New Year: भारतीय फार्मा सेक्टर का मिशन 2047, जानिए 500 बिलियन डॉलर की रेस में क्या-क्या चुनौतियां
- भारत की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री 2026 में कदम रख रही है, साल 2047 तक इसे 500 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य है, फिलहाल टैरिफ में उतार-चढ़ाव और ग्लोबल ट्रेड में बदलाव जैसी चुनौतियां हैं।
विस्तार
साल 2025 की खट्टी-मीठी यादों को समेट कर अब हम नए साल 2026 में प्रवेश करने जा रहे हैं। भारतीय हेल्थ सेक्टर के लिए ये साल मिला-जुला अनुभव लेकर आया। हृदय रोग, कैंसर सहित कई तरह की क्रॉनिक बीमारियों के चलते जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर पूरे साल दबाव बना रहा वहीं, इसी दौर में भारतीय फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री ने अपनी क्षमता और विश्वसनीयता को एक बार फिर साबित किया।
मेडिकल साइंस और विशेषज्ञों की टीम ने इस साल कई नई और किफायती दवाओं के विकास पर काम किया। कैंसर, रेयर डिजीज और क्रॉनिक बीमारियों के इलाज के लिए एआई की मदद ली गई और विशेषज्ञों की टीम ने विशेष सफलता भी प्राप्त की। कोरोना के बाद से दुनियाभर में भारत की पहचान एक भरोसेमंद दवा निर्माता देश के रूप में और मजबूत हुई।
नीतिगत स्तर पर भी साल 2025 में कई सकारात्मक कदम उठाए गए। सरकार और निजी क्षेत्र ने हेल्थ सेक्टर में निवेश बढ़ाया, मेड इन इंडिया दवाओं को प्रोत्साहन मिला और हेल्थ स्टार्टअप्स के लिए नए अवसर बने। अब नए साल में नई उम्मीदों और नए लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ने का समय है।
आइए साल 2026 और आगे के वर्षों के लिए भारतीय हेल्थकेयर और फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के लक्ष्यों और योजनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं।
500 बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री बनने का लक्ष्य
भारत की फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री 2026 में कदम रख रही है, साल 2047 तक इसे 500 बिलियन डॉलर (लगभग 449.63 हजार करोड़ रुपये) करने का लक्ष्य है। खुद को एक इनोवेशन हब के रूप में स्थापित करने के लिए फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री जरूरी इकोसिस्टम बनाने की दिशा में काम कर रही है। हालांकि फिलहाल टैरिफ में उतार-चढ़ाव और ग्लोबल ट्रेड में बदलाव जैसी चुनौतियां हैं।
भारतीय घरेलू दवा इंडस्ट्री मुख्यरूप से जेनेरिक दवाओं पर निर्भर है। पिछले 25 वर्षों में ये 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हो गई है। इस क्षेत्र में अब 'नेक्सट जनरेशन' दवाओं की दिशा में काम किया जा रहा है।
अगले 25 वर्षों का रोडमैप और चुनौतियां
इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस के सेक्रेटरी जनरल सुदर्शन जैन कहते हैं, मौजूदा समय में भारतीय फार्मा इंडस्ट्री एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है और यहीं से अगले 25 वर्षों के इनोवेशन, क्वालिटी और वैश्विक स्तर पर विश्वसनीयता को तय होना है।
2026 से अगले पांच साल कई मामले में बहुत अहम होने वाले हैं। फार्मा मेडटेक सेक्टर में रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ावा (पीआरआईपी) के लॉन्च को इंडस्ट्री से जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला जोकि एक महत्वपूर्ण शुरुआत है।
फार्मा महाशक्ति बनने का विजन
सुदर्शन जैन कहते हैं, नई तरह की घोषित रिसर्च डेवलपमेंट इंसेंटिव स्कीम, जिसमें बायोमैन्युफैक्चरिंग एक मुख्य फोकस एरिया है, ऐसे समय में बहुत प्रभावी हो सकती है। नई खोजों की ओर भारत के बदलाव के उत्साहजनक संकेत देखे जा सकते हैं, जिसमें प्रमुख भारतीय फार्मा कंपनियां ज्यादा वैल्यू वाले उत्पाद खरीद रही हैं, लाइसेंसिंग डील कर रही हैं और अगली पीढ़ी की दवाओं के लिए रेगुलेटरी अप्रूवल हासिल कर रही हैं।
एक अन्य कंपनी के डायरेक्टर जनरल अनिल मताई कहते हैं, टैरिफ में उतार-चढ़ाव और ग्लोबल ट्रेड में बदलाव जैसी बाहरी चुनौतियां भारत के सामने जरूर हैं, पर इसका असर बहुत लंबा होने की आशंका नहीं है। पुख्ता लक्ष्य के साथ अगर आगे बढ़ा जाता है तो भारत अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है।
मेडिकल साइंस के लिए सुनहरा रहा साल 2025
अमर उजाला में प्रकाशित रिपोर्ट में हमने बताया कि किस तरह से साल 2025 में दुनियाभार में वैज्ञानिकों ने हेल्थ सेक्टर में नई खोज की, कारगर दवाएं विकसित कीं। इसमें भारत का भी बड़ा योगदान रहा। जुलाई 2025 में आईसीएमआर और भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (आरएमआरसी) के शोधकर्ताओं ने मिलकर मलेरिया की रोकथाम के लिए पहला स्वदेशी टीका तैयार किया। इसके अलावा हैजा संक्रमण से बचने के लिए भी एक टीका विकसित किया गया जिसके सभी परीक्षण पूरी तरह सफल रहे।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है।
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