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शर्तों के साथ नारी वंदन: परिसीमन के पेंच में क्यों फंसा महिला आरक्षण, आखिर ये होता क्या है? जानें सबकुछ
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवेंद्र तिवारी
Updated Thu, 21 Sep 2023 02:57 PM IST
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महिला आरक्षण विधेयक
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AMAR UJALA
विस्तार
केंद्र सरकार द्वारा लाया गया नारी शक्ति वंदन विधेयक पर बुधवार को लोकसभा में पारित हो गया है। इसके बाद आज राज्यसभा से भी इसके पास होने की उम्मीद जताई जा रही है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून भी बन जाएगा, लेकिन इसको अमल में लाने से पहले दो शर्तों को पूरा करना होगा। ये शर्तें जनगणना और परिसीमन की हैं जिन्हें पूरा करने में कई साल लग सकते हैं।आखिर विधेयक की शर्तें क्या हैं? परिसीमन की प्रक्रिया क्या है? आरक्षण लागू करने के लिए यह कवायद क्यों जरूरी है? परिसीमन पूरा होने के बाद क्या आरक्षण लागू हो जाएगा? आइये जानते हैं...

नारी शक्ति वंदन विधेयक
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AMAR UJALA
विधेयक की शर्तें क्या हैं?
नारी शक्ति वंदन विधेयक में इसके कानून बनने के बाद इसके प्रभावी होने की दो शर्तें रखी गईं हैं। इसके मुताबिक महिला आरक्षण विधेयक पास होने के बाद आगामी जनगणना के बाद लागू होगा। कानून बनने के बाद होने वाली जनगणना के बाद आरक्षण लागू करने के लिए नए सिरे से परिसीमन होगा। परिसीमन के आधार पर ही महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित की जाएंगी।
नारी शक्ति वंदन विधेयक में इसके कानून बनने के बाद इसके प्रभावी होने की दो शर्तें रखी गईं हैं। इसके मुताबिक महिला आरक्षण विधेयक पास होने के बाद आगामी जनगणना के बाद लागू होगा। कानून बनने के बाद होने वाली जनगणना के बाद आरक्षण लागू करने के लिए नए सिरे से परिसीमन होगा। परिसीमन के आधार पर ही महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित की जाएंगी।

परिसीमन आयोग
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सोशल मीडिया
क्या होता है परिसीमन?
किसी निर्वाचन क्षेत्र की सीमा का पुन: निर्धारण करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहा जाता है। अर्थात इसके जरिए ही लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की हदें नए सिरे से तय की जाती हैं। अनुच्छेद 81, 170, 330 और 332 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संरचना और आरक्षण से संबंधित हैं। परिसीमन से जुड़ा संविधान का अनुच्छेद 82 कहता है कि सरकार हर जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है।इसके तहत जनसंख्या के आधार पर विभिन्न विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों का निर्धारण होता है। जनसंख्या के हिसाब से अनुसूचित जाति-जनजाति सीटों की संख्या बदल सकती है।
1951 से 1971 तक की हर जनगणना के बाद नए सिरे से लोकसभा सीटों का परिसीमन होता रहा। 1971 में हुई जनगणना के बाद 1972 में लोकसभा सीटों के लिए परिसीमन आयोग बना था। इसके बाद लोकसभा सीटों की संख्या 522 से बढ़कर 543 हो गई थीं। इसके बाद 2001 की जनगणना के बाद हुए राज्यों की विधानसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन हुआ। वहीं, लोकसभा सीटों की संख्या 543 ही रही। हालांकि, विधानसभा के बदले परिसीमन के कारण लोकसभा क्षेत्रों की सीमा में काफी बदलाव हुए। लोकसभा सीटों की संख्या नहीं बढ़ने की वजह एक और संविधान संशोधन था।
