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विशेष साक्षात्कार: 'ड्रोन और एआई नई दुनिया के दो नए हथियार, सीमाएं कम...संभावनाएं अनंत'; बोले-IIT जम्मू निदेशक

महेंद्र तिवारी अमर उजाला Published by: निकिता गुप्ता Updated Sun, 07 Dec 2025 12:42 PM IST
सार

प्रो. मनोज सिंह गाैड़ आईआईटी के संस्थापक निदेशक हैं। आईआईटी की उपलब्धियों पर चर्चा शुरू होते ही वे प्रख्यात अमेरिकी दार्शनिक राल्फ वाल्डो इमर्सन के चर्चित कथन- 'एक बलूत के फल से हजारों जंगल पैदा हो सकते हैं' का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि आईआईटी जम्मू अभी अपनी यात्रा के शुरुआती चरण में है। शोध, नवाचारों व सामुदायिक जुड़ाव में जो बीज बोए गए हैं वे पहले से ही फल देने के संकेत दे रहे हैं। अमर उजाला के महेंद्र तिवारी ने प्रो. मनोज से संस्थान की उपलब्धियों व भावी योजनाओं के साथ ड्रोन व एआई की चुनाैतियों और इसकी संभावनाओं पर विस्तार से बात की। प्रस्तुत हैं प्रो. मनोज से बातचीत के प्रमुख अंश

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Mahendra Tiwari oMaMahendra Tiwari of Amar Ujala had a brief conversation with Professor Manoj about IIT Jammu
प्रो. मनोज सिंह गाैड़ संस्थापक निदेशक, आईआईटी जम्मू - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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तकनीक आगे की राह दिखाती है तो कई बार लोगों की चिंता भी बढ़ा देती है। आज ड्रोन व एआई को लेकर तमाम संभावनाओं के बीच कई लोगों के मन में चिंता बन रही है। जम्मू-कश्मीर जैसे सीमावर्ती राज्यों में इसकी आवाज और भी मुखर है। अपनी स्थापना के दसवें वर्ष की यात्रा कर रहा आईआईटी जम्मू तकनीक के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम कर रहा है। मेडिकल, एआई व ड्रोन पर उसके काम सराहे जा रहे हैं।

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आईआईटी जम्मू की एक दशक की यात्रा कैसी रही?
बहुत अच्छी रही। वर्ष 2017 में इस संस्थान को ज्वाॅइन किया। शुरुआत में आईआईटी दिल्ली का सहयोग था। वहां की फैकल्टी यहां पढ़ाने आया करती थी। आते ही फैकल्टी की भर्ती शुरू की। तीन बीटेक प्रोग्राम में 83 स्टूडेंट्स हुआ करते थे। कैबिनेट ने नवंबर 2017 में इसके पहले फेज को मंजूरी दी थी। डीपीआर की स्वीकृति देते समय हमसे आशा की गई थी कि हम 2021 तक इसे पूरा करें। उम्मीद की गई थी कि इसमें 1260 स्टूडेंट्स, 93 फैकल्टी और 100 के करीब स्टाफ मेंबर हों। इस लक्ष्य को हम 2022 तक पूरा कर पाए। कोविड के दो लाॅकडाउन व अलग-अलग कारणों से इसमें देरी हुई। 

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जम्मू में आईआईटी लाने का मकसद और उसके लक्ष्य को कहां तक पा सके? 
पहली डीपीआर में मुझसे अपेक्षा की गई थी कि हम जो भी करें वह सार्थक और समाज के लिए हो। स्थानीय स्तर पर काम करने वाले संस्थान हमारे साथ हाथ मिलाकर आगे बढ़ सकें। काफी हद तक हम इसमें सफल रहे हैं। हम एसएमयूवीडीयू, क्लस्टर यूनिवर्सिटी और जम्मू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स से जुड़े हैं। हमने यहां के ईको सिस्टम के अनुरूप अपना एक सिस्टम विकसित कर उसे प्रभावी और मजबूत बनाया है।

वर्ष 2025 जम्मू-कश्मीर के लिए कई आपदाओं का वर्ष रहा। इसे किस रूप में देखते हैं?
बुनियादी विकास किए जाते हैं तो पहाड़ और जंगल पर असर होता है। आईआईटी जम्मू ने अपना संरचनात्मक ढांचा तैयार करते वक्त तय किया था कि हम पेड़ों-जंगलों को कम से कम नुकसान पहुंचाएंगे। हमने 40 हजार से अधिक पौधे लगाए हैं। इसी तरह पहाड़ों की स्लोप्स का इस्तेमाल किया है। पानी का दोहन कम करने के लिए बहुत सारे उपाय किए हैं। हिमालय यंग माउंटेन की श्रेणी में आता है। यदि हम ध्यान नहीं देंगे, सतर्क नहीं रहेंगे तो इसके खतरे हमें भूस्खलन के रूप में देखने को मिलेंगे जैसा कि हमने हाल ही में देखा भी है। 

