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Kargil Vijay Diwas: अंधेरे में रस्सियों से चढ़ी ऊंची पहाड़ियां, बहते लहू के साथ भी उदयमान ने दुश्मन को ललकारा

अमर उजाला नेटवर्क, जम्मू Published by: गुलशन कुमार Updated Fri, 26 Jul 2024 08:49 AM IST
सार

कारगिल की लड़ाई भारत के इतिहास में सेना के जांबाजों की जीवंत कहानी है। 25 साल पहले जब पाकिस्तान के घुसपैठिए नापाक मंसूबों के साथ भारत की सरजमीं पर दाखिल हुए तो बलिदानी सपूतों ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया। इन सपूतों में जम्मू के वीर पुत्र उदयमान सिंह का नाम भी शामिल है। उन्होंने कारगिल युद्ध में 12 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मनों से अंतिम सांस तक लोहा लिया। टाइगर हिल पर मुकाबला सीधे दुश्मन के साथ हुआ।

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Kargil Vijay Diwas : Climbed high mountains with ropes in the dark Udayman singh challenged enemy
बलिदानी उदयमान सिंह (फाइल) - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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कारगिल विजय को 25 साल पूरे हो गए हैं। इस जीत को हासिल करने वाले वीर सैनिकों के जज्बे की दास्तां जहां जोश से लबरेज कर देती हैं तो वहीं आंखों को पानी से भी भर देती है। ऐसे ही भारत मां के वीर सपूत थे उदयमान सिंह, जिन्होंने पांच जुलाई के दिन ही कारगिल युद्ध के दौरान वीरगति प्राप्त की।

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जम्मू के वीर पुत्र उदयमान सिंह ने कारगिल युद्ध में 12 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मनों से अंतिम सांस तक लोहा लिया। टाइगर हिल पर मुकाबला सीधे दुश्मन के साथ हुआ। बहादुरी के साथ लड़ते हुए दुश्मन के दांत खट्टे कर दिए। इस बीच एक गोली उन्हें लगी। घायल होने के बाद उदयमान दुश्मनों के छक्के छुड़ाते रहे और अंत में वीरगति को प्राप्त हुए।

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बचपन से ही फौजी बनने का था जनून

जम्मू शहर के साथ लगते झिड़ी के पास शामा चक्क में उदयमान सिंह का जन्म 1978 में हुआ था। स्कूल से ही फौज में भर्ती होने का मन बना लिया था। माता-पिता चाहते थे कि वह उच्च शिक्षा हासिल करें, लेकिन शायद उनके हिस्से में भारत माता की सेवा लिखी थी।

आतंकवादियों से कई बार लिया लोहा

26 अगस्त, 1996 को जबलपुर में वीर उदयमान सेना में भर्ती हुए। ट्रेनिंग समाप्त होने पर 18 ग्रेनेडियर यूनिट में भेजा गया। उस दौरान उनकी यूनिट गंगानगर में थी। इसके बाद यूनिट को कश्मीर भेजा गया। घाटी में कई बार आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में वह शामिल रहे।

4 जुलाई, 1999 को मिली जिम्मेदारी, रात को ही जंग के मैदान में कूद पड़े

पाकिस्तानी सेना और घुसपैठिये चाल चल चुके थे। कारगिल के हिस्से पर कब्जा कर लिया था। 4 जुलाई, 1999 को उनकी यूनिट को दुश्मनों से टाइगर हिल खाली कराने की जिम्मेदारी मिली।

पूरी रात रस्सियों के सहारे दुर्गम चढ़ाई चढ़कर वीर जवान आगे बढ़े। पांच जुलाई सुबह आठ बजे उदयमान साथियों के साथ टाइगर हिल पर पहुंचे। सीधा मुकाबला दुश्मन से हुआ। साहस और बहादुरी से लड़ते-लड़ते उन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए। इसी दौरान एक गोली उनके सीने में लगी। जख्मी होने पर भी जंग जारी रखी और अंत में शहादत को गले लगा लिया।

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