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क्या है वीबी-जी राम जी?: मनरेगा के किन प्रावधानों में और क्यों किया जा रहा बदलाव, सवाल-जवाब में जानें सबकुछ
स्पेशल डेस्क, अमर उजाला
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Tue, 16 Dec 2025 05:09 PM IST
सार
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में विकसित भारत- जी राम जी विधेयक, 2025 पेश कर दिया है। इसके तहत सरकार ने मनरेगा को बदलने और इसके तहत जारी व्यवस्था को बेहतर करने की बात कही है।
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लोकसभा में पेश हुआ वीबी-जी राम जी विधेयक।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
केंद्र सरकार ने लोकसभा में विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड अजीविका मिशन ग्रामीण (वीबी-जी राम जी) पेश कर दिया है। केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसे लोकसभा के पटल पर पुनर्स्थापित किया, जिसके बाद अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MGNREGA) के नाम के साथ इसके कई नियमों को बदलने पर सदन में चर्चा होगी और सांसदों से मंजूरी मिलने के बाद मनरेगा की जगह वीबी-जी राम जी अस्तित्व में आएगा।
इस विधेयक के पेश होने से पहले ही विपक्ष इसके नाम से लेकर इसके नियम-कायदों को लेकर सवाल उठा चुका है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर केंद्र सरकार की तरफ से लाया गया नया विधेयक क्या है और इसमें मनरेगा से कितने अलग नियम हैं? नए नियम पहले के मुकाबले क्या बदलाव ला सकते हैं? ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए इस बिल में क्या है? किसानों-मजदूरों के लिए विधेयक में क्या सुविधाएं देने की बात कही गई है? और आखिर में- मनरेगा में बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी और विपक्ष इससे क्यों खफा है?
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इस विधेयक के पेश होने से पहले ही विपक्ष इसके नाम से लेकर इसके नियम-कायदों को लेकर सवाल उठा चुका है। ऐसे में यह जानना अहम है कि आखिर केंद्र सरकार की तरफ से लाया गया नया विधेयक क्या है और इसमें मनरेगा से कितने अलग नियम हैं? नए नियम पहले के मुकाबले क्या बदलाव ला सकते हैं? ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए इस बिल में क्या है? किसानों-मजदूरों के लिए विधेयक में क्या सुविधाएं देने की बात कही गई है? और आखिर में- मनरेगा में बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी और विपक्ष इससे क्यों खफा है?
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सवाल-1: क्या है वीबी-जी राम जी विधेयक?
कुल मिलाकर देखा जाए तो केंद्र सरकार अब मनरेगा के तहत ग्रामीणों को सिर्फ रोजगार तक सीमित न रखने पर जोर दे रही है और नए विधेयक से ऐसे मॉडल की स्थापना करने की तैयारी कर रही है, जिससे गांव के स्तर पर विकास कार्यों की दिशा तय हो। जिन चार प्राथमिकताओं का जिक्र किया गया है, उन्हें लेकर रोजगार और विकास कार्यों के क्षेत्र भी बताए गए हैं। ये हैं...
