Delhi: सेवानिवृत्त अभियोजकों की संविदा नियुक्ति पर आपत्ति, अधिवक्ता ने रखी भर्ती नोटिस वापस लेने की मांग
Delhi: एडवोकेट विकास वर्मा ने दिल्ली सरकार की उस अधिसूचना को चुनौती दी है, जिसमें सेवानिवृत्त अभियोजकों की संविदात्मक भर्ती का प्रावधान है। उन्होंने इसे असंवैधानिक व भेदभावपूर्ण बताया और यूपीएससी के जरिए ही पारदर्शी भर्ती की मांग की।

विस्तार
Delhi: शुक्रवार को एक अधिवक्ता ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (गृह), संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के सचिव और अभियोजन निदेशक सहित प्रमुख सरकारी अधिकारियों को एक औपचारिक ज्ञापन प्रस्तुत किया है। इस ज्ञापन में लोक अभियोजकों की भर्ती के लिए हाल ही में जारी अधिसूचना पर कड़ी आपत्ति जताई गई है। ज्ञापन अधिवक्ता विकास वर्मा ने दिया है।

अधिसूचना दिल्ली सरकार के अभियोजन निदेशालय (GNCTD) ने जारी की है, जिसमें संविदा पर सेवानिवृत्त अभियोजकों की भर्ती के लिए आवेदन मांगे गए हैं। भर्ती का नोटिस प्रिंट मीडिया व निदेशालय की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया। ज्ञापन में इस अधिसूचना को असंवैधानिक, मनमाना और युवा कानूनी पेशेवरों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण बताया है।
ज्ञापन में तर्क दिया गया कि यह कदम यूपीएससी या अन्य वैधानिक निकायों के माध्यम से स्थापित भर्ती प्रक्रिया को दरकिनार कर सेवानिवृत्त अधिकारियों के लिए बैकडोर प्रवेश खोलता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का दिया हवाला
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम उमादेवी (2006) और रेनू बनाम डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज, तिस हजारी (2014) का हवाला दिया, जो सार्वजनिक पदों पर पारदर्शी, प्रतिस्पर्धी भर्ती की अनिवार्यता पर जोर देते हैं। वर्मा ने कहा कि विज्ञापित पद स्वीकृत संख्या से अधिक हैं, जैसा कि कोर्ट ऑन इट्स ओन मोशन बनाम स्टेट (NCT ऑफ दिल्ली) में जुलाई 2025 को दिल्ली सरकार के हलफनामे में बताया गया।
वकील ने आरोप लगाया कि अधिसूचना दुर्भावनापूर्ण इरादे से जारी की गई थी, जिसमें सेवानिवृत्त लोगों के एक चुनिंदा समूह को तरजीह दी गई और हजारों योग्य युवा अधिवक्ताओं को दरकिनार कर दिया गया।
अधिसूचना को आरक्षण नीतियों और न्यायिक आदेशों की अवहेलना बताया
वर्मा ने जोर देकर कहा कि भर्ती प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 19(1)(g) का उल्लंघन करती है। उन्होंने तर्क दिया कि इस अधिसूचना में पात्रता को सेवानिवृत्त अभियोजकों तक सीमित कर दिया गया है, जिससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार भर्ती से बाहर हो गए हैं। उन्होंने इसे आरक्षण नीतियों और न्यायिक आदेशों की अवहेलना बताया।
वर्मा ने यूपीएससी के माध्यम से भर्ती करने के दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देशों की अनदेखी करने और केवल सेवानिवृत्त लोगों के लिए साक्षात्कार प्रक्रिया अपनाने के लिए निदेशालय की आलोचना की।
बीसीआई से नहीं किया गया परामर्श: वर्मा का आरोप
उन्होंने कहा कि दिल्ली बार काउंसिल और अन्य हितधारकों से परामर्श नहीं किया गया, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ। उन्होंने कहा कि पहले से ही पेंशन प्राप्त कर रहे सेवानिवृत्त अभियोजकों की नियुक्ति से राज्य पर अनावश्यक वित्तीय दबाव पड़ेगा, जबकि नियमित भर्ती से संस्थागत निरंतरता और दक्षता को बढ़ावा मिलेगा।
वर्मा ने चेतावनी दी कि ऐसी नियुक्तियों की अनुमति देने से सरकारी विभागों में मनमानी भर्ती की मिसाल कायम हो सकती है, जिससे सार्वजनिक रोजगार में निष्पक्षता कम हो सकती है। उन्होंने सरकार से राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुरूप अपने कार्यों को करने का आग्रह किया और सकारात्मक कार्रवाई के ढांचे विकसित करने की वकालत करने के लिए पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह (2024) का हवाला दिया।
अधिवक्ता ने रखी ये मांगे
अंत में, उन्होंने अधिसूचना को तत्काल वापस लेने, इसके जारी होने की औपचारिक जांच और इसके प्रावधानों के तहत की जाने वाली किसी भी नियुक्ति पर रोक लगाने की मांग की। उन्होंने भविष्य में होने वाली भर्तियां केवल यूपीएससी या अन्य कानूनी रूप से गठित निकायों के माध्यम से ही आयोजित करने का भी आह्वान किया, ताकि योग्यता-आधारित और समावेशी चयन सुनिश्चित हो सके।