बीएसएफ के लॉ अफसर ने तैयार किया था बांग्लादेश के 'अंतिम संविधान' का ड्राफ्ट, IG को मिला शीर्ष सम्मान
बीएसएफ वही जांबाज फोर्स है, जिसने बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई में भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था। कई मोर्चों पर तो अकेले बीएसएफ ने ही पाकिस्तानी सेना को करारा जवाब दिया था। बीएसएफ के तत्कालीन चीफ लॉ अफसर, कर्नल एमएस बैंस ने बांग्लादेश के 'अंतिम संविधान' का ड्राफ्ट तैयार करने में मदद की थी।
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बीएसएफ वही जांबाज फोर्स है, जिसने बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई में भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था। कई मोर्चों पर तो अकेले बीएसएफ ने ही पाकिस्तानी सेना को करारा जवाब दिया था। बीएसएफ के तत्कालीन चीफ लॉ अफसर, कर्नल एमएस बैंस ने बांग्लादेश के 'अंतिम संविधान' का ड्राफ्ट तैयार करने में मदद की थी। उनके कई सुझावों को 'अंतिम संविधान' के ड्राफ्ट में शामिल किया गया। इसके अलावा बीएसएफ के पूर्वी फ्रंटियर के आईजी 'गोलक मजूमदार ने बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी। उन्हें 'फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश' का सम्मान दिया गया।
लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हो संविधान
बीएसएफ के पूर्व एडीजी संजीव कृष्ण सूद ने अपनी पुस्तक 'बीएसएफ, द आइज एंड ईयर्स ऑफ इंडिया' में बांग्लादेश की मुक्ति के दौरान 'सीमा सुरक्षा बल' के शौर्य को लेकर कई खुलासे किए हैं। उन्होंने लिखा है कि बीएसएफ के तत्कालीन चीफ लॉ अफसर, कर्नल एमएस बैंस ने बांग्लादेश के 'अंतिम संविधान' का ड्राफ्ट तैयार करने में वहां के प्रशासन की मदद की थी। एमएस बैंस ने बांग्लादेश के अधिकारियों के साथ कई बैठकों में शिरकत की थी। उनका प्रयास था कि बांग्लादेश का संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित हो। उनके कई बहुमूल्य सुझावों को माना गया। इस लड़ाई में बीएसएफ के पूर्वी फ्रंटियर के आईजी 'गोलक मजूमदार को फैसले लेने और कार्रवाई की पूरी छूट दे दी गई थी।
इंटेलिजेंस' पर मजूमदार की थी अच्छी पकड़
सूद ने लिखा है कि एक दिसंबर 1965 को बल की स्थापना के बाद मात्र छह साल के भीतर, 'बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई' जैसा बड़ा टॉस्क बीएसएफ को मिला था। इस लड़ाई में मार्च 1971 से लेकर इसके खत्म होने, यानी दिसंबर 1971 तक बीएसएफ शामिल रही थी। कई मोर्चों पर बीएसएफ के जवानों ने असीम बहादुरी का परिचय दिया। बीएसएफ के आईजी गोलक मजूमदार ने बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई को आसान बनाया था। उन्होंने पहले त्रिपुरा फिर पश्चिम बंगाल में काम किया था, इसलिए 'इंटेलिजेंस' पर उनकी अच्छी पकड़ थी। पाकिस्तान को लेकर उनके पास तमाम खुफिया सूचनाएं रहती थीं।
'बांग्लादेश अवामी लीग' के संपर्क में रहे
वे अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जो 'बांग्लादेश अवामी लीग' के संपर्क में रहे। उन्होंने कोलकाता में पाकिस्तान के उच्चायुक्त हुसैन अली को हार स्वीकार करने के लिए तैयार किया था। उनके सामने दूतावास पर पाकिस्तान का झंडा उतर रहा था। वे दिसंबर 1971 में लड़ाई खत्म होने तक अवामी लीग के साथ संपर्क में रहे। गोलक मजूमदार को परम विशिष्ट विश्ष्टि सेवा मेडल प्रदान किया गया था। इतना ही नहीं, बांग्लादेश सरकार ने उन्हें 'फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश' के सम्मान से नवाजा था।