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झारखंडः 'नसबंदी से कन्नी काटते मर्द'

नीरज सिन्हा/ बीबीसी, राँची Updated Mon, 25 Jan 2016 05:24 PM IST
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Men behind in family planning operations from Women in Jharkhand
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झारखंड में सरकार जनसंख्या में बढ़ोतरी को रोकने के लिए नसबंदी को बढ़ावा दे रही है, इसमें भी महिलाओं ने मर्दों को पछाड़ दिया है। यदि आप झारखंड के जिला मुख्यालय या कस्बाई इलाकों के स्वास्थ्य केंद्रों, सरकारी दफ्तरों के आसपास से गुजरें, तो दीवारों पर या होर्डिंग्स में ‘चीरा न कोई टांका, पुरूष नसबंदी है आसान’जैसे प्रचार दिखाई देते हैं। लेकिन हकीकत इससे इतर हैं।

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तमाम कवायद के बाद भी मर्द नसबंदी (परिवार नियोजन) कराने से कन्नी काट जाते हैं। वहीं महिलाओं की संख्या मर्दों की तुलना में कहीं अधिक है। जबकि नसबंदी कराने के लिए सरकार ने प्रोत्साहन राशि तय कर रखी है और पुरूषों को मिलने वाली राशि महिलाओं से ज्यादा है। नसबंदी कराने पर महिलाओं को सरकार 1400 और पुरूषों को 2000 रुपए देती है। गांव की स्वास्थ्य मित्र अगर उन्हें नसबंदी के लिए सहमत कराकर अस्पताल ले जाती हैं, तो उन्हें तीन सौ रुपए मिलते हैं।
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मर्द अगर खुद अस्पताल पहुंचें, तो ये 300 की राशि भी उन्हें ही मिलती है। रांची जिले के एक गांव की स्वास्थ्य मित्र सिबन उरांव बताती हैं, "गांवों में मर्दों के बीच आम धारणा है कि इससे वे कमजोर पड़ जाएंगे। फिर घर की महिलाएं भी मना करती हैं। उन्हें यही लगता है कि मर्द अगर ऑपरेशन कराए, तो खेती-बाड़ी और घर का काम कौन संभालेगा।

छोटा परिवार हो, इस पर बड़े-बुजुर्गों को भी आपत्ति होती है।"सिबन के मुताबिक मर्द को नसबंदी के लिए सहमत कराना आसान नहीं होता। पहले तो वे बात करने से संकोच करेंगे। खूब समझाने-बताने पर कहेंगे कि पत्नी से बात कर लेता हूं। इसके बाद कन्नी काट जाएंगे।

'अब मर्द परिवार नियोजन कराएंगे तो कौन सब संभालेगा'

Men behind in family planning operations from Women in Jharkhand

रांची के एक गांव पाहन टोली के युवा बिनू मुंडा के तीन बच्चे हैं। दो बच्चे स्कूल जाते हैं और एक गोद में है। बिनू और उनकी पत्नी पिंकी मुंडा ने इंटर तक पढ़ाई की है। जब उनसे परिवार नियोजन की इच्छा पर पूछा, तो बिनू बोले, "पत्नी ही कराएगी।" वे खेतीबाड़ी के साथ शूकर पालन करते हैं। उनकी पत्नी पिंकी मुंडा भी पति की इच्छा पर हामी भरती हैं।

वे कहती हैं, "घर गृहस्थी की उलझन रहती है। बाल-बच्चा भी देखना पड़ता है। अब मर्द परिवार नियोजन कराएंगे, तो कौन सब कुछ संभालेगा।" राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार झारखंड के आंकड़ बताते हैं कि 2015-16 में दिसंबर महीने तक महज 2048 मर्दों ने नसबंदी कराई।पिछले साल 2014-2015 में 3845 पुरुषों ने नसबंदी कराई थी, जबकि परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत बीस हजार मर्दों के नसबंदी कराने का लक्ष्य रखा गया था, यानी स्वास्थ्य विभाग को लक्ष्य के मुताबिक 19 फीसदी तक ही सफलता मिली।

