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Supreme Court: 'वर्दी पहनते ही पुलिस को त्यागनी होंगी निजी और धार्मिक सोच', लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट नाराज

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: पवन पांडेय Updated Thu, 11 Sep 2025 07:43 PM IST
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सार

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अकोला के ओल्ड सिटी पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर की तरफ से दिए गए हलफनामे में याचिकाकर्ता के खिलाफ गलत मंशा के आरोप लगाए गए, जिन्हें हाईकोर्ट ने भी मान लिया। जबकि पुलिस का कर्तव्य था कि वह निष्पक्ष होकर मामले की सच्चाई की जांच करे, खासकर तब जब याचिकाकर्ता 17 साल का लड़का है और खुद को प्रत्यक्षदर्शी बता रहा है।

When police officials don uniforms, they must shed personal, religious biases: SC
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : एएनआई
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जब पुलिस अधिकारी वर्दी पहनते हैं, तो उन्हें अपनी व्यक्तिगत, धार्मिक, जातीय या अन्य किसी भी तरह की पूर्वाग्रह वाली सोच को पूरी तरह त्याग देना चाहिए और सिर्फ कानून और अपने कर्तव्य के प्रति सच्चे रहना चाहिए। महाराष्ट्र के अकोला में 2023 में हुए साम्प्रदायिक दंगों के दौरान हुई हत्या के मामले में कार्रवाई में लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाने का आदेश दिया। अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस को फटकार लगाई कि उन्होंने अब तक इस मामले में एफआईआर दर्ज तक नहीं की, जो उनके कर्तव्य में गंभीर चूक है।
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क्या है पूरा मामला?
मई 2023 में अकोला के पुराने शहर (ओल्ड सिटी) इलाके में पैगंबर मोहम्मद से जुड़े एक सोशल मीडिया पोस्ट के वायरल होने के बाद साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई। इस हिंसा में विलास महादेव राव गायकवाड़ नाम के व्यक्ति की हत्या हो गई, जबकि 8 लोग घायल हुए, जिनमें याचिकाकर्ता मोहम्मद अफजल मोहम्मद शरीफ भी शामिल थे। शरीफ ने आरोप लगाया कि चार हमलावरों ने विलास गायकवाड़ पर तलवार, लोहे की पाइप और अन्य हथियारों से हमला किया। इसके बाद उन्होंने शरीफ की गाड़ी को तोड़ा और उसके सिर और गर्दन पर वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया।

घायल के बयान पर नहीं दर्ज हुई FIR
इस वारदात में घायल शरीफ को अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां उसका बयान भी पुलिस ने दर्ज किया, लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। इसके बाद शरीफ ने अपने पिता के जरिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।

हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका
हाईकोर्ट ने शरीफ की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसके दावे संदिग्ध लग रहे हैं। वहीं, महाराष्ट्र पुलिस ने कोर्ट में कहा कि जांच के दौरान शरीफ का प्रत्यक्षदर्शी (आंखों देखा गवाह) होने का दावा साबित नहीं हो सका। उनका कहना था कि अस्पताल से उसकी भर्ती की जानकारी मिली थी, लेकिन जब अधिकारी उससे बयान लेने पहुंचे, तो वह बोलने की हालत में नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, ने इस पूरे मामले को गंभीर मानते हुए कहा. 'जब पुलिस वर्दी पहनती है, तो उसे अपनी निजी, धार्मिक, जातीय या किसी भी तरह की पक्षपाती सोच को पीछे छोड़ना चाहिए। उन्हें अपनी ड्यूटी और वर्दी के प्रति पूरी ईमानदारी और निष्ठा रखनी चाहिए। दुर्भाग्य से इस मामले में ऐसा नहीं हुआ।' अदालत ने कहा कि पुलिस ने न केवल एफआईआर दर्ज नहीं की बल्कि कर्तव्य की घोर लापरवाही की।

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एसआईटी गठित करने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के गृह विभाग के सचिव को आदेश दिया कि वे एक एसआईटीका गठन करें, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी शामिल हों। यह टीम तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू करेगी। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि सभी लापरवाह पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। पुलिसकर्मियों को संवेदनशीलता और कानून के प्रति जागरूकता की ट्रेनिंग दी जाए। एसआईटी अपनी जांच रिपोर्ट तीन महीने में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे।
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