लिए नया मॉडल, केंद्र सरकार ने ICMR को सौंपी जिम्मेदारी
परीक्षित निर्भय
Published by: दीपक कुमार शर्मा
Updated Thu, 28 Aug 2025 07:24 AM IST
सार
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि एंटीनेटल कॉर्टिकोस्टेरॉइड यानी गर्भवती महिलाओं को समय रहते दवा देकर शिशु के फेफड़ों का विकास सुनिश्चित करना, कंगारू मदर केयर यानी जन्म के तुरंत बाद बच्चे को मां की छाती से लगाकर रखना, अर्ली एंटरल फीडिंग यानी जन्म के पहले दिन से ही मां का दूध देना और सांस लेने में तकलीफ होने पर बबल यानी सीपीएपी का इस्तेमाल करना शामिल है।
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सांकेतिक तस्वीर
- फोटो : अमर उजाला प्रिंट
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विस्तार
कमजोर नौनिहालों को मौत के जोखिम से बाहर लाने के लिए केंद्र सरकार ने देश के प्रत्येक जिले में नया मॉडल लागू करने का फैसला लिया है। इसके लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक अध्ययन कराने का निर्णय भी लिया है जिसके तहत सभी राज्य के शीर्ष अस्पताल और मेडिकल कॉलेज मिलकर समय से पहले जन्मे बच्चों की देखभाल पर अध्ययन करेंगे।
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इस दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असरदार पाए गए चार मॉडल को सभी जिलों में लागू किया जाएगा, फिर इससे होने वाले बदलावों को वैज्ञानिक तथ्यों के साथ तैयार किया जाएगा। यह इसलिए क्योंकि देश में हर साल लगभग 30 लाख प्रीमेच्योर यानी समय से पहले जन्मे शिशुओं का बोझ झेल रहा है जबकि वैश्विक स्तर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण प्रीमेच्योर जन्म से जुड़ी जटिलताएं ही हैं। एशिया और अफ्रीका में होने वाली नवजात मौतों में से 80 प्रतिशत से अधिक इन्हीं कारणों से होती हैं।
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ये चार मॉडल लागू करने की है तैयारी
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि एंटीनेटल कॉर्टिकोस्टेरॉइड यानी गर्भवती महिलाओं को समय रहते दवा देकर शिशु के फेफड़ों का विकास सुनिश्चित करना, कंगारू मदर केयर यानी जन्म के तुरंत बाद बच्चे को मां की छाती से लगाकर रखना, अर्ली एंटरल फीडिंग यानी जन्म के पहले दिन से ही मां का दूध देना और सांस लेने में तकलीफ होने पर बबल यानी सीपीएपी का इस्तेमाल करना शामिल है। यह चारों मॉडल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी कारगर पाए गए हैं जिन्हें अब भारत के सभी जिलों में लागू कराने का फैसला लिया है।
इसलिए सरकार ने लिया फैसला
नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के मुताबिक, समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों को जन्म के तुरंत बाद कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। सांस लेने में कठिनाई, कम तापमान, शुगर का असंतुलन, संक्रमण और दिमागी रक्तस्राव जैसी दिक्कतें आम हैं। जो बच्चे इन परिस्थितियों में जीवित रहते हैं, उनमें लंबे समय तक फेफड़ों और हृदय रोग, गुर्दे की दिक्कत, शुरुआती मधुमेह, दृष्टि और श्रवण हानि जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। आईसीएमआर का मानना है कि इन चारों उपायों को अगर व्यापक रूप से लागू किया जाए तो नवजात मृत्यु दर में भारी कमी आ सकती है।
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पांच चरण में अध्ययन का ढांचा
आईसीएमआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने जानकारी दी है कि यह शोध कई मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों में लागू किया जाएगा। इसमें 37 सप्ताह से पहले जन्मे और 2.5 किलो से कम वजन वाले शिशुओं को शामिल किया जाएगा। यह पांच चरण बेसलाइन आकलन, पायलट इम्प्लीमेंटेशन, को-इम्प्लीमेंटेशन, कंसोलिडेशन और एग्जिट फेज यानी शोध टीम के बिना भी अस्पताल इन उपायों को अपनाना शामिल है।