सफेदपोश आतंकवाद: कोई बीटेक... कभी प्रोफेसर और अब डॉक्टर, पीढ़ीगत दहशतगर्दी की नई पौध है यह पढ़ी-लिखी जमात
दिल्ली में लालकिले के सामने हुए विस्फोट में भी प्रमुख रूप से कश्मीर के एक डॉक्टर का नाम सामने आ रहा है और अब तक 12 लोगों की जान लेने वाले धमाके में कानपुर की एक प्रोफेसर डॉ. शाहीन सिद्दीकी से कुछ कड़ियां जोड़ी जा रही हैं।
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व्हाइट कॉलर टेरॉरिज्म यानी सफेदपोश आतंकवाद सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक नई और विकट चुनौती बनकर सामने है। दिल्ली में लालकिले के सामने हुए विस्फोट में भी प्रमुख रूप से कश्मीर के एक डॉक्टर का नाम सामने आ रहा है और अब तक 12 लोगों की जान लेने वाले धमाके में कानपुर की एक प्रोफेसर डॉ. शाहीन सिद्दीकी से कुछ कड़ियां जोड़ी जा रही हैं।
जो आतंकी संगठन कश्मीर में पहले कम पढ़े-लिखे, अनपढ़ या बेरोजगार युवाओं को निशाना बना रहे थे अब उनकी पाठशाला में पढ़े-लिखे लोगों की पौझ तैयार की जा रही है। देश भर में पिछले कुछ बरसों में हुई आतंकी घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि दहशतगर्दी में शामिल लोग अब आतंकी संगठनों के लिए काम कर रहे हैं। या कहें कि आतंकी इन्हे गुट में शामिल कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि पहले पढ़े लिखे युवा आतंकी संगठनों में शामिल नहीं होते थे लेकिन अब इसका दायरा बढ़ गया है। अब डॉक्टर की पढ़ाई करने वाले और डॉक्टर बन चुके युवाओं को दहशतगर्द अपने ग्रुप में शामिल कर रहे हैं। व्हाइट कॉलर टेटर मॉड्यूल इसका प्रमाण है। सुरक्षा एजेंसियों के सामने एक नई तरह की चुनौती है। धर्म या कश्मीर की आजादी के नाम पर पढ़े-लिखे युवाओं को पहले भी आतंकी संगठन बरगलाते रहे हैं।
बीते कुछ वर्षों में सुरक्षा एजेंसियों ने इस पर काफी सख्ती की थी। अब फिर से इस तरफ चलन बढ़ने को सुरक्षा एजेंसियां बड़ी खतरे की घंटी मान रही हैं। हिजबुल के साथ ही लश्कर, जैश और अंसार गजवा-तुल-हिंद ने ऐसे युवाओं को टारगेट करना शुरू किया है। स्नातक, परास्नातक, व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने वाले युवा के बाद अब डॉक्टर भी आतंक का दामन थाम रहे हैं।
पूर्व डीजीपी एसपी वैद कहते हैं कि कश्मीर में धर्म के नाम पर युवाओं को बरगलाने पर 2019 के बाद से सुरक्षा एजेंसियों काफी हद तक सख्ती की थी। सोशल मीडिया सहित अन्य प्लेटफार्म पर सख्ती व निगरानी बढ़ाई गई थी। आतंकी संगठन नए-नए हथकंडे अपनाते हैं जिसमें वह कभी कामयाब भी हो जाते हैं। एक सिलसिला...
- बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में भड़की हिंसा से ये आतंकी उभरे और अपनी पढ़ाई छोड़कर आतंकी संगठनों का दामन थामा
जाकिर राशिद भट्ट उर्फ मूसा
बीटेक की पढ़ाई की थी। गजवत उल हिंद का चीफ था। ए डबल प्लस श्रेणी का आतंकी था।
खुर्शीद अहमद मलिक
इंजीनियरिंग स्नातक से आतंकवादी बना था। पुलवामा का रहने वाला था। श्री माता वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी कटड़ा से बीटेक किया था। अगस्त 2018 में मारा गया था।
मोहम्मद रफी भट
मोहम्मद रफी भट कश्मीर विश्वविद्यालय का असिस्टेंट प्रोफेसर था। फिर आतंकी बना। मई 2018 में शोपियां जिले में हुई मुठभेड़ में मारा गया था।
जुबैर अहमद वानी
एमफिल स्कॉलर था। दक्षिणी कश्मीर के दहरुना गांव का रहने वाला था। मुठभेड़ में मारा गया था। 2021 में मारा गया।
मन्नान बशीर वानी
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का रिसर्च स्कॉलर था। बुरहान वानी के मारे जाने के बाद वह आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़ा और कमांडर बना था। 2018 में मारा गया।
रियाज नायकू
गतिण का शिक्षक था। बुरहान वानी और आतंकी कमांडर सद्दाम की मौत के बाद रियाज एक चर्चित आतंकवादी बन गया। 2020 में मुठभेड़ में मारा गया।
जुनैद अशरफ सेहरई
एमबीए किया था। इसके बाद हिजबुल के साथ जुड़ गया था। वो तहरीक-ए-हुर्रियत के चेयरमैन मोहम्मद अशरफ सेहरई का बेटा था। 2020 में मारा गया।
दक्षिण कश्मीर कट्टरपंथता का गढ़
पढ़े लिखे लोग पहले भी आतंकवादी बनते थे और आज भी बन रहे हैं। अमेरिका में 9/11 का हमला करने वाले आतंकी पढ़े लिखे थे। डॉक्टरों के आतंकी माड्यूल में पकड़े गए चार डॉक्टर दक्षिण कश्मीर के रहने वाले हैं। दक्षिण कश्मीर जमात-ए-इस्लामी का गढ़ है। इस संगठन की विचारधारा देश विरोधी है। पाकिस्तान ने 1947 के बाद जम्मू-कश्मीर में पीढ़ीगत कट्टरपंथता शुरू की थी। यह पिछले सात-आठ दशकों तक चलती रही। 1990 में पीढ़ीगत कट्टरपंथता चरम पर थी। पिछले कुछ साल से विकास कार्य और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई से इसमें कमी आई। पहलगाम हमले के बाद कश्मीरी आतंकवाद और पाकिस्तान के खिलाफ सड़कों पर उतरे तो इसमें कमी आई लेकिन पीढ़ीगत कट्टरपंथता जारी रही। आईएसएआई और जमात-ए-इस्लामी ने इसी का लाभ उठाते हुए कट्टरपंथता का गढ़ रहे दक्षिण कश्मीर से ऐसे लोगों को चुना जिनका पहले का कोई आतंकी रिकॉर्ड न हो जिसका हिस्सा यह डॉक्टर बने।
-बिग्रेडियर विजय सागर, सेवानिवृत्त