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Jammu News: पुलिस की जांच में खामियों के चलते आरोपी बरी
संवाद न्यूज एजेंसी, जम्मू
Updated Fri, 05 Dec 2025 02:41 AM IST
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गलतियों ने केस को किया कमजोर, संदेह का लाभ आरोपी को : जिला अदालत
सांबा। एडिशनल सेशंस जज सांबा की अदालत ने साल 2016 के चर्चित एनडीपीएस केस में आरोपी फारूक अहमद निवासी पल्थ सांबा को एनडीपीएस एक्ट के आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने अपने विस्तृत 34-पृष्ठीय निर्णय में स्पष्ट कहा कि पुलिस जांच में गंभीर प्रक्रियागत त्रुटियां पाई गईं जिनके कारण अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में पूरी तरह विफल रहा।
यह था मामला
16 दिसंबर 2016 को सांबा के मानसर मोड़ पर नाका ड्यूटी के दौरान पुलिस ने एक मोटरसाइकिल सवार युवक को रोककर तलाशी लेने पर उससे 10 ग्राम हेरोइन बरामद होने का दावा किया था। जांच पूरी होने पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत कोर्ट में चालान पेश किया।
अदालत ने इन खामियों पर खड़े किए सवाल
फैसले के अनुसार पुलिस जांच में कई गंभीर चूकें और कानूनन आवश्यक प्रक्रियाओं का उल्लंघन पाया गया
। एफएसएल फॉर्म मौके पर नहीं भरा गया जो सील और सैंपल की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है। तलाशी के दौरान धारा 50 एनडीपीएस एक्ट का पालन नहीं किया गया यानी आरोपी को मजिस्ट्रेट या गजटेड अधिकारी के सामने तलाशी की विकल्पीय सूचना नहीं दी गई। सीलिंग और नमूना लेने की प्रक्रिया मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में नहीं हुई। मौके पर कोई स्वतंत्र (निर्दोष) गवाह शामिल नहीं किया गया, जबकि आसपास दुकानें, बार और लोगों की आवाजाही मौजूद थी। तलाशी करने वाले पुलिसकर्मी की स्वयं की तलाशी नहीं ली गई जिससे प्रक्रिया संदिग्ध हो गई। एफएसएल को नमूना भेजने में 72 घंटे की देरी जिसका कोई स्पष्ट कारण रिकॉर्ड पर नहीं दिया गया। कुछ गवाहों के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते जिसके चलते कोर्ट ने पुलिस कथन को अविश्वसनीय माना।
अदालत का निष्कर्ष
जज अरविंद शर्मा ने कहा कि एनडीपीएस एक्ट के मामलों में प्रक्रिया अत्यंत कठोर है और किसी भी चूक का लाभ आरोपी को मिलता है। अदालत ने कहा कि जब जांच कानून की अनिवार्य शर्तों का पालन किए बिना की जाए तो ऐसे में दोषपूर्ण जांच पर आधारित दोषसिद्धि न्यायसंगत नहीं हो सकती।
अंतिम आदेश
आरोपी फारूक अहमद को सभी आरोपों से बरी किया, जमानती और व्यक्तिगत बांड समाप्त किए और जब्तशुदा मादक पदार्थ अपील अवधि के बाद नष्ट करने का आदेश दिया गया।
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यह था मामला
16 दिसंबर 2016 को सांबा के मानसर मोड़ पर नाका ड्यूटी के दौरान पुलिस ने एक मोटरसाइकिल सवार युवक को रोककर तलाशी लेने पर उससे 10 ग्राम हेरोइन बरामद होने का दावा किया था। जांच पूरी होने पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत कोर्ट में चालान पेश किया।
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अदालत ने इन खामियों पर खड़े किए सवाल
फैसले के अनुसार पुलिस जांच में कई गंभीर चूकें और कानूनन आवश्यक प्रक्रियाओं का उल्लंघन पाया गया
। एफएसएल फॉर्म मौके पर नहीं भरा गया जो सील और सैंपल की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य है। तलाशी के दौरान धारा 50 एनडीपीएस एक्ट का पालन नहीं किया गया यानी आरोपी को मजिस्ट्रेट या गजटेड अधिकारी के सामने तलाशी की विकल्पीय सूचना नहीं दी गई। सीलिंग और नमूना लेने की प्रक्रिया मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में नहीं हुई। मौके पर कोई स्वतंत्र (निर्दोष) गवाह शामिल नहीं किया गया, जबकि आसपास दुकानें, बार और लोगों की आवाजाही मौजूद थी। तलाशी करने वाले पुलिसकर्मी की स्वयं की तलाशी नहीं ली गई जिससे प्रक्रिया संदिग्ध हो गई। एफएसएल को नमूना भेजने में 72 घंटे की देरी जिसका कोई स्पष्ट कारण रिकॉर्ड पर नहीं दिया गया। कुछ गवाहों के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते जिसके चलते कोर्ट ने पुलिस कथन को अविश्वसनीय माना।
अदालत का निष्कर्ष
जज अरविंद शर्मा ने कहा कि एनडीपीएस एक्ट के मामलों में प्रक्रिया अत्यंत कठोर है और किसी भी चूक का लाभ आरोपी को मिलता है। अदालत ने कहा कि जब जांच कानून की अनिवार्य शर्तों का पालन किए बिना की जाए तो ऐसे में दोषपूर्ण जांच पर आधारित दोषसिद्धि न्यायसंगत नहीं हो सकती।
अंतिम आदेश
आरोपी फारूक अहमद को सभी आरोपों से बरी किया, जमानती और व्यक्तिगत बांड समाप्त किए और जब्तशुदा मादक पदार्थ अपील अवधि के बाद नष्ट करने का आदेश दिया गया।