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Jharkhand: थैला बना कफन और कंधा बना एम्बुलेंस, चार साल के मासूम की मौत, पिता थैले में शव लेकर गया

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, रांची Published by: आशुतोष प्रताप सिंह Updated Sat, 20 Dec 2025 03:43 PM IST
सार

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा सदर अस्पताल में स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही का गंभीर मामला सामने आया है। इलाज के दौरान चार वर्षीय बच्चे की मौत के बाद अस्पताल प्रशासन द्वारा एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं कराई गई।

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बेटे की लाश थैले में उठाकर गांव लौटा पिता - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। राज्य के कई सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में न तो पर्याप्त डॉक्टर उपलब्ध हैं, न ही जरूरी दवाइयां और एम्बुलेंस जैसी बुनियादी सुविधाएं। कागजों में योजनाएं भले ही मजबूत नजर आती हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही है। ताजा मामला पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा सदर अस्पताल से सामने आया है, जहां मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटना घटी। बीती रात इलाज के दौरान एक चार वर्षीय बच्चे की मौत हो गई। इसके बाद अस्पताल प्रशासन की गंभीर लापरवाही के कारण पिता को अपने बेटे का शव थैले में रखकर गांव तक ले जाना पड़ा।

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यह घटना नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत बालजोड़ गांव की है। मृत बच्चे के पिता चतोंबा ने बताया कि बेटे की मौत के बाद उन्होंने अस्पताल प्रशासन से शव को सम्मानपूर्वक गांव ले जाने के लिए एम्बुलेंस उपलब्ध कराने की मांग की थी। उन्होंने घंटों इंतजार किया, लेकिन एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं हो सकी। गरीबी और मजबूरी के चलते पीड़ित पिता निजी वाहन किराए पर लेने की स्थिति में भी नहीं थे। अंततः बेबस पिता ने अपने चार साल के बेटे के शव को एक थैले में डालकर कंधे पर टांगा और पैदल ही गांव के लिए रवाना हो गए। यह मार्मिक दृश्य झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की संवेदनहीनता को उजागर करता है।

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मामले की जानकारी मिलते ही स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने इसे घोर लापरवाही करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर प्रतिक्रिया देते हुए सवाल उठाया कि पीड़ित परिवार को एम्बुलेंस क्यों नहीं उपलब्ध कराई गई। साथ ही स्वास्थ्य मंत्री ने सिविल सर्जन से पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।यह घटना सरकार और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है। साथ ही यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सरकारी योजनाएं वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुंच पा रही हैं या फिर केवल कागजों तक ही सीमित रह गई हैं।

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