जल सुरक्षा: इसके तहत गांवों में अब जल संरक्षण संरचनाएं, सिंचाई सहायता, भूजल पुनर्भरण, जल निकायों को पुनर्जीवित करने का काम, वाटरशडे एरिया का विकास का काम और वनीकरण जैसे जल संबंधित कार्यों को बढ़ाया जाएगा।
जल सुरक्षा: इसके तहत गांवों में अब जल संरक्षण संरचनाएं, सिंचाई सहायता, भूजल पुनर्भरण, जल निकायों को पुनर्जीवित करने का काम, वाटरशडे एरिया का विकास का काम और वनीकरण जैसे जल संबंधित कार्यों को बढ़ाया जाएगा।
मुख्य ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर: वीबी-जी राम जी के तहत ग्रामीण सड़कों, सार्वजनिक भवनों, स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वच्छता प्रणालियों, नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़ी सुविधाओं और केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत आवास कार्यों पर जोर रहेगा।
आजीविका से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर: सरकार कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, भंडारण, बाजार, कौशल विकास और सर्कुलर आर्थिक मॉडल से जुड़ी उत्पादक परिसंपत्तियों के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका, मल्यू संवर्धन और आय के विविध अवसरों को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखेगी।
मौसमी घटनाओं के लिए विशेष कार्य: इस प्राथमिकता पर जोर देकर सरकार ऐसे समय में भी रोजगार के मौके बरकरार रखना चाहती है, जब अधिकतर स्थानों पर काम के लिए स्थिति प्रतिकूल रहती हैं। इतना ही नहीं इनसे ग्रामीण क्षेत्र को आपदा के समय में तैयार रखने पर भी जोर दिया जाएगा। आश्रय स्थल, तटबंध निर्माण बाढ़-प्रबंधन संरचनाएं, पुनर्वास कार्य और वनाग्नि नियंत्रण उपाय जैसे कार्यों के जरिए मजदूरों को रोजगार मुहैया कराया जाएगा।
आजीविका से जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर: सरकार कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन, भंडारण, बाजार, कौशल विकास और सर्कुलर आर्थिक मॉडल से जुड़ी उत्पादक परिसंपत्तियों के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका, मल्यू संवर्धन और आय के विविध अवसरों को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखेगी।
मौसमी घटनाओं के लिए विशेष कार्य: इस प्राथमिकता पर जोर देकर सरकार ऐसे समय में भी रोजगार के मौके बरकरार रखना चाहती है, जब अधिकतर स्थानों पर काम के लिए स्थिति प्रतिकूल रहती हैं। इतना ही नहीं इनसे ग्रामीण क्षेत्र को आपदा के समय में तैयार रखने पर भी जोर दिया जाएगा। आश्रय स्थल, तटबंध निर्माण बाढ़-प्रबंधन संरचनाएं, पुनर्वास कार्य और वनाग्नि नियंत्रण उपाय जैसे कार्यों के जरिए मजदूरों को रोजगार मुहैया कराया जाएगा।
सवाल-2: मनरेगा से कितना अलग होगा वीबी-जी राम जी?
केंद्र सरकार का कहना है कि नए नियमों से मनरेगा की ढाचांगत कमियों को दूर किया गया है। सबसे पहले तो योजना के तहत रोजगार के दिनों को 100 से बढ़ाकर 125 दिन करने का दावा किया गया है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में किए जाने वाले सभी कार्यों को विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर स्टैक में शामिल किया जाएगा। विधेयक में कहा गया है कि इससे ग्रामीण स्तर पर सार्वजनिक कार्यों के लिए एक मजबूत और एकीकृत राष्ट्रीय फ्रेमवर्क तैयार होगा। इसी के आधार पर गांवों में आगे के कामों को लेकर तैयारियां होंगी।बिल में दी गई जानकारी के मुताबिक, इस तरह गांवों के लिए एकीकृत ढांचा तैयार करने से देशभर में उत्पादक, टिकाऊ, सुदृढ़ और बदलाव में सक्षम ग्रामीण परिसंपत्तियों (एसेट्स) का निर्माण सुनिश्चित होगा। केंद्र और राज्य 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य के तहत इन परिसंपत्तियों को आगे बढ़ाने की योजनाएं भी साझा तौर पर तैयार करेंगी। यानी एक राष्ट्रीय नीति के तहत काम के बिखराव को समेटा जाएगा और तय दिशा में इसे आगे बढ़ाया जाएगा।
सवाल-3: विधेयक में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए क्या?