मेडिकल डिवाइसेज में एमटेक शुरू, हेल्थ सेक्टर में आगे बड़ा काम दिखेगा 
प्रो. मनोज बताते हैं, अस्थमा ड्रग डिवाइस, मल्टी ड्रग इंजेक्शन जैसी चीजों पर हमारी बहुत सारी फैकल्टी काम कर रही है। हम कई संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इससे विभिन्न क्षेत्रों में एक साथ काम करने की राह खुली। हमारे बीएसबीई ग्रुप (बीएसबीई : ए हब फॉर बाॅयोइंजीनियरिंग इनोवेशन) ने एक प्रोजेक्ट जमा किया था। इसे केंद्र सरकार से फंड मिला। इस फंड पर मेडिकल डिवाइसेज पर एमटेक प्रोग्राम शुरू करने की अनुमति मिली। इसी साल इसे शुरू किया गया है। पूरे देश से बच्चे इसे पढ़ने आए हैं। इससे कई सारी डिवाइसेज पर काम होगा।

हम ड्रोन की मैन्युफैक्चरिंग लैब नहीं बना सकते, तकनीक विकसित कर सकते हैं और वो हम कर रहे 
ऑपरेशन सिंदूर के दाैरान ड्रोन के हमलों को लोगों ने अपनी आंखों से देखा। हथियार व नशे से जुड़ी वस्तुओं की तस्करी में ड्रोन का इस्तेमाल लोग देख-सुन रहे हैं। आईआईटी इस चुनौती को कैसे देख रही है और क्या कर रही है? 

हम ड्रोन कंपोनेंट, असेंबलिंग, कंट्रोल और ऑपरेशन पर एक साथ काम कर रहे हैं। इसमें ट्रेनिंग और एल्गोरिदम दोनों शामिल है। ट्रेनिंग के लिए हमारे पास आधारभूत ढांचा है। टेक्नोलाॅजी के लिए हम सिविल और डिफेंस सेक्टर से संपर्क करते हैं। हम मैन्युफैक्चरिंग लैब नहीं बना सकते हैं लेकिन इंडस्ट्री के लिए टेक्नोलाॅजी विकसित कर सकते हैं और यह काम हम कर रहे हैं।

आज दुश्मन से लड़ाई में पारंपरिक तरीकों से ज्यादा तकनीक पर जोर बढ़ रहा है। आईआईटी इसमें कैसे रोल प्ले कर रहा है?सेना के साथ हम कई तरह से काम करते हैं। एक तो हम खुद उनकी समस्या को समझते हैं और उन्हें समाधान देते हैं। इसके अलावा आर्मी डिजाइन ब्यूरो की तरह से काम होता है। इसमें और भी संस्थान आते हैं। इसमें सभी समस्याओं पर चर्चा होती है और उसके साॅल्यूशन पर काम होता है। तीसरा-हाल ही में मानेकशाॅ सेंटर शुरू हुआ है। इसमें सभी आईआईटी, एनआईटी मिलकर काम कर रहे हैं। आईआईटी जम्मू भी इससे जुड़ेगा।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर लोगों में कई भ्रम है। इसकी सीमाओं, चुनौतियों और अवसरों के बारे में बताएं।
एआई एक उभरती हुई टेक्नोलॉजी है। इधर एक बड़ा भ्रम बाजार में फैल रहा है कि इससे नौकरियां चली जाएंगी। हां, यह जरूर है कि कुछ सेक्टरों में जॉब का स्वरूप जरूर बदल रहा है। मेरा मानना है कि यह कुछ मौजूदा नौकरियों को प्रभावित कर सकता है लेकिन यह बहुत सारी नई नौकरियां भी बनाएगा। भारत के पास विशाल युवा आबादी और विशाल डेटा है। यह सब हमें स्वदेशी एआई मॉडल और टेक्नोलॉजी बनाने का मौका देता है। इसी उद्देश्य से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाए गए हैं जो सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से मॉनिटर होते हैं। हमें ये देखना होगा कि देश की समृद्धि में ये टेक्नोलाॅजी कैसे मददगार होगी।
 

