Srinagar: धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, फिर से पहले वाला कश्मीर बनाना होगा, बोले चीफ जस्टिस बी.आर.गवई
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने श्रीनगर में नालसा सम्मेलन में कहा कि अधिकार तभी उपयोगी हैं जब लोगों को उनका ज्ञान हो। उन्होंने कश्मीर की पुरानी गंगा-जमुनी तहजीब को लौटाने और हर नागरिक तक न्याय पहुंचाने की जरूरत पर जोर दिया।
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भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने रविवार को एसकेआईसीसी में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नालसा के उत्तरी क्षेत्रीय सम्मेलन में देशभर के न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं को संबोधित किया। उन्होंने कविता के जरिए कहा कि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। उन्होंने कहा कि इसे फिर से पहले वाला कश्मीर बनाना होगा जहां सभी समुदाय सद्भाव से रहते थे। साथ ही लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि ज्ञान के बिना अधिकार बेकार हैं।
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों और वकीलों को मिलकर देश के अंतिम नागरिक के लिए न्याय सुनिश्चित करना होगा। नालसा इसी दिशा में काम करता है, और हम नालसा के काम को देश के दूरदराज के इलाकों तक ले जाने का प्रयास करते हैं - चाहे वह लद्दाख हो, पूर्वोत्तर हो या राजस्थान। जब तक लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होगा, तब तक अधिकारों का कोई मतलब नहीं है।
नालसा का दूरदराज के अंतिम नागरिक तक न्याय पहुंचाने का कार्य
पिछले 35 वर्षों में कश्मीर की स्थिति का स्पष्ट रूप से उल्लेख करते हुए, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कुछ विसंगतियां रही हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। न्याधीशों और वकीलों के बीच यह संवाद एक नया दृष्टिकोण प्रदान करेगा।
नालसा को यह सुनिश्चित करने का अपना कार्य जारी रखना चाहिए कि देश के सबसे दूरस्थ क्षेत्र के अंतिम निवासी को संविधान में निहित न्याय मिले।उन्होंने कहा, "देश के संविधान के माध्यम से, हमने खुद से न्याय का वादा किया है, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक। हमारा दायित्व है कि न्याय को उसकी सच्ची भावना के अनुसार लागू किया जाए। कानूनी बिरादरी को संविधान के सच्चे मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए।
बाबासाहेब बीआर अंबेडकर ने एक व्यक्ति, एक वोट के माध्यम से राजनीतिक न्याय स्थापित किया, वहीं सामाजिक विभाजन और एक विभाजन से दूसरे विभाजन में जाने की कठिनाई के बारे में भी बात की।
यहां का सूफीवाद संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देता है
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की अपनी पिछली यात्राओं को याद करते हुए, मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि उन्हें दोनों केंद्र शासित प्रदेशों के लोगों से अपार प्रेम और स्नेह मिला है। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं अपने गृहनगर आ गया हूं।
मुझ पर बरसाए गए सभी प्रेम और स्नेह के लिए मैं आभारी हूंं। मैं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के सभी हिस्सों में गया हूं। यहां की सूफीवाद की परंपरा भारत के संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देती है। सभी धर्मों के लोग यहां दरगाहों, मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों पर आते हैं।