- विधेयक के मुताबिक, इसमें ग्रामीण विकास के लिए सभी कार्यों की पहचान स्थानीय स्तर पर तैयार 'विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं' के जरिए की जाएगी। इन विकास कार्यों के लिए केंद्र सरकार निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक जानकारी जुटाएगी, इसके बाद ही कार्यों का आवंटन होगा।
- उदाहरण के तौर पर विकास कार्य से जुड़ी योजना की जानकारी सबसे पहले ब्लॉक, फिर जिला और इसके बाद राज्य स्तर से जुटाई जाएगी। इन्हें इकट्ठा करने के बाद क्षेत्रीय प्राथमिकताओं पर जोर देते हुए एक एकीकृत, समग्र सरकारी (Whole-of-Government) ग्रामीण विकास संरचना का निर्माण तय कराए जाने की बात कही गई है।
- खास बात यह है कि इन विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं को ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) जैसी तकनीक का इस्तेमाल करके तैयार किया जाएगा और पीएम गति-शक्ति के साथ इस योजना को जोड़ा जाएगा। इससे काम में पारदर्शिता लाने की कोशिश की जाएगी।
- विधेयक में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर आधारित एक व्यापक गवर्नेंस इकोसिस्टम को अनिवार्य किया गया है। नई योजना में मजदूरों के बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन, जीपीएस आधारित प्लानिंग और निगरानी, मोबाइल-आधारित रिपोर्टिंग के साथ रियल-टाइम डैशबोर्ड, एआई-सक्षम विश्लेषण और सोशल ऑडिट तंत्र शामिल हैं।
- ग्राम पंचायतें हर हफ्ते ग्राम पंचायत भवनों में कामों की स्थिति, भुगतान, शिकायतें, कामों की प्रगति, मस्टर रोल आदि प्रस्तुत करेंगी। इसके अलावा काम की साप्ताहिक जानकारी स्वचालित रूप से तैयार की जाएगी और भौतिक-डिजिटल दोनों पर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किए जाएंगे।
सवाल-4: मनरेगा के बदलने से राज्यों की शक्तियां कितनी प्रभावित?
1. राज्य निर्धारित करेंगे वीबी-जी राम जी में काम न देने की अवधि
विधेयक के मुताबिक, राज्यों को यह अधिकार दिया जाएगा कि वे अग्रिम रूप से अधिसूचना जारी कर, एक वित्तीय वर्ष में कुल 60 दिनों की ऐसी अवधि निर्धारित कर सकें, जिसके दौरान इस विधेयक के अंतर्गत कार्य नहीं किए जाएंगे। यह फैसला इसलिए लिया गया है, ताकि बुवाई और कटाई के चरम मौसम के दौरान खेतिहर श्रमिकों की उपलब्धता हो सके।
2. राज्यों पर भी पड़ेगा खर्चों का बोझ
इस विधेयक में जिस नियम को लेकर विपक्ष और विपक्ष शासित राज्य सरकारों ने आपत्ति दर्ज कराई है, उनमें खर्चों का बोझ बांटने का नियम शामिल है। दरअसल, अब तक मनरेगा में अकुशल कामगारों को भुगतान का पूरा बोझ केंद्र सरकार वहन करती थी। राज्य सरकार सिर्फ उन्हीं को भत्ता देती थी, जिन्हें मनरेगा के तहत काम नहीं मिलता था। हालांकि, अब केंद्र ने वीबी-जी राम जी के तहत प्रस्तावित गारंटी को प्रभावी बनाने के लिए राज्यों पर भी योजना का बोझ डालने का फैसला किया है।
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प्रस्ताव में कहा गया है कि वीबी-जी राम जी के कानून बनने के बाद की तिथि से छह माह के अंदर राज्यों को एक योजना तैयार करनी होगी। यह योजना केंद्रीय प्रायोजित योजना (CSS) के रूप में अलग से संचालित की जाएगी। इसके तहत पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए केंद्र सरकार योजना में आने वाले कुल खर्च का 90 फीसदी मुहैया कराएगा, जबकि 10 फीसदी संबंधित प्रशासनों/सरकारों को खर्च करने होंगे। वहीं, बाकी सभी राज्यों और विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार 60 फीसदी राशि मुहैया कराएगी, जबकि 40 फीसदी फंड का बोझ राज्य उठाएंगे।
