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Srinagar News: ग्रामीण इलाकों में तेंदुओं के हमलों से दहशत, शहर में भालुओं का आतंक
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बर्फबारी के बीच बढ़ी भालुओं और तेंदुओं के हमले की आशंका
ठंड, आवास सिकुड़ने और भोजन की कमी ने वन्यजीवों को बस्तियों की ओर धकेला
अमर उजाला ब्यूरो
श्रीनगर। घाटी में बढ़ती सर्दी और पहाड़ों पर बर्फबारी के साथ ही भालुओं और तेंदुओं के इंसानी बस्तियों में घुसपैठ और हमलों की आशंका बढ़ गई है। हाल के हफ्तों में इन घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है जिसके पीछे विशेषज्ञ सर्दी, प्राकृतिक आवासों के सिकुड़ने और खाने की कमी को प्रमुख कारण मान रहे हैं।
दिसंबर माह में कई गंभीर घटनाएं सामने आईं। अनंतनाग के खिराम गांव में एक तेंदुए ने पांच साल की बच्ची सूमिया पर हमला कर उसकी जान ले ली। उसी दिन बारामुला के सोपोर में एक तेंदुए ने भेड़शाला में घुसकर सात भेड़ों को मार दिया। पुलवामा में एक तेंदुए को वन विभाग को बस्ती से बाहर निकालना पड़ा।
श्रीनगर शहर भी भालुओं के आतंक से अछूता नहीं रहा। नवंबर के अंत से लेकर दिसंबर तक भालू शहर के विभिन्न इलाकों-निगीन, हजरतबल, स्किम्स अस्पताल परिसर और मीरवाइज मंजिल के आसपास देखे गए। एक भालू तो निगीन झील में तैरता भी देखा गया। वन विभाग की टीमों ने शहर समेत पुलवामा, अनंतनाग और शोपियां के विभिन्न गांवों से कई भालुओं को पकड़ा।
इन घटनाओं का असर लोगों की दैनिक दिनचर्या पर पड़ रहा है। सुबह जल्दी काम शुरू करने वाले बेकरीवाले और दुकानदार सुरक्षा कारणों से देर से खुल रहे हैं। हजरतबल, निगीन जैसे उत्तरी श्रीनगर के इलाकों में शाम ढलते ही लोग घरों में दुबक जाते हैं और माता-पिता बच्चों को बाहर नहीं निकलने दे रहे।
प्राकृतिक आवासाें में दखलअंदाजी बड़ी वजह
वन्यजीव विशेषज्ञ इम्तियाज हुसैन के अनुसार, यह समस्या बड़े पारिस्थितिक बदलावों का संकेत है। भालुओं की आबादी तो बढ़ी है, लेकिन मानवीय दखल, बिगड़ते मौसम चक्र, भोजन की कमी और आवास सिमटने के कारण ये जानवर सर्दियों में भी अपने प्राकृतिक घरों को छोड़ने को मजबूर हैं। वन विभाग ने निवासियों को जंगल के किनारे खाने का कचरा न फेंकने की चेतावनी दी है, क्योंकि भोजन की तलाश ही इन जानवरों को बस्तियों में खींच रही है।
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ठंड, आवास सिकुड़ने और भोजन की कमी ने वन्यजीवों को बस्तियों की ओर धकेला
अमर उजाला ब्यूरो
श्रीनगर। घाटी में बढ़ती सर्दी और पहाड़ों पर बर्फबारी के साथ ही भालुओं और तेंदुओं के इंसानी बस्तियों में घुसपैठ और हमलों की आशंका बढ़ गई है। हाल के हफ्तों में इन घटनाओं में वृद्धि दर्ज की गई है जिसके पीछे विशेषज्ञ सर्दी, प्राकृतिक आवासों के सिकुड़ने और खाने की कमी को प्रमुख कारण मान रहे हैं।
दिसंबर माह में कई गंभीर घटनाएं सामने आईं। अनंतनाग के खिराम गांव में एक तेंदुए ने पांच साल की बच्ची सूमिया पर हमला कर उसकी जान ले ली। उसी दिन बारामुला के सोपोर में एक तेंदुए ने भेड़शाला में घुसकर सात भेड़ों को मार दिया। पुलवामा में एक तेंदुए को वन विभाग को बस्ती से बाहर निकालना पड़ा।
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श्रीनगर शहर भी भालुओं के आतंक से अछूता नहीं रहा। नवंबर के अंत से लेकर दिसंबर तक भालू शहर के विभिन्न इलाकों-निगीन, हजरतबल, स्किम्स अस्पताल परिसर और मीरवाइज मंजिल के आसपास देखे गए। एक भालू तो निगीन झील में तैरता भी देखा गया। वन विभाग की टीमों ने शहर समेत पुलवामा, अनंतनाग और शोपियां के विभिन्न गांवों से कई भालुओं को पकड़ा।
इन घटनाओं का असर लोगों की दैनिक दिनचर्या पर पड़ रहा है। सुबह जल्दी काम शुरू करने वाले बेकरीवाले और दुकानदार सुरक्षा कारणों से देर से खुल रहे हैं। हजरतबल, निगीन जैसे उत्तरी श्रीनगर के इलाकों में शाम ढलते ही लोग घरों में दुबक जाते हैं और माता-पिता बच्चों को बाहर नहीं निकलने दे रहे।
प्राकृतिक आवासाें में दखलअंदाजी बड़ी वजह
वन्यजीव विशेषज्ञ इम्तियाज हुसैन के अनुसार, यह समस्या बड़े पारिस्थितिक बदलावों का संकेत है। भालुओं की आबादी तो बढ़ी है, लेकिन मानवीय दखल, बिगड़ते मौसम चक्र, भोजन की कमी और आवास सिमटने के कारण ये जानवर सर्दियों में भी अपने प्राकृतिक घरों को छोड़ने को मजबूर हैं। वन विभाग ने निवासियों को जंगल के किनारे खाने का कचरा न फेंकने की चेतावनी दी है, क्योंकि भोजन की तलाश ही इन जानवरों को बस्तियों में खींच रही है।