किसी निर्वाचन क्षेत्र की सीमा का पुन: निर्धारण करने की प्रक्रिया को परिसीमन कहा जाता है। अर्थात इसके जरिए ही लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की हदें नए सिरे से तय की जाती हैं। अनुच्छेद 81, 170, 330 और 332 लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों की संरचना और आरक्षण से संबंधित हैं। परिसीमन से जुड़ा संविधान का अनुच्छेद 82 कहता है कि सरकार हर जनगणना के बाद परिसीमन आयोग का गठन कर सकती है।इसके तहत जनसंख्या के आधार पर विभिन्न विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों का निर्धारण होता है। जनसंख्या के हिसाब से अनुसूचित जाति-जनजाति सीटों की संख्या बदल सकती है।
1951 से 1971 तक की हर जनगणना के बाद नए सिरे से लोकसभा सीटों का परिसीमन होता रहा। 1971 में हुई जनगणना के बाद 1972 में लोकसभा सीटों के लिए परिसीमन आयोग बना था। इसके बाद लोकसभा सीटों की संख्या 522 से बढ़कर 543 हो गई थीं। इसके बाद 2001 की जनगणना के बाद हुए राज्यों की विधानसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन हुआ। वहीं, लोकसभा सीटों की संख्या 543 ही रही। हालांकि, विधानसभा के बदले परिसीमन के कारण लोकसभा क्षेत्रों की सीमा में काफी बदलाव हुए। लोकसभा सीटों की संख्या नहीं बढ़ने की वजह एक और संविधान संशोधन था।

Delimitation Commission
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PTI
कब-कब हुई परिसीमन की कवायद?
आजादी के बाद से देश में सात बार जनगणना हुई है जबकि परिसीमन केवल चार बार हुआ है। भारत में सर्वप्रथम वर्ष 1952 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इसके बाद 1963,1973 और 2002 में परिसीमन आयोग गठित किए जा चुके हैं।
उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में 12 जुलाई 2002 को परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया। यह अहम है कि अंतिम बार परिसीमन की कवायद 2002 में केवल निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को दोबारा निर्धारित करने के लिए हुई थी। इसके चलते निर्वाचन क्षेत्रों यानी सीटों की संख्या नहीं बढ़ी। इसका मतलब यह है कि 1971 में दशकीय गणना के आधार पर ही 1976 में लोकसभा सीटें बढ़ी थीं और उसके बाद से लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या नहीं बदली है।
आजादी के बाद से देश में सात बार जनगणना हुई है जबकि परिसीमन केवल चार बार हुआ है। भारत में सर्वप्रथम वर्ष 1952 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इसके बाद 1963,1973 और 2002 में परिसीमन आयोग गठित किए जा चुके हैं।
उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में 12 जुलाई 2002 को परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया। यह अहम है कि अंतिम बार परिसीमन की कवायद 2002 में केवल निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को दोबारा निर्धारित करने के लिए हुई थी। इसके चलते निर्वाचन क्षेत्रों यानी सीटों की संख्या नहीं बढ़ी। इसका मतलब यह है कि 1971 में दशकीय गणना के आधार पर ही 1976 में लोकसभा सीटें बढ़ी थीं और उसके बाद से लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या नहीं बदली है।

लोकसभा में विपक्ष का भारी हंगामा
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संसद टीवी
...तो 1971 के बाद लोकसभा की सीटें क्यों नहीं बढ़ीं?