3. राज्य निर्धारित करेंगे क्षेत्रीय विकास के लिए किसे-क्या मिलेगा
विधेयक के मुताबिक, वित्तीय संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को नॉर्मेटिव आवंटन (Normative Allocation) का प्रावधान किया गया है। सीधे शब्दों में समझें तो पहले मनरेगा के तहत केंद्र जो फंड्स देता था, उसकी मांग औसतन और संभावित खर्चों के आधार पर होती थी। लेकिन अब केंद्र सरकार ने यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंप दी है। यानी अब राज्य ही वर्ग और स्थानीय विकास जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जिलों और ग्राम पंचायतों के बीच फंड का पारदर्शी और आवश्यकतानुसार बंटवारा सुनिश्चित करेंगे।
3. राज्य निर्धारित करेंगे क्षेत्रीय विकास के लिए किसे-क्या मिलेगा
विधेयक के मुताबिक, वित्तीय संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को नॉर्मेटिव आवंटन (Normative Allocation) का प्रावधान किया गया है। सीधे शब्दों में समझें तो पहले मनरेगा के तहत केंद्र जो फंड्स देता था, उसकी मांग औसतन और संभावित खर्चों के आधार पर होती थी। लेकिन अब केंद्र सरकार ने यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंप दी है। यानी अब राज्य ही वर्ग और स्थानीय विकास जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जिलों और ग्राम पंचायतों के बीच फंड का पारदर्शी और आवश्यकतानुसार बंटवारा सुनिश्चित करेंगे।
सवाल-5: किसानों-मजदूरों के लिए विधेयक में क्या?
चूंकि राज्य सरकारें तय कर सकती हैं कि किस अवधि में बुवाई और कटाई का ध्यान रखते हुए वीबी-जी राम जी के तहत 60 दिन के लिए काम रोकना है, ऐसे में किसानों को अपने खेतों पर काम करने के लिए मजदूरों की कमी नहीं पड़ेगी। खासकर पीक सीजन के दौरान। इससे मजदूरों को भी मनरेगा के काम से अतिरिक्त अपने लिए बाकी स्रोतों से वेतन जुटाने में मदद मिलेगी।
इतना ही नहीं चूंकि किसानों के लिए मजदूर सही स्तर पर उपलब्ध रहेंगे, ऐसे में उन्हें अतिरिक्त वेतन पर मजदूरों को नहीं रखना होगा। कई बार किसानों पर पड़ने वाले इस अतिरिक्त बोझ का असर फसलों की कीमत पर पड़ता है, क्योंकि ज्यादा खर्च की वजह से उन्हें लाभ लेने के लिए उन्हें फसलों के दाम बढ़ाने पड़ते हैं।
इसके अतिरिक्त मजदूरों के लिए काम के दिन बढ़ाकर 100 से 125 किए गए हैं। यानी उन्हें आर्थिक तौर पर भी ज्यादा रकम हासिल करने में मदद मिलेगी।
चूंकि राज्य सरकारें तय कर सकती हैं कि किस अवधि में बुवाई और कटाई का ध्यान रखते हुए वीबी-जी राम जी के तहत 60 दिन के लिए काम रोकना है, ऐसे में किसानों को अपने खेतों पर काम करने के लिए मजदूरों की कमी नहीं पड़ेगी। खासकर पीक सीजन के दौरान। इससे मजदूरों को भी मनरेगा के काम से अतिरिक्त अपने लिए बाकी स्रोतों से वेतन जुटाने में मदद मिलेगी।
इतना ही नहीं चूंकि किसानों के लिए मजदूर सही स्तर पर उपलब्ध रहेंगे, ऐसे में उन्हें अतिरिक्त वेतन पर मजदूरों को नहीं रखना होगा। कई बार किसानों पर पड़ने वाले इस अतिरिक्त बोझ का असर फसलों की कीमत पर पड़ता है, क्योंकि ज्यादा खर्च की वजह से उन्हें लाभ लेने के लिए उन्हें फसलों के दाम बढ़ाने पड़ते हैं।
इसके अतिरिक्त मजदूरों के लिए काम के दिन बढ़ाकर 100 से 125 किए गए हैं। यानी उन्हें आर्थिक तौर पर भी ज्यादा रकम हासिल करने में मदद मिलेगी।
सवाल-6: क्या योजना बदलने से मजदूरों का वेतन भी बदल रही सरकार?