  • एआई साॅल्यूशन की दिशा में काम चल रहा है। कई इंडस्ट्री एक्सपर्ट हमारे विशेषज्ञों के साथ काम कर रहे हैं। जहां-जहां एआई की जरूरत है, जहां-जहां विशेषज्ञता की जरूरत है, हम उस सभी पर काम करेंगे।

आईआईटी ने आम लोगों को एआई से जोड़ने के लिए क्या पहल की है?
हमने कई सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, एग्जीक्यूटिव प्रोग्राम शुरू किए हैं। आने वाले समय में एआई और डेटा साइंस में और भी कोर्स शुरू किए जाएंगे। 

आईआईटी में आने वाले बच्चों को किस तरह के अवसर मिल रहे हैं? 
  • हर साल आईआईटी गांधीनगर और आईआईटी मुंबई के सहयोग से मिशन फैक्टरी का आयोजन करते हैं। इसमें 10 टीमें हिस्सा लेती हैं। छह सप्ताह तक तकनीक विकास पर काम होता है जिसे हम पेटेंट कराते हैं। ज्यूरी मेंबर यहीं से पेटेंट उठाते हैं।
  • एक बड़ी टीम आईटी मद्रास के साथ मिलकर ड्रोन टेक्नोलाॅजी पर काम कर रही है।
  •  कूलिंग इनोवेशन लैब पर काम हो रहा है। इसमें एनर्जी एफिशिएंट के लिए वर्ल्ड बैंक से फंड मिला है। हमने ओपन टेक्नोलाॅजी लैब तैयार की है। इसी तरह बैटरी ईवी टेक्नोलाॅजी में हमने ग्रुप तैयार किया है। इसमें नई बैटरी टेक्नोलाॅजी डवलप की जाएगी जो हमारे क्रेडिट सिस्टम और ईवी को मदद करेगी। हम इस पूरी सप्लाई चेन पर काम कर रहे हैं।
  • न्यूक्लियर टेक्नोलाॅजी पर भी काम हो रहा है। इंडस्ट्री, आईआईटी जम्मू और मद्रास मिलकर इस दिशा में काम कर रहे हैं। इसी साल बजट में स्माॅल माॅड्यूल रिएक्टर के लिए प्रावधान किया गया है।
  • टिंकरिंग लैब एक सहयोगात्मक शिक्षण स्थान है। यह लैब छात्रों को अपने विचारों को वास्तविकता में बदलने के लिए आवश्यक उपकरण और संसाधन प्रदान करता है, जिसमें प्रोटोटाइप उपकरण, रोबोटिक्स और एआई किट और कोडिंग प्लेटफॉर्म शामिल हैं।

आईआईटी में सप्तऋषि

  • संस्थान में दो बड़ी सुविधाएं हैं। पुराने कैंपस बलोरा में संस्थान की सेंट्रल इंस्ट्रूमेंटेशन फैसिलिटी-सप्तऋषि है। यह एक बहु-विषयक अनुसंधान केंद्र है जो अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है। इसका उद्देश्य शोधकर्ताओं को उन्नत अनुसंधान करने में मदद करना और उद्योगों को भी सेवा देना है। 
  •  डेटा सेंटर भी 2021-22 में शुरू हो गया। 
  • आईटी जम्मू को दो साल पहले शिक्षा मंत्रालय के एक फ्लैगशिप इनिशिएटिव एआई-सीओई में जिम्मेदारी दी गई। इसमें हेल्थ, सस्टेनेबल सिटीज और एग्रीकल्चर पर फोकस है। हमें इसे आर्गनाइज करने की जिमेदारी दी गई। अगले चार साल में इसे 400-450 करोड़ रुपये मिलेंगे।

 

कैंपस प्लेसमेंट को लेकर क्या रणनीति है?
कोविड के बाद शुरुआती चुनौतियां थीं। 2022-23 तक हमारा प्लेसमेंट काफी अच्छा रहा। अब 150 से अधिक कंपनियां हमारे कैंपस का दौरा कर रही हैं। प्लेसमेंट को हमने कॅरिअर डवलपमेंट में बदल दिया है।

