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कारगिल विजय दिवस: हवलदार मदन लाल छह घंटे में रस्सियों के सहारे पहुंच चोटी तक, दो दुश्मन किए ढेर

अमर उजाला नेटवर्क, जम्मू Published by: गुलशन कुमार Updated Fri, 26 Jul 2024 12:59 PM IST
सार

कारगिल युद्ध में मदन लाल की घातक प्लाटून को सीधी ऊंची चट्टानों से रास्ता बनाने की जिम्मेदारी मिली। लक्ष्य था ईस्टर्न स्पर पोस्ट पर कब्जा। यहां दुश्मन के चार बंकर थे। 

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Kargil Vijay Diwas : Havildar Madan Lal reached the peak with the help of ropes in six hours killed two enemie
कारगिल विजय दिवस (फाइल) - फोटो : सेना
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विस्तार
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जम्मू के बन तलाब रहने वाले हवलदार मदन लाल (18 ग्रेनेडियर्स) की घातक प्लाटून के जांबाज रहे। घातक कमांडो प्लाटून ने टाइगर हिल समेत चार दो चोटियों पर कब्जा कर तिरंगा फहराया। कारगिल युद्ध में मदन लाल की घातक प्लाटून को सीधी ऊंची चट्टानों से रास्ता बनाने की जिम्मेदारी मिली। लक्ष्य था ईस्टर्न स्पर पोस्ट पर कब्जा। यहां दुश्मन के चार बंकर थे। 
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इस पोस्ट को हासिल किए वगैर टाइगर हिल तक पहुंच पाना असंभव था। मदन लाल का दल 6 घंटे की मेहनत के बाद रस्सियों के सहारे चोटी पर पहुंचा। दुश्मन ने सोचा भी नहीं था कि कोई इस तरफ से भी आ सकता है। 
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सातों कमांडो ने अचानक धाबा बोला और दो पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। मदन लाल के कमांडो दल ने चारों बंकर तबाह कर दिए। 5 जुलाई को ही लड़ते-लड़ते मदनलाल बलिदान हो गए। पूरी घातक प्लाटून मदन लाल के बनाए रास्ते से चोटी पर पहुंची और पूरा क्षेत्र दुश्मन से मुक्त करवाया। मरणोपरांत मदन लाल को वीर चक्र से सम्मानित किया गया ।

गुलाम मोहम्मद खान ने अपनी कंपनी को बचाकर दिया बलिदान

पाइंट 5203 कारगिल के बटालिक के यालडार सेक्टर की महत्वपूर्ण पोस्ट थी। कश्मीर के सोपोर के नरबाल गांव के रहने वाले लांस नायक गुलाम मोहम्मद खान की अल्फा कंपनी को यहां कब्जा करने का लक्ष्य मिला। वह एक तजुर्बेकार रॉकेट लॉन्चर थे। 6 जून 1999 को अल्फा कंपनी ने पाइंट 5203 को दुश्मन के कब्जे से छुड़ाने का काम मिला। योजना के मुताबिक 7 जून सुबह तड़के 4.30 बजे धावा बोलेने का समय निश्चित किया गया।

लांस नायक गुलाम मोहम्मद खान को कम्पनी के आगे आगे चलकर रॉकेट लॉन्चर से रॉकेट दागकर दुश्मन का ध्यान हटाने का काम मिला। रात रात में ये लोग 9 घंटे दुर्गम चढ़ाई वाले रास्ते से कुछ दूरी पर पहुंचे। इस दौरान आगे चल रहे गुलाम मोहम्मद की नजर दुश्मन पर पड़ी। 

पाकिस्तान के 20 सैनिक उनकी तरफ बढ़ रहे थे। उन्होंने रॉकेट दागने शुरू कर दिए और अपने दल को बचाया। रॉकेट हमले में तीन दुश्मन मारे गिराए। जब गुलाम मोहम्मद अपने रॉकेट को दोबारा अटैक के लिए तैयार कर रहे थे तभी दुश्मन की गोलियां उनके सीने में लगीं और वे वीरगति को प्राप्त हो गए। उनकी सूझबूझ और बहादुरी से सेना पाइंट 5203 जीत पाई। मरणोपरांत इनको वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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