विधेयक में इससे जुड़ा कोई प्रावधान फिलहाल नहीं किया गया है। इसमें सिर्फ इतना कहा गया है कि मजदूरी दरें केंद्र सरकार की तरफ से ही अधिसूचित होंगी। जब तक नई दरें जारी नहीं होतीं, तब तक महात्मा गांधी नरेगा के तहत मौजूदा मजदूरी दरें लागू रहेंगी। दूसरी तरफ अगर 15 दिनों के अंदर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो निर्धारित दरों पर बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान किया गया है, जिसका भुगतान पहले की तरह पूरी तरह राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाएगा।
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विधेयक में इससे जुड़ा कोई प्रावधान फिलहाल नहीं किया गया है। इसमें सिर्फ इतना कहा गया है कि मजदूरी दरें केंद्र सरकार की तरफ से ही अधिसूचित होंगी। जब तक नई दरें जारी नहीं होतीं, तब तक महात्मा गांधी नरेगा के तहत मौजूदा मजदूरी दरें लागू रहेंगी। दूसरी तरफ अगर 15 दिनों के अंदर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो निर्धारित दरों पर बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान किया गया है, जिसका भुगतान पहले की तरह पूरी तरह राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाएगा।
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सवाल-7: मनरेगा को अब क्यों बदलने की कोशिश, मंशा क्या?
ऐसा नहीं है कि मनरेगा को पहले बदलने के प्रयास नहीं हुए। सरकार ने इसके कई नियमों में समय-समय पर बदलाव किया है। हालांकि, इस प्रणाली में कुछ कमियां थीं, जिनका खुलासा हाल के वर्षों में हुआ है।
ऐसा नहीं है कि मनरेगा को पहले बदलने के प्रयास नहीं हुए। सरकार ने इसके कई नियमों में समय-समय पर बदलाव किया है। हालांकि, इस प्रणाली में कुछ कमियां थीं, जिनका खुलासा हाल के वर्षों में हुआ है।
- पश्चिम बंगाल के 19 जिलों में जांच से पता चला कि कई कार्य कागजों पर ही थे, नियमों का उल्लंघन हुआ और धन का दुरुपयोग किया गया, जिसके कारण फंडिंग रोकी गई।
- 23 राज्यों में वित्तीय वर्ष 2025-26 में निगरानी से सामने आया कि कई कार्य या तो मौजूद नहीं थे या खर्च के अनुपात में नहीं थे; जहां मजदूरी आधारित कार्य होने चाहिए थे, वहां मशीनों का इस्तेमाल हुआ और एनएमएमएस उपस्थिति को बड़े पैमाने पर चकमा दिया गया।
- वित्त वर्ष 2024-25 में विभिन्न राज्यों में कुल 193.67 करोड़ का दुरुपयोग पाया गया। महामारी के बाद के दौर में केवल 7.61% घरों ने ही 100 दिनों का कार्य पूरा किया।
सवाल-8: अब पारदर्शिता कैसे सुनिश्चित करेगी सरकार?