जम्मू काे लेकर बदल रही धारणा
प्रो. मनोज बताते हैं कि जम्मू की सुरक्षा को लेकर यहां से बाहर अलग-अलग धारणाएं है। 2019 के बाद काफी कुछ बदला है। लोग जम्मू आने लगे हैं। कनेक्टिविटी बढ़ी है और माहौल सुरक्षित है। नई फैकल्टी और स्टूडेंट्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। हालांकि अब भी लोगों का नजरिया बदलने पर काम करना होगा। हमें सामूहिक रूप से यह संदेश देना होगा कि जम्मू शांत, सुरक्षित और तेजी से विकसित होता क्षेत्र है।

अगले पांच वर्ष में आईआईटी काे कहां देखते हैं?
हमें छात्र संख्या दोगुनी कर तीन हजार तक पहुंचाना है। दूसरे फेज को पूरा करना भी इसी रोडमैप का हिस्सा है। कई प्रोग्राम शुरू किए जाने की योजना है। उद्योग के साथ मिलकर काम करने की गति को बढ़ाना और स्टार्टअप इनोवेशन को बढ़ाना भी हमारे लक्ष्य में शामिल है। कौशल विकास पर काम करना है। एआई का दौर है, इसमें री-स्किलिंग जरूरी होगी, कम से कम दो से तीन बार। फ्यूचर ब्राइट है और फ्यूचर हमारा है। 

संस्थान के बारे में

  • 06 अगस्त 2016 को आईआईटी जम्मू की स्थापना हुई। 1.35 लाख वर्गमीटर का इंफ्रास्ट्रक्चर है। 100 लैब हैं। करीब 450 शोध छात्र हैं। 900 से ज्यादा बीटेक स्टूडेंट हैं।
  • एकेडमिक ब्लाॅक का औपचारिक उद्घाटन अक्तूबर 2021 में गृहमंत्री अमित शाह ने किया। फरवरी 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया।- पिछले साल से वर्किंग प्रोफेशनल्स के लिए कई एग्जीक्यूटिव कोर्स शुरू किए गए हैं।

अनुसंधान और तकनीकी उपलब्धियां 

  • अंडरवाटर वायरलेस ऑप्टिकल कम्युनिकेशन सिस्टम: नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण विकास जिससे तटीय सुरक्षा मजबूत होगी। 

 

  • हाइड्रोजन से टर्बाइन: देश में पहली बार हाइड्रोजन गैस से टर्बाइन चलाकर हरित ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इससे शून्य कार्बन उत्सर्जन होता है। 

 

  • माइक्रोगैस टर्बाइन कम्बस्टर: बोइंग बिल्ड 2.0 इनोवेशन चैलेंज में विजेता बने। इससे गहन तकनीकी स्टार्टअप की स्थापना के लिए आधार बना। 

 

  • कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी: प्रतिष्ठित हैकथॉन में प्रथम रनर-अप रहे। 
  • इनोवेशन के लिए डीआरडीओ-डेयर टू ड्रीम इनोवेशन अवाॅर्ड मिला। 

शैक्षणिक और संस्थागत उपलब्धियां 
• एनआईआरएफ रैंकिंग: वर्ष 2024 में इंजीनियरिंग श्रेणी में 62वां स्थान और 2023 में 67वां स्थान हासिल किया है। 

प्लेसमेंट और छात्रवृत्ति 
• उच्चतम पैकेज: 2023-24 में 53 लाख प्रति वर्ष रहा। 
• औसत पैकेज: 2023-24 में 15.5 लाख रुपये प्रति वर्ष रहा। 
• प्लेसमेंट के लिए अमेजन, एलएंडटी, सैमसंग सेमीकंडक्टर्स, और इंफोसिस जैसी प्रमुख कंपनियां आती हैं।

परिचय 
प्रो. मनोज गाैड़ उत्तर प्रदेश के बदायूं से निकले। राजस्थान के जोधपुर में पले-बढ़े। आज जम्मू-कश्मीर की तकनीकी तरक्की के सारथी बनकर आईआईटी जम्मू को एक नई पहचान देने में जुटे हैं। जब वे कहते हैं कि मैं अकेला यहां आया था तो उनकी आंखों में एक चमक दिखाई देती है। वे गर्व से सिर ऊंचा करते हैं। एक गहरी सांस लेते हैं। कुछ मिनट संस्थान के चारों ओर नजर दौड़ाते हैं और फिर अपनी यात्रा के बारे में बताने लगते हैं। कहते हैं कि एक वक्त था कि यहां कोई नहीं आना चाहता था, क्योंकि यह प्रदेश आतंकी साए में था। समय बदला, सोच बदली और लोगों का नजरिया भी। आज हम संख्या बल में एक लक्ष्य पूरा कर चुके हैं। दूसरे लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं।

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