संविधान का अनुच्छेद 81 कहता है कि लोकसभा का प्रतिनिधित्व जनसंख्या के अनुसार होना चाहिए। लेकिन 1971 की जनगणना के आधार पर किए गए परिसीमन के बाद से यह कमोबेश वैसा ही बना हुआ है। दरअसल, अनुच्छेद 81 के तहत अनिवार्य जनसंख्या-सीट अनुपात सभी राज्यों के लिए समान होना चाहिए। 1970 के दशक में केंद्र ने जनसंख्या नियंत्रण के अभियान चलाए। इसके बाद कई राज्यों ने यह चिंता जताई कि जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण बेहतर तरीके से लागू करेंगे उन राज्यों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा।
वहीं, इसके उलट जनसंख्या को नियंत्रण न कर पाने वाले राज्यों को संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं। इन आशंकाओं को दूर करने के लिए 1976 में इंदिरा गांधी के आपातकालीन शासन के दौरान 2001 तक परिसीमन को निलंबित करने के लिए संविधान में 42वां संशोधन किया गया था।
हालांकि, प्रतिबंधों के बावजूद कुछ ऐसे मौके आए हैं जब राज्य को आवंटित संसद और विधानसभा सीटों की संख्या में बदलाव की मांग की गई है। इनमें 1986 में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को राज्य का दर्जा मिलना, दिल्ली के लिए विधानसभा का बनना और उत्तराखंड जैसे नए राज्यों का गठन शामिल हैं।
संविधान का अनुच्छेद 81 कहता है कि लोकसभा का प्रतिनिधित्व जनसंख्या के अनुसार होना चाहिए। लेकिन 1971 की जनगणना के आधार पर किए गए परिसीमन के बाद से यह कमोबेश वैसा ही बना हुआ है। दरअसल, अनुच्छेद 81 के तहत अनिवार्य जनसंख्या-सीट अनुपात सभी राज्यों के लिए समान होना चाहिए। 1970 के दशक में केंद्र ने जनसंख्या नियंत्रण के अभियान चलाए। इसके बाद कई राज्यों ने यह चिंता जताई कि जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण बेहतर तरीके से लागू करेंगे उन राज्यों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा।
वहीं, इसके उलट जनसंख्या को नियंत्रण न कर पाने वाले राज्यों को संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं। इन आशंकाओं को दूर करने के लिए 1976 में इंदिरा गांधी के आपातकालीन शासन के दौरान 2001 तक परिसीमन को निलंबित करने के लिए संविधान में 42वां संशोधन किया गया था।
हालांकि, प्रतिबंधों के बावजूद कुछ ऐसे मौके आए हैं जब राज्य को आवंटित संसद और विधानसभा सीटों की संख्या में बदलाव की मांग की गई है। इनमें 1986 में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को राज्य का दर्जा मिलना, दिल्ली के लिए विधानसभा का बनना और उत्तराखंड जैसे नए राज्यों का गठन शामिल हैं।

Delimitation Commission
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सोशल मीडिया
2001 में 2026 तक टाल दिया गया जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सीटों का पुनर्गठन
2001 की जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों की संख्या पर रोक हटा दी जानी चाहिए थी, लेकिन संविधान के 84वें संशोधन से यह रोक 2026 तक के लिए स्थगित कर दी गई। यह इस आधार पर था कि 2026 तक पूरे देश में एक समान जनसंख्या वृद्धि दर हासिल की जाए।
संविधान में मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, परिसीमन की अगली कवायद 2026 के बाद होने वाली जनगणना के बाद होगी। यानी 84वें संशोधन के 25 साल बाद की गई पहली जनगणना के आधार पर नया परिसीमन होगा। इसका मतलब यह होगा कि परिसीमन 2031 की जनगणना के बाद होगा। इससे पहले कोरोना महामारी के कारण 2021 की जनगणना नहीं की जा सकी।
2001 की जनगणना के बाद लोकसभा और विधानसभाओं में सीटों की संख्या पर रोक हटा दी जानी चाहिए थी, लेकिन संविधान के 84वें संशोधन से यह रोक 2026 तक के लिए स्थगित कर दी गई। यह इस आधार पर था कि 2026 तक पूरे देश में एक समान जनसंख्या वृद्धि दर हासिल की जाए।
संविधान में मौजूदा प्रावधानों के अनुसार, परिसीमन की अगली कवायद 2026 के बाद होने वाली जनगणना के बाद होगी। यानी 84वें संशोधन के 25 साल बाद की गई पहली जनगणना के आधार पर नया परिसीमन होगा। इसका मतलब यह होगा कि परिसीमन 2031 की जनगणना के बाद होगा। इससे पहले कोरोना महामारी के कारण 2021 की जनगणना नहीं की जा सकी।

महिला आरक्षण
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AMAR UJALA
तो आखिर कब तक लागू होगा महिला आरक्षण ?
केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को लोकसभा में इसे लेकर कोई तय तारीख या साल नहीं बताया गया। गृह मंत्री अमित शाह ने इतना जरूर कहा कि 2026 के बाद जो जनगणना होगी इसके के बाद परिसीमन होगा। परिसीमन आयोग ही आरक्षित सीटें तय करेगा। वहीं, गुरुवार को राज्यसभा में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 2029 तक यह आरक्षण लागू होने की बात कही।
हालांकि, इसमें पेंच दिखाई देता है। दरअसल, 2021 की जगनणना अब तक नहीं हुई है। यह कब होगी इस बारे में भी सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई है। ऐसे में अगर यह जनगणना 2027 तक होगी और अगले एक से डेढ़ साल में परिसीमन आयोग अपनी रिपोर्ट दे देता है तो ही 2029 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण लागू हो सकता है।
अगर इतिहास को देखें तो इसकी उम्मीद कम दिखती है। दरअसल, आमतौर पर परिसीमन आयोग नया परिसीमन का आंकड़ा जारी करने में तीन से चार साल लेता है। जैसे 2001 की जनगणना के बाद जुलाई 2002 में परिसीमन आयोग का गठन हुआ। यह परिसीमन कार्य 31 मई 2008 को पूरा हुआ। इसके बाद से राज्यों में नए परिसीमन के आधार पर चुनाव हुए। ऐसे में दो स्थितियां बनती हैं। पहली अगर 2021 की जनगणना 2026 से पहले हो जाती है तो और दूसरी अगर 2021 की जनगणना 2026 के बाद होती है तो।
पहली स्थिति में अगर परिसीमन आयोग तीन से चार साल में अपनी रिपोर्ट देता है तो यह आरक्षण 2034 के लोकसभा चुनाव में लागू हो सकता है। वहीं, दूसरी स्थिति में परिसीमन आयोग का गठन 2031 की जनगणना के बाद होगा। ऐसे में महिलाओं के इस आरक्षण के लिए 2039 तक इंतजार करना पड़ सकता है।
केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को लोकसभा में इसे लेकर कोई तय तारीख या साल नहीं बताया गया। गृह मंत्री अमित शाह ने इतना जरूर कहा कि 2026 के बाद जो जनगणना होगी इसके के बाद परिसीमन होगा। परिसीमन आयोग ही आरक्षित सीटें तय करेगा। वहीं, गुरुवार को राज्यसभा में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 2029 तक यह आरक्षण लागू होने की बात कही।
हालांकि, इसमें पेंच दिखाई देता है। दरअसल, 2021 की जगनणना अब तक नहीं हुई है। यह कब होगी इस बारे में भी सरकार की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई है। ऐसे में अगर यह जनगणना 2027 तक होगी और अगले एक से डेढ़ साल में परिसीमन आयोग अपनी रिपोर्ट दे देता है तो ही 2029 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण लागू हो सकता है।
अगर इतिहास को देखें तो इसकी उम्मीद कम दिखती है। दरअसल, आमतौर पर परिसीमन आयोग नया परिसीमन का आंकड़ा जारी करने में तीन से चार साल लेता है। जैसे 2001 की जनगणना के बाद जुलाई 2002 में परिसीमन आयोग का गठन हुआ। यह परिसीमन कार्य 31 मई 2008 को पूरा हुआ। इसके बाद से राज्यों में नए परिसीमन के आधार पर चुनाव हुए। ऐसे में दो स्थितियां बनती हैं। पहली अगर 2021 की जनगणना 2026 से पहले हो जाती है तो और दूसरी अगर 2021 की जनगणना 2026 के बाद होती है तो।
पहली स्थिति में अगर परिसीमन आयोग तीन से चार साल में अपनी रिपोर्ट देता है तो यह आरक्षण 2034 के लोकसभा चुनाव में लागू हो सकता है। वहीं, दूसरी स्थिति में परिसीमन आयोग का गठन 2031 की जनगणना के बाद होगा। ऐसे में महिलाओं के इस आरक्षण के लिए 2039 तक इंतजार करना पड़ सकता है।