गड़बड़ी रोकने के लिए एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का उपयोग किया जाएगा। साथ ही निगरानी के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर स्टीयरिंग कमेटियां बनाई जाएंगी। जीपीएस और मोबाइल से काम की निगरानी की जाएगी। ऐसे में रियल-टाइम में जानकारी दिखाने वाले एआईएस डैशबोर्ड भी होगा। हर हफ्ते काम और खर्च का सार्वजनिक खुलासा किया जाएगा। हर ग्राम पंचायत में साल में दो बार सख्त सोशल ऑडिट भी किया जाएगा।
गड़बड़ी रोकने के लिए एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का उपयोग किया जाएगा। साथ ही निगरानी के लिए केंद्र और राज्य स्तर पर स्टीयरिंग कमेटियां बनाई जाएंगी। जीपीएस और मोबाइल से काम की निगरानी की जाएगी। ऐसे में रियल-टाइम में जानकारी दिखाने वाले एआईएस डैशबोर्ड भी होगा। हर हफ्ते काम और खर्च का सार्वजनिक खुलासा किया जाएगा। हर ग्राम पंचायत में साल में दो बार सख्त सोशल ऑडिट भी किया जाएगा।
सवाल-9: विपक्ष क्यों उठा रहा सरकार के विधेयक पर सवाल?
कांग्रेस
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा आज लोकसभा में विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण), VB-G RAM G बिल, 2025 का विरोध किया। उन्होंने कहा, "मनरेगा पिछले 20 वार्षों से ग्रामीण भारत को रोजगार देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में सक्षम रहा है। यह कितना क्रांतिकारी कानून है कि जब इसे बनाया गया तो सदन के सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी सहमती दी थी। इसके द्वारा 100 दिन का रोजगार देश के गरीब से गरीब लोगों को मिलता आया है।"
प्रियंका ने कहा कि हर योजना का नाम बदलने की जो सनक है वह समझ में नहीं आती है। जब-जब ये किया जाता है तो केंद्र को पैसे खर्च करने पड़ते हैं। बिना चर्चा के और बिना सदन की सलाह लिए इस तरह जल्दी-जल्दी में विधेयक को पास नहीं कराना चाहिए।
उधर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी 'VB- जी राम जी' बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा, महात्मा गांधी का नाम बदलना सही नहीं है। महात्मा गांधी का नाम राज्य का विजन पॉलिटिकल नहीं सामाजिक विकास का था। उनका नाम ही हटाना गलत है। राम का नाम बदनाम न करो।
कांग्रेस
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा आज लोकसभा में विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण), VB-G RAM G बिल, 2025 का विरोध किया। उन्होंने कहा, "मनरेगा पिछले 20 वार्षों से ग्रामीण भारत को रोजगार देने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में सक्षम रहा है। यह कितना क्रांतिकारी कानून है कि जब इसे बनाया गया तो सदन के सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी सहमती दी थी। इसके द्वारा 100 दिन का रोजगार देश के गरीब से गरीब लोगों को मिलता आया है।"
प्रियंका ने कहा कि हर योजना का नाम बदलने की जो सनक है वह समझ में नहीं आती है। जब-जब ये किया जाता है तो केंद्र को पैसे खर्च करने पड़ते हैं। बिना चर्चा के और बिना सदन की सलाह लिए इस तरह जल्दी-जल्दी में विधेयक को पास नहीं कराना चाहिए।
उधर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी 'VB- जी राम जी' बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा, महात्मा गांधी का नाम बदलना सही नहीं है। महात्मा गांधी का नाम राज्य का विजन पॉलिटिकल नहीं सामाजिक विकास का था। उनका नाम ही हटाना गलत है। राम का नाम बदनाम न करो।
वाम दल