उसी साल नसबंदी कराने वाली महिलाओं की संख्या एक लाख 4770 तक है। इससे पहले साल 2012-13 में भी 8797 मर्दों ने नसबंदी कराई। तब मर्दों के नसबंदी को लेकर सरकारी लक्ष्य 35 हजार रखा गया था। जबकि उसी साल 1।23 लाख महिलाओं ने बंध्याकरण का ऑपरेशन कराया था। जानकारों के मुताबिक इस कायक्रम के प्रति मर्दों की खासी दिलचस्पी नहीं देखने के बाद से इसके लक्ष्य भी कम होते गए। अब ये लक्ष्य पंद्रह हजार पर आ टिका है।

'जनाना का बंध्याकरण ठीक है'

Men behind in family planning operations from Women in Jharkhand

राज्य में गढ़वा, हजारीबाग, कोडरमा साहेबगंज, जामताड़ा, पूर्वी सिंहभूम, चाईबासा, रामगढ़, देवघर जैसे जिलों में नसबंदी कराने वाले मर्दों की संख्या बेहद कम रही है। रांची के हरचंडा गांव के अस्पताल में तैनात चिकित्सक डॉ अर्चना शर्मा बताती हैं, "यह मानसिकता सालों से कायम है कि परिवार नियोजन महिलाओं के हिस्से की चीज है। और गांवों में तो कई किस्म की भ्रांतियां भी हैं।

पुरूषों को कई दफा समझाने-बताने के बाद भी उनके मन में रहता है कि इस ऑपरेशन से वे कमजोर हो जाएंगे, जबकि एसा एकदम नहीं हैं।" पेरतोल गांव के मंगरू मुंडा देहाड़ी मजदूर हैं। उनके तीन बच्चे हैं।

मर्दों की नसबंदी के बारे में पूछने पर झेंप जाते हैं। पत्नी विनी मुंडा गंवई बताती हैं, "अब गांव की जनाना जैसा कहेंगी।" वहीं खूंटी के एक सुदूर गांव के युवक चेरो कच्छप पहले इस मामले पर बात करने को तैयार नहीं होते, ज्यारेदा कुदने पर इतना भर कहते है, "मर्दों को तो घर से बाहर जाना पड़ता है और वे भारी काम भी करते हैं। इसलिए जनाना का बंध्याकरण ठीक है।"

'महिलाओं का बंध्याकरण सुरक्षित नहीं,मर्दों की कौन कहे'

Men behind in family planning operations from Women in Jharkhand

कस्बाई इलाके की पत्रकारिता और सामाजिक गतिविधियों से जुड़े संजय श्रीवास्तव दो टूक कहते हैं, "इस कार्यक्रम के प्रति सरकारी महकमे को गंभीर होने की जरूरत है। राज्य में अब भी लगभग 23 फीसदी लोग नहीं जानते कि परिवार नियोजन क्या होता है।"

वो कहते हैं, "करोड़ों के खर्च के बाद भी कस्बाई इलाकों में अक्सर बंध्याकरण ऑपरेशन में लापरवाही और सुविधा नहीं मिलने की शिकायतें मिलती रहती हैं। इससे भी लोग सहमे होते हैं। हालांकि मर्दों के नसबंदी के मामले में कमोबेश शहर की भी यही स्थिति है।" राज्य के स्वास्थ्य निदेशक प्रवीण चंद्रा कुछ इस तरह बचाव करते हैं, "पुरूषों के नसबंदी को लेकर जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, उसे आगे बढ़ाने के प्रयास जारी हैं।

समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए जाते हैं। मर्द परिवार नियोजन से जुड़ें, इस पर केंद्र सरकार भी दिशा निर्देश जारी करती रही है।" नसबंदी के सवाल पर झारखंड पुलिस के एक जवान उमेश महतो कहते हैं- "यहां तो महिलाओं का बंध्याकरण सुरक्षित नहीं है, मर्दों की कौन कहे।"28 दिसंबर को उनकी पत्नी ने राजधानी रांची के सदर अस्पताल में बंध्याकरण का ऑपरेशन कराया था। दो हफ्ते बाद जब वो टांका कटाने और कमजोरी बताने अस्पताल गईं, तो उन्हें प्रेग्नेंसी की जांच कराने को कहा गया। जांच के क्रम में पता चला कि वे गर्भवती हैं। उमेश महतो ने अस्पताल के सिविल सर्जन से इस बाबत शिकायत की है। फिलहाल इस मामले की जांच के लिए एक समिति बनाई गई है।

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