वीबी-जी राम जी का सबसे कड़ा विरोध वाम दल की तरफ से किया गया है। पार्टी के सांसद जॉन ब्रिटास ने एक्स पोस्ट में कहा, "विधेयक का नाम बदलना तो सिर्फ ट्रेलर है, असली नुकसान इससे कहीं ज्यादा गहरा है। प्रस्तावित कानून में भले ही काम के दिनों की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 करने की बात कही गई हो, लेकिन सरकार ने एक अधिकार-आधारित गारंटी कानून की आत्मा निकाल दी है और उसकी जगह शर्तों से बंधी, केंद्र के नियंत्रण वाली ऐसी योजना रख दी है, जो राज्यों और मजदूरों के खिलाफ है। उधर माकपा पोलित ब्यूरो ने कहा कि सरकार का का दावा कि रोजगार की गारंटी 100 से बढ़ाकर 125 दिन की जा रही है दिखावटी है।
पार्टी ने कहा, "हकीकत में यह विधेयक जॉब कार्ड के युक्तिकरण के नाम पर ग्रामीण इलाक़ों के बड़े हिस्से को योजना से बाहर करने का रास्ता खोलता है. खेती के चरम मौसम में सरकार को 60 दिनों तक रोज़गार निलंबित करने की अनुमति देने वाला प्रावधान, उस समय ग्रामीण परिवारों से काम छीन लेगा जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है और उन्हें जमींदारों पर निर्भर बना देगा। काम के स्थान पर डिजिटल उपस्थिति को अनिवार्य करना मजदूरों के लिए भारी मुश्किलें खड़ी करेगा, जैसे काम का नुकसान और उनके अधिकारों से वंचित होना।"
माकपा ने कहा कि प्रस्तावित कानून के तहत मजदूरी भुगतान में केंद्र की जिम्मेदारी को 100 प्रतिशत से घटाकर बड़े राज्यों के लिए 60:40 के हिस्सेदारी मॉडल में बदलने का कदम, बेरोजगारी भत्ता और देरी से भुगतान के मुआवजे का बोझ राज्यों पर डाल देता है। इससे राज्य सरकारों पर ऐसा वित्तीय दबाव पड़ेगा, जिसे वे लंबे समय तक नहीं झेल पाएंगी, जबकि फैसला लेने की प्रक्रिया में उन्हें कोई भूमिका भी नहीं दी जा रही है। नॉर्मेटिव एलोकेशन की शुरुआत- जिसमें केंद्र राज्यवार खर्च की सीमा तय करेगा और अतिरिक्त खर्च राज्यों को उठाना होगा- योजना की पहुंच को और सीमित करेगी तथा केंद्र की जवाबदेही को कमजोर करेगी। योजना के नाम को मनरेगा से बदलकर जी राम जी करना भी भाजपा-आरएसएस के वैचारिक झुकाव को दर्शाता है।’
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पार्टी ने कहा, "हकीकत में यह विधेयक जॉब कार्ड के युक्तिकरण के नाम पर ग्रामीण इलाक़ों के बड़े हिस्से को योजना से बाहर करने का रास्ता खोलता है. खेती के चरम मौसम में सरकार को 60 दिनों तक रोज़गार निलंबित करने की अनुमति देने वाला प्रावधान, उस समय ग्रामीण परिवारों से काम छीन लेगा जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है और उन्हें जमींदारों पर निर्भर बना देगा। काम के स्थान पर डिजिटल उपस्थिति को अनिवार्य करना मजदूरों के लिए भारी मुश्किलें खड़ी करेगा, जैसे काम का नुकसान और उनके अधिकारों से वंचित होना।"
माकपा ने कहा कि प्रस्तावित कानून के तहत मजदूरी भुगतान में केंद्र की जिम्मेदारी को 100 प्रतिशत से घटाकर बड़े राज्यों के लिए 60:40 के हिस्सेदारी मॉडल में बदलने का कदम, बेरोजगारी भत्ता और देरी से भुगतान के मुआवजे का बोझ राज्यों पर डाल देता है। इससे राज्य सरकारों पर ऐसा वित्तीय दबाव पड़ेगा, जिसे वे लंबे समय तक नहीं झेल पाएंगी, जबकि फैसला लेने की प्रक्रिया में उन्हें कोई भूमिका भी नहीं दी जा रही है। नॉर्मेटिव एलोकेशन की शुरुआत- जिसमें केंद्र राज्यवार खर्च की सीमा तय करेगा और अतिरिक्त खर्च राज्यों को उठाना होगा- योजना की पहुंच को और सीमित करेगी तथा केंद्र की जवाबदेही को कमजोर करेगी। योजना के नाम को मनरेगा से बदलकर जी राम जी करना भी भाजपा-आरएसएस के वैचारिक झुकाव को दर्शाता है।’
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